क्रोध नष्ट करे संपदा, अभिमान गुणों को खाय

बिखरे मोती भाग-68

गतांक से आगे….
क्रोध और संताप का,
पड़े सेहत पर प्रभाव।
इन दोनों का शमन कर,
अक्षुण्ण रहेगा चाव ।। 755।।

संताप-तनाव
शमन-शांत करना, पीना, निगलना ‘अक्षुण्ण रहेगा चाव’ से अभिप्राय-जीवन जीने का उत्साह बना रहेगा।

क्रूर के आश्रित लक्ष्मी,
करती कुल का नाश।
सत्पुरूष की लक्ष्मी,
करै पीढ़ी का विकास ।। 756।।

श्रद्घाहीन को सीख दे,
और सबल से राखै बैर।
आरोग्य की श्लाघा करै,
खुदा की मांगो खैर ।। 757 ।।

भाव यह है कि जो श्रद्घाहीन को उपदेश देता हो, निर्बल होकर सबल से शत्रुता रखता हो, अयोग्य की प्रशंसा करता हो, तो ऐसा व्यक्ति स्वयं मूर्ख कहलाता है। इसलिए ऐसे मूर्ख व्यक्ति की सुरक्षा भगवान भरोसे ही होती है।
ससुर बहू के संग में,
गर करता हो परिहास।
ससुराल बसै और मान चहै,
दोनों मूरख खास ।। 758 ।।

परिहास-मजाक

बिना कर्म श्लाघा करै,
दिया वचन न निभाय।
लेकर जो देता नही,
यमराज नरक ले जाए ।। 759।।

संतन के संग साधुता,
और ढीठों को फटकार।
मायावी के संग में,
कर मायावी व्यवहार ।। 760।।

मायावी-छली, कपटी

चुगली नष्ट भक्ति करै,
और रूप बुढ़ापा खाय।
क्रोध नष्ट करे संपदा,
अभिमान गुणों को खाय ।। 761।।

अत्यागी क्रोधी अभिमानी,
मित्रद्रोही वाचाल।
पूर्ण आयु जीते नही,
मृत्यु मिलै अकाल ।। 762।।

अत्यागी-आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह करने वाला कृत्रिम अभाव को उत्पन्न करने वाला।
मित्रद्रोही-मित्र के संग विश्वासघात करने वाला
वाचाल-बकवास करने वाला

यज्ञशेष नीतिज्ञ हो,
और हो ऋजु स्वभाव।
प्राणी है ये स्वर्ग का,
पुन: स्वर्ग में जाए ।। 763।।

यज्ञशेष-आश्रित जनों को खिलाकर खाने वाला ऋजु स्वभाव-कुटिलता रहित स्वभाव सरल स्वभाव।

सुगमता से मिल जाएंगे,
जग में चाटुकार।
हितकारी कहवै सुनै
दुर्लभ है नर-नार ।। 764।।

धन स्त्री में ना लिप्त हो,
रक्षण कर तू हमेश।
आपदा काल में हित करें,
देश हो चाहे विदेश ।। 765।।

क्रमश:

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