हर बार कुर्बान हो जाती है बेटियॉ
घर की चारदीवारो में पिस जाती है बेटियॉ।।
रीति-रिवाजो में बंध जाती है बेटियॉ
घुट-घुट कर जी जाती है बेटियॉ।।
सभी संस्कार निभाती है बेटियॉ
परिवार के वंश को चलाती है बेटियॉ।।
हर दुख को सहन कर जाती है बेटियॉ
कितने ही अत्याचार हो सह जाती है बेटियॉ।।
बिन कहे समझ जाती है बेटियॉ
सभी जिम्मेदारीयों को अच्छे से निभाती है बेटियॉ।।
भेद-भाव के बन्धन में बंध जाती है बेटियॉ
अपने तो मन की बात भी कहने से डरती है बेटियॉ।।
दो घरों का दीपक रोशन करती है बेटियॉ
इसके बाद भी हर क्षेत्र में आगे निकल जाती है बेटियॉ।।
डाक्टर और इंजिनयर बन जाती है बेटियॉ
सीना तान कर चल खडी हो जाती है बेटियॉ।।
हर किसी का प्यार और सम्मान ले जाती है बेटियॉ
पढने मे नम्बर 1 होती है बेटियॉ।।
माउंट एवरेस्ट पर चढ जाती है बेटियॉ
सोचा था मन में आगे बढने के लिए
दिखाने के लिए कुछ मजबूर थी
इज्जत बनकर घर की पाना था रास्ता
पार करके सौ-2 पहाड और नदियॉ
हॅसते-2 मैने उन्हे स्वीकारा था
साहस था मुझमें चढने का चोटी पर
माउण्ट एवरेस्ट की है जो
उंचाई पर हजारो मील की
मेरा बेटा तब तक मेरा है, जब तक उसको पत्नी नही मिल जाती।
मेरी बेटी तब तक मेरी, जब तक मेरी जिदंगी खत्म नही हो जाती।।
नीरज गुप्ता (बागपत)