प्रेम विवाह प्रेेम से धर्मांतरण कराने का साधन-लव जेहाद
विवाह मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण संस्कार है। धर्मशास्त्रों में इसके आठ प्रकार बताये गये हैं-ब्रह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य, आसुर, गांधर्व, राक्षस तथा पैशाच। इनमें से प्रथम चार को प्रशस्त तथा शेष चार को अप्रशस्त की कोटि में रखा गया है।
आजकल भारतीय समाज में गांधर्व विवाह की विशेष चर्चा है। गांधर्व विवाह को ही प्रेम-विवाह भी कहा जाता है। जब कोई युवक युवती स्वेच्छा से वैवाहिक संबंध में प्रतिबद्घ होने का निर्णय करते हैं तो उसे प्रेम-विवाह कहा जाता है। इस विवाह से स्वेच्छाचारिता को बढ़ावा मिलता है। अतएव ऋषियों ने इसे अप्रशस्त कहा था।
भारतीय संस्कृति में गृहस्थाश्रम भोग-विलास का केन्द्र नही, अपितु पुरूषार्थ-चतुष्टय की साधना का केन्द्र है। अत: जीवन साथी चुनने में सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, आचार-विचार आदि अनेक पक्षों पर विचार करना आवश्यक होता है। जब युवक-युवती विवाह-विषयक निर्णय लेने में स्वतंत्र होते हैं तो इन सभी पक्षों पर प्राय: विचार नही करते हैं। अतएव यह विवाह प्राय: स्थायी नही होता है।
आजकल प्रेम शारीरिक वासना की तृप्ति का साधन बन चुका है। हिंदी के प्रख्यात कवि रामनरेश त्रिपाठी ने ठीक ही लिखा है-
‘‘शारीरिक वासना तृप्ति का साधन जहां प्रणय है। जहां शब्द चातुर्य सत्य है भ्रमोत्पत्ति निर्णय है।
चलता है तूफान जहां हिंसा का हृदय हृदय में।
मैत्री में विश्वासघात है छल है छिपा विनय में।।
यहां कवि ने विनय में छल की बात कही है। लेकिन प्रणय में भी छल दृष्टिगोचर होता है। रांची की तारा शाहदेव की घटना इसी का उदाहरण है।
तारा के पति रकीबुल खान के द्वारा तारा को इस्लाम स्वीकार करने के लिए प्रताडि़त किया जाना छल युक्त प्रणय का ही परिचायक है। कोई भी सच्चा प्रणयी अपनी प्रियतमा की प्रसन्नता में ही प्रसन्न होगा, न कि अपनी प्रसन्नता के लिए अपने विचारों को थोपेगा।
बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का कहना था कि हमारे समाज में जितनी अधिक अंर्तजातीय शादियां होंगी, उतने ही अधिक हम लोग धर्मनिरपेक्ष होंगे। हाल ही में जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने भी लव जेहाद पर बयान देते हुए ऐसा ही विचार प्रकट किया था। लेकिन तारा शाहदेव की घटना ऐसे विचारों के लिए कुठाराघात ही है।
भारत में प्रेम-विवाह के आड़ में कई धर्मांतरण के मामले सामने आ चुके हैं।
भारत में एक ऐसा भी वर्ग है जो इसे खराब नही मानता। वह इसे व्यक्ति की स्वतंत्रता मानकर धर्मनिरपेक्षता के उदाहरन्ण के रूप में देखता है। लेकिन यह व्यक्ति की स्वतंत्रता राष्ट्र की स्वतंत्रता को नष्ट करने वाली है।
किसी भी राष्ट्र का बल वहां की संस्कृति होती है। धर्मांतरण से अपनी संस्कृति तथा देश से प्रेम नष्ट होने लगता है तथा वह धर्म जिस देश की संस्कृति का अंग होता है, वहां से प्रेम होने लगता है। इन्हीं कारणों से भीमराव अंबेडकर अस्पृश्यता का शिकार होते हुए भी किसी विदेशी धर्म को स्वीकार नही किये।
धर्मांतरण का परिणाम भारत के कश्मीर प्रांत में स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। वहां अलगाववादी हावी हैं।
वे अन्न तो खाते हैं हिन्दुस्तान का, लेकिन गुणगान करते हैं पाकिस्तान का। यहां तक की झण्डा भी फहराते हैं पाकिस्तान का।
इसके पीछे सिर्फ यही कारण है कि वे मुस्लिम बन चुके हैं तथा पाकिस्तान मुस्लिम राष्ट्र। अत: उन्हें पाकिस्तान से प्रेम है।
अत: देश में विभिन्न उपायों से हो रहे धर्मांतरण पर सरकार को रोक लगाना चाहिए। विशेष रूप से प्रेम-विवाह तो प्रेम से धर्मांतरण कराने का साधन बन चुका है। यदि हम समय रहते सावधान नही हुए तो भारत की अपनी पहन्चान मिटन् जाएगी।
अत: आवश्यकता है लड़कियों को ऐसी शिक्षा तथा संस्कार देने की जिससे कि वे राष्ट्रविरोधी तत्वों को पहचान सकें तथा उनसे डटकर मुकाबला करने में समर्थ हों।