प्रह्लाद सबनानी
आज पूरे विश्व में 3.2 करोड़ से अधिक अप्रवासी भारतीय निवास कर रहे हैं। करीब 25 लाख भारतीय प्रतिवर्ष भारत से अन्य देशों में प्रवास के लिए चले जाते हैं। विदेश में बस रहे भारतीयों ने भारतीय संस्कृति का झंडा बुलंद करते हुए भारत की साख को न केवल मजबूत किया है बल्कि इसे बहुत विश्वसनीय भी बना दिया है। अप्रवासी भारतीयों ने अपनी कार्यशैली से अन्य देशों में स्वयं को तो स्थापित किया ही है, साथ ही इन देशों में अपने लिए कई अनगिनित उपलब्धियां भी अर्जित की हैं। इन देशों में निवास कर रहे अप्रवासी भारतीय वहां के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक क्षेत्रों में अपनी भागीदारी भी बढ़ाते जा रहे हैं।
तीन विभिन्न कालखंडों में भारतीय विभिन्न देशों में प्रवास पर भेजे गए थे अथवा वे स्वयं गए थे। सबसे पहिले तो भारत पर अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान लाखों की संख्या में भारतीय, श्रमिकों के तौर पर, ब्रिटिश कालोनियों (ब्रिटेन द्वारा शासित देशों) में भेजे गए थे। आज इन देशों में भारतीयों की आगे आने वाली पीढ़ियां बहुत प्रभावशाली बन गई हैं एवं इनमें से कुछ तो इन देशों में प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति के पदों तक पहुंच गए हैं। जैसे, मारिशस में भारतीय मूल के सर शिवसागर रामगुलाम मारिशस के प्रथम मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री एवं छठे गवर्नर-जनरल रहे हैं। आप सनातन हिन्दू धर्म के अनुयायी थे एवं हिन्दी भाषा के पक्षधर और मारिशस में भारतीय संस्कृति के पोषक रहे हैं। आपके कार्यकाल में मारिशस में हिन्दी के पठन-पाठन में बहुत उन्नति हुई। आगे चलकर भारतीय मूल के ही श्री अनिरुद्ध जगन्नाथ भी मारिशस के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दोनों पदों पर रहे।
दक्षिणी अमेरिका के गयाना देश में भारतीय मूल के श्री छेदी भरत जगन को देश के सबसे बड़े नेताओं में गिना जाता है। आपको वहां राष्ट्रपिता के रूप में देखा जाता है। आप ब्रिटिश गयाना के प्रधानमंत्री रहे एवं बाद में स्वतंत्र गयाना के राष्ट्रपति भी रहे। त्रिनिदाद एण्ड टोबैगो में भारतीय मूल की सुश्री कमला प्रसाद बिसेसर प्रधानमंत्री के पद को सुशोभित कर चुकीं हैं। इसी प्रकार भारतीय मूल के श्री महेंद्र पाल चौधरी भी फिजी में प्रधानमंत्री बने थे। भारतीय मूल के श्री वैवेल रामकलावन हिंद महासागर के द्वीपीय देश सेशेल्स के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए हैं। 43 वर्ष बाद सेशेल्स में विपक्ष का कोई नेता राष्ट्रपति निर्वाचित हुआ है। इसी प्रकार कोस्टा पुर्तगाल, सूरीनाम एवं पूर्वी अफ्रीका के देशों में भी भारतीय मूल के कई व्यक्ति इन देशों के उच्चत्तम पदों पर पहुंचे हैं।
वैसे विदेशी धरती पर श्री दादाभाई नौरोजी ब्रिटेन में भारतीय मूल के सम्भवतः पहले सांसद चुने गए थे। आप वर्ष 1892 के आम चुनाव में जीतकर संसद तक पहुंचे थे। श्री दादाभाई ने हाउस ऑफ कामन्स में भारतीयों की निर्धनता और अशिक्षा के लिए ब्रिटिश शासन को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा था कि ब्रिटिश राज में रहने वाले भारतीयों की औसत आमदनी बीस रुपए प्रतिवर्ष से भी कम है।
