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जहाँ गंदगी वहाँ वास्तुदोष

polluted yamunaशुद्धता और प्रकाश ईश्वरीय और शुभ्र सकारात्मक माहौल के लक्षण हैं जबकि इसके विपरीत गंदगी और अंधकार नकारात्मकता के द्योतक हैं। हम ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय…’ को अपनाने वाली संस्कृति के अनुगामी हैं जहाँ तम अर्थात अंधकार को हटाकर या उस पर विजय पाकर ज्योति अर्थात आलोक पाने के की परंपरा रही है।

मन-मस्तिष्क, तन और परिवेश की शुद्धता, नियमित साफ-सफाई और स्वच्छता की सारी मर्यादाओं के अनुकरण की हमारी यही परंपरा हमें दैवत्व और दिव्यत्व के करीब ले जाती है और आत्म साक्षात्कार से लेकर भगवदीय साक्षात्कार का मार्ग प्रशस्त करती है।

शरीर की साफ-सफाई से लेकर परिवेश तक की स्वच्छता हमारी दिनचर्या का अहम हिस्सा रही है और हम पिछली सदियों में इसके लिए अत्यन्त गंभीर भी रहे हैं। लेकिन जब से हमारी मानसिकता समुदाय केन्दि्रत स्वभाव और सामूहिक सोच के दायरों से गिरकर अंधकूपमण्डूकावस्था में आ गई है तभी से हमने परिवेशीय स्वच्छता को भुला दिया है।

हममें से अधिकतर लोग अपने घर-दुकान और प्रतिष्ठान को तो साफ-सुथरा रखना चाहते हैं लेकिन हमें हमारे आस-पास बनी रहने वाली गंदगी की जरा भी सुध नहीं है। हम गंदगी का निस्तारण नहीं करते बल्कि हमारा विश्वास गंदगी के परिवहन ही रह गया है। हमारे अपने बाड़ों से गंदगी निकाल कर हम पास फेंक आते हैं। जबकि स्वच्छता सिर्फ बाड़ों तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए, हम जहाँ रहते हैं, समय बिताते हैं और आवागमन करते हैं उन सभी क्षेत्रों में भी गंदगी नहीं रहनी चाहिए।

घर-दुकान और प्रतिष्ठान कितना ही साफ-सुथरा और सुगंधित क्यों न हो,  जब तक हमारे आस-पास गंदगी बिखरी पड़ी हो, सडांध का माहौल हो, तब तक हमें सुकून प्राप्त नहीं हो सकता। न ही इसे साफ-सुथरा परिवेश कहा जा सकता है।

हमारी आधी से अधिक बीमारियों, तनावों और संतापों का मूल कारण हमारी गंदगी ही है। हमने भारतीय संस्कृति की शुचिता, सादगी और हमेशा स्वच्छ रहने की परंपराओं को भुला कर पाश्चात्य अप संस्कृति को अपना लिया है और उन सभी मर्यादाओं तथा परंपराओं को भुला दिया है जिनकी वजह से हमारी जीवन में पवित्रता हर क्षण बनी रहती थी और बैक्टीरियाओं की हिम्मत तक  नहीं होती थी हमारे घर अथवा शरीर में प्रवेश की।

खूब सारे लोग ऎसे हैं जिन्हें साफ-सफाई और बाहरी-भीतरी स्वच्छता से कोई सरोकार नहीं है। कई सारे लोग भरपूर पानी की उपलब्धता, नदियों और नहरों के किनारे रहने तथा भरपूर समय होने के बावजूद हाथ-मुँह धोने और नहाने तक में कतराते हैं।

खूब सारे बच्चे बिना नहाये स्कूल जाते हैं। इनमें पहले से ही आलस्य भरा होता है, ऊपर से दो-तीन घण्टे में पोषाहार मिल जाता है। इससे तन्द्रा, निद्रा और आलस्य का प्रभाव उन बच्चों पर पड़ना स्वाभाविक ही है।  खूब सारे कार्मिकों के खराब स्वास्थ्य का कारण कार्यालयों और प्रतिष्ठानों की गंदगी, फाईलों पर जमा धूल और गर्द, हवा और रोशनी आवागमन के साधनों का अभाव तथा स्वच्छता एवं साफ-सफाई का माहौल न होना ही है। इस बारे में हम जितने लापरवाह हैं उतना दुनिया के किसी और देश का कोई नागरिक नहीं होगा।

साफ-सफाई और बहुआयामी स्वच्छता के मामले में हम दोहरा मानदण्ड नहीं अपना सकते। हमें घर-दुकान और प्रतिष्ठान को भी साफ-सुथरा रखना होगा तथा अपने आस-पास के क्षेत्र, अपनी गलियों, सर्कलों, चौराहों और रास्तों को भी।

हममें से काफी लोग इस भ्रम मेंं जीते हैं कि अपने वहां सफाई कर लो, पास की गंदगी से क्या फर्क पड़ता है। जबकि हकीकत यह है कि गंदगी और कूड़ा-करकट की मौजूदगी अपने यहाँ ही नहीं बल्कि आस-पास के परिक्षेत्र में भी कहीं भी नहीं होनी चाहिए।

