पुस्तक समीक्षा : ‘महारानी’
पुस्तक समीक्षा : ‘महारानी’
श्रीमती प्रभा पारीक ने अपनी साहित्य सेवा के लिए कई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय सम्मान प्राप्त किये हैं। उन्होंने कई विधाओं में लिखा है। उनकी प्रत्येक पुस्तक ने पाठक को बड़ी गहराई से प्रभावित किया है। उनकी पुस्तक ‘महारानी’ भी एक ऐसी ही पुस्तक है।
हमारी जीवनशैली के दृष्टिगत यह एक आम बात है कि हम अनेकों ऐसी घटनाओं को उपेक्षित करते चलते रहते हैं जो हमारे आसपास घटती रहती हैं। ये घटनाएं बड़ी महत्वपूर्ण होती हैं पर हमारा उपेक्षा-भाव उन्हें महत्वपूर्ण ढंग से हमें समझने से रोकता है। घरेलू काम वाली महिलाएं हमारे घरों में काम करती हैं पर उनकी ओर कितने लोग या साहित्यकार हैं जो देखते हैं और यदि देख भी लेते हैं तो कितने ऐसे हैं जो उनकी समस्याओं की ओर भी देखने का प्रयास करते हैं ? निश्चय ही बहुत कम, लेकिन श्रीमती प्रभा पारीक ने अपनी पुस्तक में घरेलू कामवालियों के6 हितों के लिए ही सफलतापूर्वक लिखने का उल्लेखनीय और प्रशंसनीय कार्य किया है।
डॉ मंजुला सक्सेना इस पुस्तक के विषय में लिखती हैं कि -‘यद्यपि इस कृति :महारानी’ का नामकरण हमारे घर काम पर आने वालियों के लिए उस समय किया गया संबोधन है जब हम कभी-कभी उनके प्रति नाराजगी के कारण ताने में उसे ‘महारानी’ कह देते हैं , किंतु कृति के बाद आने वाले भाग में कहानियों के रूप में जिन सेविकाओं के वर्णन कथा रूप में हैं वह अत्यंत गौरवमयी भावपूर्ण संवेदना से भरपूर है। इनमें से अधिकांश को पढ़कर हम मन ही मन उन्हें नमन किए बिना नहीं रहते। यथा झलकारी, सैरंध्री, पन्नाधाय, गोस्वामी तुलसीदास की पालक माता चुनिया, महारानी, फूलाबाई, ललिता ,अन्नपूर्णा कृष्णा , बस्ती वाली लड़की आदि।’
‘आमुख’ में लेखिका स्वयं लिखती हैं कि ‘महारानी’ अर्थात हमारी घरेलू सेविका कामवाली गृहस्वामिनी के आक्रोश को झेलने की दृष्टि से ‘महारानी’ जो समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, यह शब्द घरेलू सेविका, कामवाली महारानी की अहमियत को न केवल महिलाएं अपितु पुरुष भी मान्यता देते हैं। क्योंकि परिवार की शांति और सुख चैन उनके स्वयं के प्रयासों से कम पर घरेलू सेविकाओं के नियमित निर्विघ्न आगमन कार्यकुशलता से कितना प्रभावित होता है ? – यह हम सभी जानते हैं। उनकी सेवा से मिलने वाले सुख के एक बार आदी हो जाने के बाद उससे वंचित होने वाले को ठीक वैसी ही अनुभूति होती है जैसे असमय में मीठी नींद से जगा देने पर होती है।’
वास्तव में लेखक कैसे किसी वस्तु, व्यक्ति, स्थिति, परिस्थिति के प्रति अपनी संवेदना को और अपनी भावनाओं को कितनी उत्कृष्टता, सहजता और सरलता से प्रस्तुत कर पाठक को अपने साथ बांधने में सफल होता है, यह उसकी प्रस्तुति पर निर्भर करता है। यदि प्रस्तुति उत्तम होती है तो घटना के प्रति पाठक भी संवेदनशील होकर कुछ करने के लिए मचलने लगता है। प्रस्तुत पुस्तक में जिस प्रकार की संवेदना विदुषी लेखिका ने काम वालियों के प्रति व्यक्त की है, उससे वह पाठक के मन-मस्तिष्क में ऐसी ही मचल पैदा करने में सफल हुई हैं। प्रस्तुत पुस्तक के अध्ययन से समाज के उपेक्षित वर्ग के प्रति न केवल हमारी भावनाओं का विस्तार होता है अपितु हमारे ज्ञान में भी वृद्धि होती है।
प्रस्तुत पुस्तक 160 पृष्ठों में लिखी गई है। पुस्तक का मूल्य ₹300 है। पुस्तक के प्रकाशक साहित्यागार , धामाणी , मार्केट की गली चौड़ा रास्ता जयपुर 302003 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए 0141-2310785, 4022382 पर संपर्क किया जा सकता है। पुस्तक की लेखिका श्रीमती प्रभा पारीक का मोबाइल नंबर 94 27130007 है।
डॉ राकेश कुमार आर्य