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इतिहास के पन्नों से

जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस आए थे सातरोड हिसार

लाला हरदेव सहाय स्वामी श्रद्धानन्द जी के शिष्य थे। आप मियांवाली जेल में स्वामी जी के साथ गुरु का बाग मोर्चा सत्याग्रह के अंतर्गत बंद रहे थे। यह मोर्चा सिखों को गुरु का बाग़ गुरूद्वारे को महंतों के चंगुल से मुक्त करवाने के लिए चलाया गया था। आर्यसमाज के शीर्घ नेता और प्रधान स्वामी श्रद्धानंद अंग्रेजों के चाटुकार महंतों के चंगुल से गुरुद्वारों को मुक्त करवाने के लिए जेल जाते है। इतिहास इन पलों को स्वर्ण अक्षरों में अंकित करता है। जेल में उन्होंने अपनी दिनचर्या को बंदी गृह के विचित्र अनुभव के नाम से पुस्तक रूप में लिखा था। लाला लाजपतराय दीर्घ काल तक हिसार में वकालत करते थे। उस काल में उन्होंने आर्यसमाज का हिसार और उसके देहात में बहुत प्रचार किया था। उनके सहयोगी थे डॉ रामजीलाल हुड्डा, धनपतराय वकील , लाला चंदुलाल , बलवंत तायल आदि थे। हिसार के सातरोड के लाला हरदेव सहाय ने स्वामी श्रद्धानन्द जी से प्रेरणा लेकर अपना जीवन गौसेवा और शिक्षा के प्रचार प्रसार में लगाया। उन्होंने अनेक पाठशालायें ग्रामीण क्षेत्र में स्थापित की जिससे शिक्षा क्रांति हो। स्वामी जी की प्रेरणा से लाला हरदेव सहाय ने 1928 में अपने ग्राम सातरोड जिला हिसार में गौशाला की स्थापना लाला लाजपतराय की स्मृति में की थी। यहाँ बूढ़ी गैर-दुधारू गौओं को संरक्षण दिया जाता था। 1938 की बात है। उत्तर भारत सूखा पड़ा था। ऐसे में गौ शालाओं में हरे चारे की कमी हो गई। गौशाला की हालत ख़राब हो गई। नेताजी का हिसार और फिर सातरोड आना हुआ। उन्होंने हिसार में बड़ी जनसभा की थी जिसमें लोगों को स्वतंत्रता के लिए जागृत किया। आप उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर थे। आपको सुनने बड़ी संख्या में इस क्षेत्र के लोग सुनने आये। आप ने लाला जी की स्मृति में स्थापित शिल्प विद्यालय और गौशाला का दौरा किया और गौशाला को सहयोग करने की मार्मिक अपील भी निकाली। आपकी अपील पर हज़ारों रुपया दान एकत्र हुआ। जिससे गौशाला को सहयोग मिला। नेता जी का यह योगदान इतिहास के पन्नों में विलुप्त हो चूका है।

(मेरे स्वर्गीय दादा जी और उनके बड़े भ्राता उस समय हांसी निवासी थे। आप दोनों नेताजी को सुनने उस समय सातरोड गए थे। -#डॉ_विवेक_आर्य)

सलंग्न चित्र- नेता जी के गौशाला आगमन के समय 1938 में लिया गया था।

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