अमेरिका में मोदी ने उस देश की अनेक कम्पनियों के प्रमुखों से आमने सामने बातचीत की । अमेरिका की कम्पनियाँ भारत में पूँजी निवेश करने से कतराती हैं । उसकी तुलना में वे चीन में पूँजी निवेश करना ज़्यादा सुरक्षित समझती हैं । उसका कारण वैचारिक नहीं है बल्कि व्यवहारिक है । भारत में नौकरशाही क़ानून का सहारा लेकर पूँजी निवेशकों के प्रकल्पों में अड़ंगे डालने को ही अपनी कार्यकुशलता मानती है । दूसरे इस मामले में सरकार की नीति क्या है , यह स्पष्ट नहीं है । मोदी ने वहाँ के पूँजी निवेशकों को आश्वस्त किया है कि अनुपयोगी और कालबाह््य हो चुके विधि विधानों को समाप्त किया जा रहा है । युगानुकूल सिंगल विंडो सिस्टम से निवेश के प्रकल्पों को स्वीकृति की व्यवस्था ी गई है । सब से बढ़ कर मोदी ने उन को आश्वस्त किया कि निवेशकों की पूँजी डूबने नहीं दी जायेगी । शायद इसी का संकेत देने के लिये मोदी अमेरिका जाने से पहले दिल्ली में मेक इन इंडिया अभियान की शुरुआत करके गये थे ।
भारत को पूँजी की जरुरत है । यदि विभिन्न देशों के निर्माता भारत में आकर उत्पादन करते हैं तो निश्चय ही यहाँ रोज़गार के नये अवसर पैदा होंगे । भारत में किया गया उत्पादन लागत के हिसाब से सस्ता पड़ सकता है क्योंकि देश के पास वर्क फ़ोर्स है । लेकिन अमेरिका में जाकर यह बताना भी जरुरी था कि नये शासन के पास जन समर्थन ही नहीं है बल्कि तमाम भेदभाव भुलाकर भारत के लोगों ने तीस साल के बाद पहली बार देश में ऐसे शासन की व्यवस्था की है जो बिना किसी बाहरी या अन्दरूनी दबाव के दूरगामी निर्णय लेने की स्थिति में है । ख़ास कर अमेरिका में बसे उन भारतीयों को जिन्होंने उस देश में जाकर अपनी योग्यता के बलबूते सफलता हासिल की है । इन्हीं भारतीयों के माध्यम से व्हाइट हाउस में सही संदेश जा सकता है । न्यूयार्क के मैडीसन स्क्वायर में प्रवासी भारतीयों के कार्यक्रम के माध्यम से मोदी ने यह काम सफलता पूर्वक किया । उस कार्यक्रम में अमेरिका के तीस चालीस सांसद भी थे । वे आश्चर्य चकित होकर प्राचीन भारत के इस नये संदेश को सुन रहे थे । केवल अमेरिका ही नहीं चीन भी सुन रहा था । भारत में सीता राम येचुरी व दिग्विजय सिंह जैसे लोग इसे इवेंट्स मैनेजमेंट से जोड़ सकते हैं और शायद जोड़ भी रहे हैं । लेकिन यह विश्व से बात करने की नई कूटनीति है । यह कार्यक्रम मात्र नहीं है । इसके भीतर के निहितार्थ को समझने की जरुरत भी है । वाशिंगटन पहुँचने से पहले कूटनीति के इस नये मंत्र का जाप कर लेना जरुरी था । इस कूटनीति को वे लोग नहीं समझ सकते जो देश की आम जनता की आशाओं आकांक्षाओं से नहीं जुड़े हैं ।
अमेरिका में बसा भारतीय मूल का समुदाय इस देश की मूल पूँजी है । उस को पीढ़ी दर पीढ़ी भारत की जड़ों से जोड़े रखना जरुरी है । अभी तक नौकरशाही इस प्रक्रिया को निरुसाहित करती थी । मोदी ने अमेरिका में जाकर भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों को ताउम्र वीज़ा प्रदान कर दिया । निश्चित ही इस निर्णय के दूरगामी परिणाम होंगे । अमेरिका में किन्हीं विपरीत परिस्थितियों में चले गये पंजाबियों से बातचीत ही नहीं की बल्कि उन की समस्याओं का समाधान भी किया । उन समस्याओं की आड़ में भारत विरोधी शक्तियाँ सक्रिय हो जाती थीं । मोदी ने अत्यन्त कुशलता से उन शक्तियों को अप्रासांगिक किया । मोदी की अमेरिकी यात्रा की उपलब्धि को एक वाक्य में कहना हो तो कहा जा सकता है कि पहली बार यथार्थ के धरातल पर खड़े होकर भारत ने अमेरिका के साथ एक नये आत्मविश्वास के साथ बात की है ।
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