ओ३म्:पीयूष धारा-3
श्रद्घा और विश्वास जगे जब
ओ३म् ध्यान में चित्त लगे तब
ओ३म् ध्यान का लाभ समाधि
हों सब दूर दुरिन्त अरू व्याधि ।। 67 ।।
निर्मल करके मन का दर्पण
ओ३म् पिता को करो समर्पण
वो प्रभु अनुकंपा का भागी
ओ३म् नाम का जो अनुरागी ।। 68 ।।
ओ३म् रसों में सर्वोत्तम रस
पान करने इसका तज आलस
ओ३म् सुधा रस पान करें हम
दुनितों का अवसान करें हम ।। 69 ।।
जिसने पिया ओ३म् रस प्याला
जीवन उसका हुआ निराला
ओ३म् नाम रस पीने वाला
पीकर मस्त हुआ मतवाला ।। 70।।
ओ३म् सुधा रस जो नर पीता
वो जीवन में सुख से जीता
ओ३म् सुधा रस ऐसा रस है
वर्णन में रसना बेबस है ।। 71 ।।
ओ३म् नाम की औषध ऐसी
ना जग में केाई इस जैसी
ओ३म् औषधि जिसने खाई
सकल संपदा उसने पाई ।। 72 ।।
भूखे का ज्यूं रहत है भोजन में ही ध्यान।
इसी तरह प्रिय ओ३म् का करने सदा गुणगान।।
करे ओ३म् औषध जो सेवन
स्वस्थ रहे उसका सब तन मन
जो जन ओ३म् औषधि खाये
रोग शोक सब दूर भगाये ।। 73।।
ओ३म् कवच बन जाए मेरा
असुर लगा पायें ना डेरा
निर्मल मन जब लगे ओ३म् में
हो उमंग तब रोम-रोम में।। 74 ।।