अपने आस-पास भी गंदगी होना अपने आप में अनेक प्रकार के वास्तुदोषों का मूल कारण है और इससे हमारे खूब सारे कामों, आर्थिक समृद्धि, उन्नति, और यश प्राप्ति में ढेरों बाधाएं आती हैं। जिन लोगों के घरों या दुकानों में अथवा आस-पास गंदगी होगी उस अनुपात में उन्हें समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।

ज्योतिषीय दृष्टि से देखें तो जहां जिस रंग और गंध की गंदगी होगी, उस रंग व गंध से संबंधित ग्रह-नक्षत्र का प्रकोप हमेशा बना रह सकता है। जहाँ पानी का अपव्यय होता है, लगातार कीचड़ बना रहता है वहाँ रहने वाले लोगों में चन्द्रमा का प्रभाव क्षीण रहता है और ऎसे लोग मन से कमजोर होते हैं।

इसी प्रकार जिन स्थानों में अंधेरा बना रहता है वहाँ भूत-प्रेत और बुरी हवाओं से लेकर तमाम प्रकार के नकारात्मक प्रभावों, जहरीले जानवरों का प्रकोप बना रहता है।  गंदगी का अर्थ सिर्फ मानवनिर्मित या अन्य द्रव्यों का कूड़ा-करकट ही नहीं है बल्कि जिन इलाकों में गाजर घास, जहरीली खरपतवार और विलायती बबूल जैसे काँटेदार पेड़-पौधे होते हैं वहाँ भी वास्तु दोष भरपूर मात्रा में पसरा हुआ होता है और इससे वहाँ रहने वाले लोगों को न शांति प्राप्त हो सकती है, न सुकून ही।

साफ-सफाई और बहुआयामी स्वच्छता हमारे जीवन की वह आवश्यकता है जो पंच तत्वों के बराबर महत्व रखती है। मनुष्य जिन तत्वों से बना होता है उसमें से कोई भी तत्व दूषित नहीं होना चाहिए अन्यथा मनुष्य के रूप में हम अपने कत्र्तव्यों को अच्छी तरह पूरा कर पाने की स्थिति में नहीं हो पाते।

हमारी सभी वर्तमान समस्याओं के पैदा होने का मूल कारण तलाशा जाए तो यही उभर कर सामने आएगा कि शुचिता और स्वच्छता का अभाव ही है।  पंच तत्वों से जुड़े सभी कारकों को हमने दूषित कर दिया है, उनके स्रोतों की जो दशा हमने की है, वह किसी से छिपी हुई नहीं है।

हमारे ऊर्जस्वी और अपूर्व मेधा-प्रज्ञा सम्पन्न प्रधानमंत्रीजी ने महात्मा गांधी जयन्ती से स्वच्छता का जो देशव्यापी अभियान आरंभ करने की ठानी है वह भारतीय इतिहास में सामुदायिक स्वच्छता की दिशा में ऎतिहासिक प्रयास है। ये एक ऎसी पहल है जिसका संबंध हर भारतवासी से है और हर भारतवासी का कल्याण इसमें छिपा हुआ है।

इसे हर भारतवासी का अपना आत्मीय अभियान बनाने और जनान्दोलन का स्वरूप प्रदान किए जाने की दिशा में जो कुछ संभव है, वह करना हम सभी का फर्ज है। छोटी-छोटी बातों से जुड़े ऎसे विराट अभियान ही देश की दिशा और दशा तय करते हैं।

हमें व्यक्तिगत और घरेलू स्वच्छता के साथ ही परिवेशीय स्वच्छता पर बल दिए जाने की जरूरत है और इसके लिए यह जरूरी है कि हम देश के हर कोने को अपना समझें और हर क्षेत्र की साफ-सफाई और शुचिता को अपना फर्ज मानकर चलें।

इस बाहरी-भीतरी साफ-सफाई के साथ ही एक और काम हमें अपने स्तर पर करने को आगे आना चाहिए और वह है कि अपने दिल-दिमाग को भी साफ-सुथरा और पवित्र बनाए रखें ताकि अच्छे और श्रेष्ठतम विचारों का आवागमन  बना रहे। अपने चित्त में बरसों से जमा बुरे संस्कारों तथा प्रतिशोध की जड़ों को अपनी तीव्र इच्छाशक्ति की ज्वालाओं से जला दिए जाने की जरूरत है। मन की मलीनताओं को निकाल फेंकने की आवश्यकता है।

आज जब सफाई की बात चल ही पड़ी है तो हर तरह से ही सफाई क्यों न हो जाए ताकि भारतमाता को अपने पुत्रों पर गर्व हो।  आइये हम सभी पिण्ड से लेकर परिवेश तक बहुआयामी स्वच्छता के लिए प्रयास करें और कोने-कोने से लेकर आक्षितिज पसरी भारतभूमि के सौन्दर्य को निखारते हुए भारतमाता के सच्चे सपूत होने के दावों को सच्चाई और यथार्थ की कसौटी पर खरा उतारने के प्रयासों में सफलता पाएं।

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