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इतिहास के पन्नों से

वाम धूर्तों का कुटिल इतिहास प्रेम

दुनिया में देखें तो इतिहास वाम धूर्तों का प्रिय विषय रहा है हमेशा से। क्योंकि इतिहास के पुनरलेखन या पुनरपाठ के जरिए समाज में संघर्ष के बीज बोने की क्षमताएं असीम हैं। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय को ही देख लें। वहां इतिहास पढ़ने वाले खुद को थोड़ा आभिजात्य मानते हैं। रोमिला थापर, बिपिन चंद्रा, हरबंश मुखिया जैसे यहां के तमाम नामी प्रोफेसर भी इतिहास के ही रहे हैं। यही हाल अमेरिकी विश्वविद्यालयों का भी है। इतिहास में इनकी रुचि क्यों है? एक लाइन में कहें तो ये किसी भी तरह की राष्ट्रीय एकजुटता के घोर विरोधी हैं। जहां राष्ट्रीय एकजुटता हो, सर्वमान्य राष्ट्रीय पाठ हो, वहां वाम धूर्तों के लिए कोई गुंजाइश नहीं, कोई अवसर नहीं। कहते हैं कि कोई भी देश अपने आप में एक सामूहिक समझौता होता है, जहां सभी कुछ न कुछ चीजों पर सहमत होते हैं। सहमति का आधार भाषा, नस्ल, धर्म कुछ भी हो सकता है। जैसे हमारे लिए संस्कृत और सनातन धर्म है जिसने हजारों साल से हमें एकसूत्र में बांध रखा है।

हर राष्ट्र की जनता का एक साझा राष्ट्रीय अतीत और साझा कहानी होती है। और ये साझा अतीत और साझा कहानी ही हमेशा धूर्तों के निशाने पर रहती है। आज अमेरिका में एक आम बहस है कि हमारा इतिहास कहां खो गया। आज के अमेरिकी इतिहासकार कभी फ्रीडम, लिबर्टी जैसे अमेरिकी मूल्यों की चर्चा नहीं करते। वे यह भी नहीं बता सकते कि आज अगर अमेरिका नहीं होता तो दुनिया में सिर्फ कम्युनिस्टों के गुलाग होते या नाजियों के गैस चेंबर। खुली हवा में सांस ले रहे हैं तो थोड़ा धन्यवाद अमेरिका को भी दे लें। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद दुनिया ने जो समृद्धि देखी उसकी वजह समुद्री व्यापार है और सबके माल के सुरक्षित आने-जाने की जिम्मेदारी अमेरिकी नौसेना ने उठा रखी थी और लगभग आज भी उठा रखी है। लेकिन इन वाम धूर्तों के लिए अमेरिकी इतिहास सिर्फ दूसरे देशों में दखलंदाजी, दास प्रथा और अश्वेतों से भेदभाव तक सिमट गया है। सकारात्मक उपलब्धियों के नाम पर अमेरिका के पास जीरो नंबर हैं।

अपने यहां तो खैर खुल्ला खेल फर्रूखाबादी था। धूर्तों ने पहले आर्यों के आक्रमण की कथा गढ़ी। मतलब बाहर से आए गोरे आर्यों ने काले द्रविड़ों का सफाया कर दिया। इस मस्त राम टाइप थ्योरी के जरिए इन्होंने हमें बांटने की बेहद खतरनाक चाल चली। रोमिला थापर जी की यह कपोल कथा अब उस काल के विभिन्न नरकंकालों के डीएनए परीक्षण के बाद तार-तार हो रही है। दाद देनी होगी कि धूर्त अपनी मंशा को लेकर हमेशा स्पष्ट रहते हैं। इनकी नजर में हमारे वैदिक ऋषि-मुनियों ने ना कुछ खोजा ना कुछ लिखा। गीता, वेद, उपनिषद, योग, काल गणना, गणितीय अविष्कार, व्याकरण, हमारे महाकाव्य, हमारी उदात्त परंपराएं इत्यादि का कोई मतलब नहीं है। सनातन धर्म को सिर्फ और सिर्फ जाति प्रथा और वर्ण व्यवस्था तक समेटना था और इन मक्कारों ने सत्ता के प्रश्रय से यह कर दिखाया।

समझ गए आप। एक शब्द में इतिहास का मतलब इनके लिए राष्ट्रीय एकजुटता का पाठ नहीं, किरांति का औजार है। ये किसी भी इतिहास में शोषक और शोषित ढूंढ ही लेंगे और कथित शोषित को शोषक से लड़ाने के तरीके निकाल ही लेंगे। आज दलित इनके खास निशाने पर हैं। उन्हें कथित शोषक सवर्णों के खिलाफ किरांति के लिए उकसाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जा रही। राम जी की कृपा है कि बहुत कम ही उनके चंगुल में फंस रहे हैं लेकिन वाम बहेलियों के इस जाल को काटकर उन्हें सुरक्षित बाहर निकालने की जिम्मेदारी हमारी-आपकी, सबकी है।
✍🏻आदर्श सिह

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