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जितने समय जहाँ हैं पूरे मन से काम करें

time and mindआजकल संक्रमण का दौर अक्सर आता-जाता रहता है। यह संक्रमण अन्यमनस्कता और उद्विग्नता के सायों को हमारे साथ कर देता है जहाँ मन का उचट जाना स्वाभाविक है और जब मन उचटने लगता है तब मस्तिष्क और शरीर भी अपने-अपने ढंग से शिथिलता को प्राप्त कर लिया करते हैं।

यह वह अवस्था है जिसमें आदमी को कुछ सूझता नहीं अथवा वह जानबूझकर करना नहीं चाहता। तरह-तरह के इंसानों की भारी भीड़ के चलते कई किस्में हमारे सामने रही हैं और रहेंगी।

खूब सारे लोग ऎसे हैं जिनके बारे में यह कहा जाता है कि ये अक्सर मन मार कर बैठ जाते हैं और इनसे कोई काम होता नहीं।

कइयों के बारे में माना जाता है कि ये लोग जब भी किसी प्रकार के परिवर्तन की सुनते हैं, काम करना छोड़ दिया करते हैं। जबकि खूब सारे ऎसे हैं जो जहाँ हैं वहाँ से भागने या परिवर्तन के लिए इच्छुक होते हैं और इस वजह से रुचि से काम नहीं करते हैं।

बहुत कम ऎसे होते हैं जो चाहे कितने प्रकार के परिवर्तन या झंझावात सामने हों, बड़ी ही मस्ती के साथ काम करते हैं और आनंद के साथ काम करने की अपनी चिरपरिचित कार्यशैली को अंजाम देते रहते हैं।

खासकर संक्रमण काल में इस प्रकार की बहुआयामी स्थितियां देखने को मिलती हैं। कई बार लोग काम नहीं करने के बहानों के रूप में भी इसका इस्तेमाल करते हैं।

काम नहीं करना हो तब अक्सर लोगों को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि क्या करना है, कितने दिन रहना है, सारा हम ही हम करेंगे क्या, आने वाला क्या करेगा … आदि-आदि।

इस स्थिति को न स्थितप्रज्ञता कहा जा सकता है, न धैर्य वाली मनःस्थिति। यह हालात अपने आप में किसी भी आदमी की बहानेबाजी, उद्विग्नता और अशांत-असंतोष चित्त को ही प्रकट करती है।

जीवन के किसी भी क्षेत्र में हम कहीं भी रहें, कैसे भी रहें, हमारा पहला फर्ज यही है कि पूरे मन से काम करें, बहाने न बनाएं। जो जाने की फिराक में हैं वे जब तक विद्यमान हैं उस जगह के काम पूरे करें।

जिन लोगों को भावी की प्रतीक्षा है उन्हें चाहिए कि वे जब तक स्थान पर टिके हुए हैं तब तक पूरे उत्साह के साथ काम करें।

आना और जाना न सिर्फ आदमी बल्कि दुनिया की प्रत्येक जड़ के साथ भी है और चेतन के साथ भी। इसलिए जो जहां है वहां जितने समय तक है अपने सारे के सारे काम पूरे उत्साह के साथ करे और इस बात की चिंता करें कि आज अपना है, कल के बारे में न सोचें।

जीवन का हर क्षण काम करने के लिए है, कुछ नया करने के लिए है, कुछ करके दिखाने के लिए है। इसके लिए स्थान सापेक्ष या व्यक्ति सापेक्ष न रहें, कत्र्तव्य कर्म के प्रति सचेष्ट रहें और इस प्रकार के काम करें कि लोगों के जेहन में जाने के बाद भी बरसों तक सकारात्मक छवि के साथ बने रहें, श्रद्धा और आदर के पात्र रहें। जीवन को व्यवसाय न बनाएं बल्कि सेवा का पर्याय बनाएं।

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