भारत द्वारा अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, एक बड़ी संख्या में भारतीय अन्य देशों में जाकर अप्रवासी भारतीय के तौर पर बस गए थे। उस समय पर इनमें से एक बहुत बड़ा वर्ग किसी न किसी प्रकार की तकनीकी दक्षता जैसे कारीगर, पलंबर, इलेक्ट्रिशियन, आदि हासिल किए हुए था। इन लोगों को “ब्लू कोलर” रोजगार आसानी से उपलब्ध हो रहे थे और ये भारतीय एक बड़ी संख्या में अधिकतर सऊदी अरब, यूनाइटेड अरब अमीरात, कतर एवं अन्य मिडिल ईस्ट देशों में अप्रवासी भारतीय बनकर रहने लगे। उस समय पर इन देशों में अप्रवासी भारतीयों को छोटे छोटे दुकानों पर भी रोजगार आसानी से उपलब्ध हो रहा था।
इसके बाद 1970 के दशक एवं इसके बाद के कालखंड में भारत से बुद्धिजीवी, प्रोफेशनल एवं पढ़े लिखे वर्ग के लोग भी अन्य देशों की ओर आकर्षित होने लगे एवं अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी, फ्रान्स, इटली आदि देशों में जाकर अप्रवासी भारतीय के रूप में बस गए। आज ये अप्रवासी भारतीय इन देशों में इंजीनीयर, डॉक्टर, प्रोफेसर, आदि अच्छे पदों पर कार्यरत हैं। इनमें से कई तो आज इन देशों की बड़ी बड़ी कम्पनियों में मुख्य कार्यपालन अधिकारी के रूप में भी बहुत सफलतापूर्वक कार्य कर रहे हैं। अमेरिका एवं ब्रिटेन जैसे अन्य कई देशों में तो आज सबसे अधिक डाक्टर एवं इंजीनीयर भारतीय मूल के लोग ही हैं एवं इन देशों के वित्तीय क्षेत्र में भी भारतीय मूल के लोग सबसे अधिक पाए जाते हैं। इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं को गति देने में इन अप्रवासी भारतीयों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। एक और महत्वपूर्ण क्षेत्र जिसमें आज भारतीय मूल के लोग इन देशों में लगातार बहुत सफल हो रहे हैं वह है राजनीति का क्षेत्र। अमेरिका में तो भारतीय मूल की श्रीमती कमला हैरिस ने प्रथम बार महिला के रूप में उप-राष्ट्रपति के पद पर चुनी जाकर वहां इतिहास रच दिया है।
भारतीय मूल के ही श्री बॉबी जिंदल अमेरिका के लूसियाना प्रांत के गवर्नर रहे हैं। इसके पूर्व आप अमेरिकी राज्य लुईजियाना की प्रतिनिधि सभा के सदस्य भी रह चुके हैं। इसी प्रकार भारतीय मूल के ही श्री रिचर्ड राहुल वर्मा ने भारत-अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु समझौते में अहम भूमिका निभाई थी। आप भारत और अमेरिका के बीच मजबूत संबंधों के हिमायती रहे हैं। वर्ष 2014 में आप भारत में अमेरिकी राजदूत के रूप में भी शपथ ले चुके हैं। भारतीय मूल की श्रीमती निकी हेली यूएनओ में अमेरिका की स्थायी राजदूत रह चुकी हैं एवं श्रीमती तुलसी गबार्ड अपने हिन्दू होने पर गर्व की अभिव्यक्ति सार्वजनिक रूप से करती हैं एवं आप अमेरिका की राजनीति में बहुत सक्रिय रहकर राष्ट्रपति पद की दौड़ में भी शामिल रह चुकी हैं। इसी प्रकार कनाडा एवं ब्रिटेन में भी भारतीय मूल के कई व्यक्ति वहां की केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालयों (विदेश, वित्त, गृह, आदि) में मंत्री पद पर आसीन हो गए हैं। ब्रिटेन एवं अमेरिका में तो भारतीय मूल के व्यक्ति वहां का अगला प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति बनने की दौड़ में भी शामिल हो गए हैं।
