डॉ0 वेद प्रताप वैदिक
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता को अदालत ने सजा सुनाई, लेकिन सारा देश जानता है कि इस सजा का कोई खास असर होने वाला नहीं है। जयललिता जैसे कई मुख्यमंत्री पहले भी जेल की हवा खा चुके हैं। उनमें से कई अभी भी राजनीति में दनदना रहे हैं। भ्रष्टाचार में जेल काटने के बावजूद वे केंद्र में मंत्री रह चुके हैं। एक मुख्यमंत्री जेल काटते-काटते जमानत पर छूट आए हैं और आजकल चुनाव-सभाओं में शेर की तरह दहाड़ रहे हैं। एक प्रधानमंत्री तोपों की दलाली में फंसे पाए गए लेकिन न उनके जीते जी अदालतें उनकों पकड़ पाईं और न
अदालतों का हाल तो यह है कि जयलिलता पर 1996 में मामला दर्ज हुआ था और अब 18 साल बाद उसका फैसला आया है और यह फैसला भी कैसा? यह अंतिम नहीं है। इस पर भी अपीलें होंगी। अपील तय होने में 20 साल भी लग सकते हैं। तब तक जयललिता होंगी भी या नहीं, यह किसी को पता नहीं। यदि अपील के तय होने तक मुजरिम जेल में रहे तो भी कुछ संतोष की बात है लेकिन अभी जमानत के लिए जी-तोड़ कोशिश की जा रही है। जमानत मिलने पर सारे मामलों को रफा-दफा करने में काफी आसानी होती है।
अभी जयललिता को चार साल की सजा और 100 करोड़ रु. जुर्माना हुआ है। यह भी क्या सजा है? ऐसी सजा तो साधारण अपराधी के लिए भी कम है। 20 साल पहले जिसने 66 करोड़ रु. भ्रष्ट तरीकों से जमा किए, उसके पास अब कम से कम 600 करोड़ रु. होंगे। यह तो साधारण अपराधी का गणित है लेकिन जयललिता याने मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री यदि कोई अपराध करते हैं तो इन्हें असाधारण अपराधियों की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। इनकी सजा उतनी ही कठोर होनी चाहिए, जितनी ऊंचाई पर ये बैठे होते हैं। यदि ये भ्रष्टाचार में पकड़े जाएं तो इन्हें मृत्युदंड या आजन्म कैद होनी चाहिए (अपराध की गंभीरता के हिसाब से) और 100-200 करोड़ नहीं, उनकी सारी संपत्ति जब्त की जानी चाहिए। उनके पास सिर्फ इतने साधन छोड़े जाने चाहिए कि वे अपना गुजारा कर सकें। उनके लिए भीख मांगने की नौबत न आए। ऐसी सजा जनता के चुने प्रतिनिधियों, सरकारी कर्मचारियों और न्यायधीशों को मिलनी ही चाहिए। ऐसे सजायाफ्ता लोगों को दुबारा राजनीति, सरकार और अदालतों में कोई स्थान नहीं मिलना चाहिए। तभी देश में से भ्रष्टाचार मिटेगा और भ्रष्टाचार करने वालों के दिल में दहशत बैठेगी।