भारत को ग्लोबल मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाने के सपने को हकीकत में बदलने के प्रयासों के साथ प्र्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका रवाना होने से ठीक पहले गुरुवार को मेक इन इंडिया कार्यक्रम की शुरुआत की। इसमें वैश्विक एवं घरेलू कंपनियों के करीब एक हजार प्रमुख हिस्सा लेंगे। इस मुहिम का मकसद देश को वैश्विक विनिर्माण हब बनाना है। मोदी की इस घोषणा में कुछ ही समय बीता कि पड़ोसी देश चीन बौखला गया और उसने आनन-फानन में भारत के इस अभियान की तर्ज पर ‘मेड इन चाइना’ कैंपेन लॉन्च कर दिया। बताया जा रहा है कि चीन सरकार ने अपने देश की मैन्यूफैक्चरिंग ताकत बढ़ाने के लिए ‘मेड इन चाइना’ कैंपेन लॉन्च किया है। मेड इन इंडिया पर चीन की बौखलाहट इसलिए भी है, क्योंकि पिछले एक दशक से भी ज्यादा वक्त से वह भारत के बाजार पर सस्ती और घटिया चीजें उपलब्ध कराकर अच्छा मुनाफा कमा रहा है। जब भारत सरकार ने चीन की बदनीयत को समझा और उस पर रोक लगाना शुरू की तो वह खिसियाने लगा था। अब जबकि मेक इन इंडिया से सबसे ज्यादा चीन के उत्पादों की ही अनदेखी होगी तो उसका परेशान होना लाजिमी है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि हम कब तक चीन के घटिया उत्पादों को ढोते रहेंगे।
ऐसा भी नहीं है कि चीन ने सिर्फ सस्ते उत्पाद उपलब्ध कराए हैं बल्कि सस्ते खिलौने, बैटरी चलित सस्ते इलेक्ट्रॉनिक्स ऑयटम्स के जरिए भारत में कई तरह की बीमारियां भी फैला दी हैं। जब खिलौने के माध्यम से हमारे नौनिहालों पर हमला हुआ तो भारत से रहा नहीं गया और चीन पर नकेल कसनी शुरू की। अब प्रधानमंत्री मोदी ने मेक इन इंडिया के माध्यम से विदेशी वस्तुओं के जहर से भारत को मुक्त कराने का बीड़ा उठाया है तो चीन और उसके जैसे कुछ और देश तिलमिला उठे हैं।
गौरतलब है कि स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपने पहले संबोधन में मोदी ने ‘कम, मेक इन इंडिया’ का नारा देते हुए दुनियाभर के उद्योगपतियों को भारत में उद्योग लगाने का निमंत्रण दिया था। उन्होंने भारत को ग्लोबल स्तर पर एक मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाकर देश में रोजगार बढ़ाने और विभिन्न क्षेत्रों में नई तकनीक लाने की बात कही थी। मेक इन इंडिया को ज्यादा-से-ज्यादा सफल बनाने के लिए यह अभियान एक साथ मुंबई, चेन्नई और बेंगलुरु समेत विभिन्न राज्यों की राजधानियों में शुरू हुआ। इस तरह दुनियाभर के निवेशकों का ध्यान भारत की ओर आकर्षित करने के लिए इस अभियान को उन देशों में भी शुरू करने की योजना है, जिनका राष्ट्रीय मानक समय भारत से मिलता है। विदेशी निवेशकों को बताया जाएगा कि भारत में ई-कॉमर्स सहित विभिन्न क्षेत्रों में कारोबार शुरू करने के लिए सिंगल विंडो क्लीयरेंस और इनबिल्ट पेमेंट गेटवे जैसी कई सुविधाएं दी जाएंगी। औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) ने आठ सदस्यों का एक एक्सपर्ट पैनल भी बनाया है। ये विशेषज्ञ देशी-विदेशी निवेशकों की मदद करेंगे। सरकार ने घरेलू कैपिटल गुड्स क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए 930 करोड़ रुपए की योजना को मंजूरी दी है। इस पूरी योजना पर आगामी वर्षों में 20,000 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है।
बहरहाल, इस योजना से मोदी एक तीर से तीन बड़े निशाने साधने की कोशिश कर रहे हैं। पहला निशाना मैन्यूफैक्तचरिंग सेक्टर में निवेश लाने से जुड़ा है। मौजूदा समय में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का जीडीपी में योगदान 16 फीसदी है और वैश्विक योगदान 1.8 फीसदी है। वहीं इसके विपरीत चीन में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का योगदान 35 फीसदी है और वैश्विक योगदान 13.7 फीसदी है। दूसरा निशाना सरकार का यह अभियान वल्र्ड बैंक डूइंग बिजनेस इंडेक्स में अपनी रेटिंग सुधारने की दिशा में एक कदम माना जा रहा है। गौरतलब है कि 2014 की इस रिपोर्ट में भारत को 189 देशों में 134वां स्थान मिला था। यह रैंकिंग बताती है कि भारत में बिजनेस स्टार्ट करना आसान नहीं है। अभी देश में कारोबार शुरू करने के लिए 12 प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। इसमें कम से कम 27 दिन लगते हैं। समझौतों पर अमल में तो वर्षों लग जाते हैं। अंतिम निशाना इसी स्कीम के तहत कंस्ट्रक्शन में एफडीआई लाकर मोदी सौ स्मार्ट सिटी का सपना जल्द पूरा करना चाहते हैं।