भारतीय मूल के ही श्री देवन नायर सिंगापुर के राष्ट्रपति रह चुके हैं एवं आपने सिंगापुर में नेशनल ट्रेड यूनियन की स्थापना की थी। इसके बाद भारतीय मूल के ही श्री एस आर नाथन भी सिंगापुर के राष्ट्रपति रहे हैं। वर्ष 1999 से 2011 तक के खंडकाल में आप इस पद पर बने रहे थे।
अप्रवासी भारतीय न केवल अपने देशों के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं बल्कि वे भारत के आर्थिक विकास में भी अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। पिछले वर्ष अप्रवासी भारतीयों ने लगभग 6.5 लाख करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा भारत में भेजी है। पूरे विश्व में अप्रवासी भारतीय सबसे अधिक विदेशी मुद्रा भारत में भेज रहे हैं। अप्रवासी भारतीयों का भारत की विभिन्न कम्पनियों में विदेशी निवेश भी बहुत तेज गति से बढ़ रहा है। इसका अच्छा प्रभाव यह भी देखने में आ रहा है कि अप्रवासी भारतीयों के देखादेखी इन देशों के मूल निवासी भी भारत में अपने विदेशी निवेश को बढ़ा रहे हैं जिसके चलते भारत में कुल विदेशी निवेश द्रुत गति से बढ़ रहा है। इन विभिन्न देशों में अप्रवासी भारतीय, भारत एवं इन देशों के बीच विदेशी व्यापार एवं विदेशी निवेश के मामले में एक सेतु का कार्य कर रहे हैं। भारतीय मूल के लोग इन देशों के कई संस्थानों से भी जुड़े हुए हैं एवं इस इन संस्थानों को भारत के प्रति नरम रूख अपनाने की प्रेरणा भी देते रहते हैं।
विशेष रूप से वर्ष 2014 के बाद एक बड़ा बदलाव भी देखने में आ रहा है। वह यह कि अब भारतीय मूल के लोग इन देशों में भारत की आवाज बन रहे हैं इससे इन देशों में भारत की छवि में लगातार सुधार दृष्टिगोचर है। पूर्व के खंडकाल में भारत की पहिचान एक गरीब एवं लाचार देश के रूप में होती थी। परंतु, आज स्थिति एकदम बदल गई है एवं अब भारत को इन देशों में एक सम्पन्न एवं सशक्त राष्ट्र के रूप में देखा जा रहा है। हाल ही के समय में अन्य देशों में भारतीयों की विश्वसनीयता एवं साख भी बहुत बढ़ी है क्योंकि विशेष रूप से वर्ष 2014 के बाद से भारत की राजनीति बहुत संतुलित एवं स्थिर रही है एवं भारत में किसी भी प्रकार का स्कैम नहीं हुआ है।
भारत में ईज ओफ डूइंग बिजनेस के क्षेत्र में बहुत सुधार हुआ है, ब्रिटिश राज के समय के कई पुराने कानून समाप्त कर दिए गए हैं, वीजा प्रदान करने सम्बंधी नियमों को शिथिल कर दिया गया है। इस सबका असर यह हुआ है कि विदेशों में आज अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भारतीयों की आवाज को गम्भीरता पूर्वक सुना जा रहा है एवं इन देशों में बसे भारतीय भी अब अपनी भूमिका प्रभावशाली तरीके से निभाने लगे हैं। भारतीय संस्कृति की विचारधारा का अप्रवासी भारतीय आज सही तरीके से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
अप्रवासी भारतीयों की भारत के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका है। अतः प्रतिवर्ष 9 जनवरी को अप्रवासी भारतीय दिवस मनाया जाता है। अप्रवासी दिवस पर उन भारतीयों को सम्मानित किया जाता है जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में विदेश में विशेष उपलब्धियां हासिल कर भारत का नाम रोशन किया है।
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।