कविता – 23
लाडी रानी उनमें एक है,
हमारे देश भारतवर्ष में,
जिनका नाम है इतिहास में,
लाडी रानी उनमें एक है,
वीरता में बेमिसाल थी ….
संकट में मातृभूमि थी,
चहुँ ओर त्राहिमाम थी,
तब देश की नायक बनी,
हाथ में देश की लगाम थी …
वह रानी नहीं तूफान थी,
हिंद की वह शान थी,
शत्रु दमन की बात जिसने
अपने मन में ली ठान थी …
तूफान से वह रुकी नहीं,
संकटों में वह झुकी नहीं,
समक्ष देख शत्रु दल –
शेरनी पीछे हटी नहीं ।…
ना बलिदान से पीछे हटी,
दी चुनौती शत्रु को कड़ी,
जिसके पवित्र भाव में,
कहीं दोष बुद्धि थी नहीं …..
देशद्रोही गद्दार जितने,
थे षड़यंत्र रचने में लगे,
रानी ने उनकी नीचता को,
कोई भाव कभी दिया नहीं ….
सम्मान भारत भाल की,
वह शत्रु को भूचाल थी ,
उसकी गर्जना के सामने ,
क्या शत्रु की औकात थी… .
पति वीर दाहिर राज थे,
पुत्र जयसिंह खास थे,
थी निपुण युद्ध नीति में
निर्णय क्षमता बेमिसाल थी ….
थी माता वीर पुत्र की,
और वीर पुत्री भी जनीं,
जिसकी कोख अमर हो गई,
देता देश श्रद्धांजलि …..
करता हिंद जिस पर नाज है ,
तड़पता सिन्ध जिसको आज है,
पद चिन्ह जिसके ढूंढने को
‘राकेश’ हृदय से बेताब है…
यह कविता मेरी अपनी पुस्तक ‘मेरी इक्यावन कविताएं’- से ली गई है जो कि अभी हाल ही में साहित्यागार जयपुर से प्रकाशित हुई है। इसका मूल्य ₹250 है)
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत