आशा है, नरेंद्र मोदी के स्वच्छता-अनुरोध के प्रति भी जनता में यह उत्साह बना रहेगा। स्वयं प्रधानमंत्री और कई मंत्रियों ने आज झाड़ू लगाई। करोड़ों लोगों ने उन्हें झाडू लगाते टीवी चैनलों पर देखा। क्या इसका कोई प्रभाव उन पर नहीं होगा? भारत में व्यक्तिगत स्वच्छता जितनी होती है, शायद दुनिया के किसी देश में नहीं होती। छूआ छूत की जातीय बीमारी इसका ठोस प्रमाण है लेकिन सामाजिक अस्वच्छता भारत में उतनी ही ज्यादा है। स्वच्छता के प्रति भारत का रवैया शर्मनाक है। साफ सफाई करने वाले को इस देश में जितनी घृणा से देखा जाता है किसी देश में नहीं देखा जाता। उसकी इज्जत और लज्जत (पैसा) दोनों ही निम्नतम है। जब तक सफाई के काम के लिए उतना ही पैसा न दिय़ा जाएगा, जितना डाक्टरी, वकालत, इंजीनीयरी, प्रोफेसरी आदि कामों के लिए दिया जाता है, देश में सार्वजनिक सफाई कभी परवान नहीं चढ़ेगी। व्यक्तिगत स्तर पर सफाई की महिमा कराने के लिए यह करना जरूरी है।
यदि पूरा भारत साफ सुथरा रहे तो देश की आधी से ज्यादा बीमारियां पैदा ही नहीं होंगी। स्वास्थ्य का बजट आधा रह जाएगा। हमारे नागरिक बलिष्ठ और दीर्घजीवी होंगे। यदि वातावरण स्वस्थ हो तो लोगों के चित्त में प्रसन्नता और उत्साह का संचार होगा। उनकी कार्यक्षमता दुगुनी हो जाएगी। यदि शौचालयों पर देश उतना ही जोर दे जितना देवालयों पर देता है तो हमारे देवालय और गंगा जैसी नदियां पवित्रता की मिसाल बन जाएं। देश की माता और बहनों को खुले में शौच करने की जो शर्मिंदगी भुगतनी पड़ती है, उससे भी उनको मुक्ति मिले। सामाजिक और सांस्कृतिक क्रांति का यह काम सिर्फ कानून के दम पर नहीं किया जा सकता। कठोर कानून तो चाहिए ही, उसके साथ-साथ सामाजिक चेतना और जन आंदोलन बेहद जरूरी है।
इस अभियान को हाथ में लेकर नरेंद्र मोदी ने ऐसा काम किया है, जो उन्हें प्रधानमंत्री के पद से भी उंचा उठाता है। प्रधानमंत्री तो एक पद भर होता है। उस पर कोई भी बैठ सकता है या बिठा दिया जाता है। वह कुर्सी पर बैठकर नौकरशाही के जरिए काम करता है लेकिन जननेता तो सीधा जनता से बात करता है और उसे प्रेरित करता है। यह मोदी के जननेता बनने का शुभारंभ है। मुझे विश्वास है कि वे नशाबंदी, गौ रक्षा, स्वभाषा, सर्वशिक्षा आदि के अभियानों को भी इसी तरह शुरू करेंगे।