कविता — 29
सत्यम शिवम सुंदरम को जो समाहित करे।
वसंत होता वही जो सर्वस्व निज परहित धरे।।
वसंत ऋतुराज है और जीवन का सुंदर गीत है।
वसंत अमृत तुल्य है और जीवन का मेरे मीत है।।
विधाता के संविधान का उत्कृष्ट जो विधान है।
वसंत कहते उसे जो करे पीर का निदान है।।
वसंत बड़ा मस्त है , स्वस्थ भी और पुष्ट भी ।
सुनकर इसकी आहटें प्रकृति के भगते दुष्ट भी।।
ऋतुओं का राजा होने से कहलाता ऋतुराज है।
जगत की स्वरलहरियों का वसंत अनुपम साज है।।
हर पंखुड़ी में गीत का भरता मधुर संगीत है ।
सृष्टि की सरस सरिता के स्वर का यह उद्गीथ है।।
हताश और उदास मन को उत्साह का संचार दे ।
उजड़े हुए चमन में फिर से फूलों की बहार दे।।
हारे थके पथिक को फिर से चलने का संदेश दे।
‘क्षण भर के लिए न रुकना’ उत्कर्ष का उपदेश दे।।
जो कड़वाहटें मन पर जमीं उनको सर्वथा त्याग दो।
पतझड़ तुम्हें न रोक सकता मन में जगा ये भाव लो।।
तूफान तुमको न रोक सकता लक्ष्य को यदि साध लो।
प्रतियोगिता है जिंदगी – यह ब्रह्मवाक्य मान लो।।
उत्कर्ष को पाते वही जो यहाँ उत्कर्ष के साथी रहे।
वे नहीं, जिनके यहाँ हजारों अश्व और हाथी रहे।।
यदि सोचते हो दुनिया तुम्हारे गीत सदा गाती रहे ।
तो मान लो, तुमको सदा सुगन्ध वसन्ती भाती रहे।।
यह कविता मेरी अपनी पुस्तक ‘मेरी इक्यावन कविताएं’- से ली गई है जो कि अभी हाल ही में साहित्यागार जयपुर से प्रकाशित हुई है। इसका मूल्य ₹250 है)
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत