वैज्ञानिकों का हार्दिक अभिनंदन
एक ऐसी खुशी जो हमें कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से कामरूप तक एक होने की गौरवपूर्ण अनुभूति कराने की क्षमता रखने में समर्थ हो तो उस खुशी में ही झलकता है हमारे भीतर का छिपा हुआ राष्ट्र्रवाद और छिपी हुई राष्ट्रीयता। मंगलयान की सफलता पर 24 सितंबर को जब देश के प्रधानमंत्री मोदी ने देश के वैज्ञानिकों की पीठ थपथपाई और इन गौरवपूर्ण क्षणों में अपनी प्रसन्नता की अभिव्यक्ति की तो उस समय उन वैज्ञानिकों की पीठ एक व्यक्ति नही अपितु पूरा राष्ट्र थपथपा रहा था। उसमें देश का बच्चा-बच्चा शामिल था। कश्मीर और कन्याकुमारी हों, चाहे कच्छ और कामरूप हों, सभी के बीच की दूरियां सिमट गयीं, मिट गयीं और वो रेखायें ऊपर उभरकर आ गयीं जो हमारी आत्मा के जगत को अदृश्य रूप से जोडक़र रखती है। इस खुशी को देश से बाहर रहने वाले अप्रवासी भारतीयों ने भी अनुभव किया और सात समंदर दूर बैठे लोगों ने भी इस अनुपम उपलब्धि पर अपने देश के पुरूषार्थी और लगनशील वैज्ञानिकों को हृदय से धन्यवाद ज्ञापित किया।
भारत के वैज्ञानिक सचमुच बधाई और धन्यवाद के पात्र हैं, जिन्होंने अंतरिक्ष जगत में देश का नाम रोशन किया है। हमारा मंगलयान-अभी तक जिन देशों ने भी मंगलयान भेजे हैं, उन सबसे कम खर्चीला रहा। 450 करोड़ में हमने यह महान उपलब्धि प्राप्त की। हमने इस क्षेत्र में चीन और जापान को भी पीछे छोड़ दिया है। हमारे वैज्ञानिकों ने सिद्घ कर दिया है कि यदि उन्हें साधन और अवसर उपलब्ध कराये जाएं तो वे किसी से कम नही हैं। पिछले वर्ष नवंबर में मंगलयान अपने अभियान पर निकला था, उस समय मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे। उन्होंने हमारे वैज्ञानिकों को इस अभियान के लिए धन उपलब्ध कराया इसलिए उन्हें भी धन्यवाद दिया जाना चाहिए।
जब देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी थीं तो उनके काल में विक्रम साराभाई ने अंतरिक्ष कार्यक्रम की योजना बनायी थी। इसलिए वह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक कहे जाते हैं। उन्होंने इंदिरा जी के सामने इसका प्रस्ताव रखा। इंदिरा जी के पूछने पर उन्हें बताया कि यदि हम अपने अंतरिक्ष अभियान में सफल होते हैं, तो हमें मौसम संबंधी सटीक जानकारी मिल सकती है, तूफान आदि के विनाश से बचा जा सकता है। वर्षा की सटीक जानकारी लोगों को दी जा सकती है। इंदिरा जी ने विक्रम साराभाई से पूछा कि इसमें धनराशि कितनी चाहिए, तो उन्होंने कहा कि यही 40-50 करोड़ रूपया। इंदिरा जी ने कहा कि इतना तो हो सकता है। काम शुरू हुआ। हमने एक नन्हा सा कदम उधर बढ़ाया और आज दुनिया हमें छलांग लगाते देख रही है, तीस वर्ष में इतना बड़ा सफर हमने तय किया है कि करोडों़ किलोमीटर दूर के ग्रह से भी रिश्तेदारी बना ली है। अब तक ‘चंदा मामा’ की खबरें ही आया करती थीं, पर अब ‘मंगल चाचा’ की चिट्ठियां भी आने लगेंगी। ऊपर अंतरिक्ष में हमारा मामा तो था, पर चाचा नही था। अब हमने ‘चाचा’ भी पा लिया है।
हमारे प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि देश के वैज्ञानिकों ने छोटी सी धनराशि में इतनी बड़ी छलांग लगायी है, जो हमारे लिए गौरव का विषय है। श्री मोदी ने कहा कि इतनी सी राशि (450 करोड़) में तो हालीवुड में फिल्में भी नही बन पाती हैं। इसका अभिप्राय है कि हमने हालीवुड की फिल्मों पर अब तक कितना खर्च कर दिया है, विशेषत: तब जब वे हमारे नैतिक और वैज्ञानिक ज्ञान को बढ़ाने में सर्वथा असफल रहीं, तो ऐसी अनर्थक फिल्में बनाकर कितने मंगल अभियानों की असफलता की कहानी हम लिख चुके हैं?
भारत किसी की बौद्घिक क्षमताओं का या बौद्घिक मार्गदर्शन का मुंहताज नही है। अंतरिक्ष जगत से भारत का हजारों लाखों वर्ष पुराना संबंध रहा है। नारद जी लोक लोकातरों की खबर लाने वाले विश्व के पहले पत्रकार हैं। जिनके पास मन की गति से भी तीव्र गति के चलने वाले यान थे। वैसे नारद एक व्यक्ति नही थे, अपितु वह एक उपाधि थी और यह उपाधि उसी व्यक्ति को मिला करती थीं जो मन की गति से तीव्र दौडऩे वाले यानों का स्वामी होता था, या जिसकी बौद्घिक और वैज्ञानिक क्षमताएं आध्यात्मिक स्तर पर इतनी व्यापक हो जाती थीं या इतनी समृद्घ होती थीं, कि उससे जब चाहो किसी लोक की सूचना ले लो। हमें अब आशा करनी चाहिए कि हम अब ‘नारद’ तैयार करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
कृष्णदत्त ब्रह्मचारी जी ने अपनी पुस्तक ‘अतीत का दिग्दर्शन’ के वैज्ञानिक खण्ड में ऐसे कई रहस्यों से पर्दा उठाया है, जिनसे हमें अपने प्राचीन काल के वैज्ञानिक ऋषियों के अलौकिक ज्ञान को देखकर दांतों तले उंगली दबानी पड़ती है। उनका कहना है कि महाभारत में भीम भी एक महान वैज्ञानिक थे, और वह अपने विभिन्न यानों के निर्माण में व्यस्त रहा करते थे। भीम का बनाया हुआ एक यान अभी तक अंतरिक्ष में चक्कर लगा रहा है, और आने वाले हजारों वर्षों तक लगाता रहेगा। यदि यह सत्य है तो हमारा विज्ञान कितना महान था और भीम जैसे लोगों को जिन्हें हम केवल युद्घ करने में माहिर ‘मोटी बुद्घि’ का आदमी मानते रहे हैं, वह भी कितना महान वैज्ञानिक था-यह सोचकर गर्व होता है। इस दिशा में भी अब अनुसंधान किये जाने की आवश्यकता है। कृष्णदत्त ब्रह्मचारी का कहना था कि मंगलयान जैसे अभियान अब से पूर्व भी चले हैं, परंतु इससे पूर्व कि इस गृह पर मानव पहुंचे और इस पर अपना नियंत्रण स्थापित करे, कोई न कोई ऐसी प्राकृतिक आपदा या युद्घ आदि की विनाशकारी विभीषिका पृथ्वी पर खड़ी होती है कि सब कुछ विनष्ट हो जाता है-जब हम ऐसा सोचते हैं तो भी घबराने की आवश्यकता नही, बल्कि सोचने की आवश्यकता है कि आज मनुष्य-मनुष्य न बनकर साम्प्रदायिक दानव बन रहा है और मनुष्य को ही निपटाकर खुशी व्यक्त कर रहा है। जब अपने ही रक्त को पीकर प्यास बुझायी जाने लगे तो ‘लालगृह’ से रक्त की लालिमा का 36 का आंकड़ा न होकर एक साथ मिलकर विभीषिका मचाने का भी हो सकता है। हमें आशा करनी चाहिए कि हम विभीषिकाओं से बचेंगे और मंगल की दुनिया के लिए मंगलमय बनाने की दिशा में ही ठोस कार्य करेंगे। देश के वैज्ञानिकों का एक बार पुन: हार्दिक अभिनंदन।
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।