हमारे जीवन पर उन सभी वस्तुओं और व्यक्तियों का प्रभाव पड़ता है जो हमारे आस-पास होते हैं अथवा जिनके आस-पास हम अधिकतर समय रहा करते हैं। इनका सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव न्यूनाधिक रूप में बना रहता है। जब सकारात्मक प्रभाव अधिक होता है तब हमें प्रसन्नता होती है और सुकून मिलता है। इसके विपरीत नकारात्मकता की अभिवृद्धि होने पर खिन्नता और अवसाद घेर लिया करते हैं।
बहुधा हम अपने कारण से प्रसन्न या नाराज नहीं रहते बल्कि उन लोगों के कारण रहते हैं जो हमारे आस-पास होते हैं। ये लोग जब अपने किसी स्वार्थ या काम के मारे हमारे बारे में बुरा सोचते हैं तब इनके नकारात्मक विचार और धुंध हमारे आभामण्डल को प्रभावित कर हमें परेशान करती है।
हमारे आस-पास जब हम ऎसे लोगों को रखते हैं जो मनुष्य होने के काबिल नहीं होते, तब भी ऎसी ही स्थितियां सामने आती हैं। यही बात वस्तुओं पर लागू होती है। जिन वस्तुओं का हमारे लिए कोई उपयोग नहीं होता, जो वस्तु हमारे किसी काम की नहीं आने वाली। जो वस्तु हमारे घर, दुकान या दफ्तर में बेकार पड़ी होती है, उससे भी नकारात्मक ऊर्जा का सृजन होता है।
यह पूरा संसार चलायमान है, जड़ भी चंचलता में ही प्रसन्न रहने का आदी होता है और चेतन भी। परिवर्तन सभी को प्रिय होता है और इस कारण से हर परिवर्तन प्रसन्नता का कारक होता है। किसी भी व्यक्ति या वस्तु के किसी भी एक स्थान पर बंध जाने अथवा जमा पड़े रहने का दुष्परिणाम यह होता है कि उससे नकारात्मक किरणों का निरन्तर उत्सर्जन होता रहता है। कई लोगों की तरक्की बाधित होने का मूल कारण यही होता है।
कई बार हम नाकारा, पैशाचिक वृत्ति वाले, मलीन और स्वार्थी लोगों की संगति के कारण प्रगति नहीं कर पाते जबकि कई बार अनुपयोगी वस्तुओं के हमारे पास पड़े रहने के कारण। हालात कमोबेश सभी मामलों में एक से होते हैं। जिन लोगों का कोई उपयोग नहीं है, जो स्वार्थी, धूर्त, मक्कार और नालायक किस्म के हैं, उनका सामीप्य तक भी बुरा है। यहाँ तक कि ऎसे लोगों का अनचाहे नाम स्मरण हो जाने पर भी पाप लगता है।
दीवाली की साफ-सफाई का वार्षिक पर्व हमें दो प्रकार के संदेश देता है। एक यह कि जो लोग समाज या देश के काम के नहीं हैं, समाज और देश में गंदगी फैलाते हैं, उनसे मुक्ति पाने का प्रयास करें। दूसरा यह है कि अपने पास जो कुछ है, उसे शुद्ध और स्वच्छ रखें, उसकी शुचिता बनाए रखें और जो अपने काम नहीं आ पा रहा है, उसे घर से बाहर करें। जरूरतमन्दों को दे दें, बेच दें या और जो कुछ करें, मगर अपने यहां न रखें।
दीपावली की यह साफ-सफाई अपरिग्रह और मितव्ययता का संदेश भी देती है। जितनी जरूरत हो उतनी ही वस्तुएं अपने यहाँ रखें। आजकल हमने इतनी सारी मशीनें, संसाधन, साजो-सामान और उपकरण हमारे घरों में रख लिये हैं कि लगता है जैसे हम घर में नहीं बल्कि कबाड़ के बीच जीवनबसर कर रहे हैं।
वस्तुएं और व्यक्ति जब निरन्तर चलायमान होते हैं तभी सकारात्मक ऊर्जा का संचरण करते हैं, उपयोगी नहीं रहने पर इनसे नकारात्मकता का प्रभाव बढ़ता है। इससे घर के लोगों के मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार के स्वास्थ्य पर फरक पड़ता है और घर का आकाश तत्व क्षीण होने के कारण खुलापन, उदारता तथा सेवा व्रत का भाव नहीं रह पाता।
लम्बे समय से एक ही स्थान पर पड़ी रहने वाली इन जड़ वस्तुओं से अजीब सी गंध हमेशा निकलती रहती है जो इनके अभ्यस्त हो चुके घर में रहने वालों को महसूस नहीं होती लेकिन आगंतुकों को ऎसे कबाड़िया घरों से अजीब गंध आती है जो हमेशा यह संकेत करती है कि जितना जल्दी हो, मेल-मुलाकात और काम पूरा कर लौट जाएं।
यह नकारात्मकता और सकारात्मकता हर घर में अच्छी तरह महसूस की जा सकती है। इस प्रकार की गंध से ही साफ पता चल जाता है कि कौनसे घर में सकारात्मक ऊर्जा है और किसमें नहीं। अनुपयोगी सामग्री के कबाड़ से घर का वास्तु भी दूषित होता है।
यह तय मानकर चलना चाहिए कि जितना इंसान चलेगा उतना स्वस्थ और सुखी रहेगा। इसी प्रकार जो कोई सामग्री जितने अधिक स्थान बदलेगी, उपयोग में आती रहेगी, उतनी अधिक सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करती रहेगी। यही बात लक्ष्मी के लिए है। लक्ष्मी चंचल है। जो लोग इसे कैद कर रखते हैं उन पर यह कुपित होती है। इसलिए लक्ष्मी का हमेशा उपयोग होते रहना जरूरी है।
जो लोग लक्ष्मी को अपने यहीं कैद कर रखते हैं उनके लिए वह लक्ष्मी किसी काम नहीं आती बल्कि लक्ष्मी मैया ऎसे लोगों को बंधक बनने की दिशा में मजबूर कर देती है और ऎसे लोग किसी न किसी बहाने जेल की हवा खाने को विवश हो ही जाते हैं।
पंचतत्वों से बनी यह पूरी दुनिया तभी तक ऊर्जित रहती है जब तक चांचल्यपूर्ण बनी रहे, किसी भी तत्व के एक स्थान पर बंध जाने से कई प्रकार के दोष अपने आप उत्पन्न हो जाते हैं और वे तमाम प्रकार के विकारों को जन्म देते हैं।
दीवाली पर होने वाली साफ-सफाई में इस बात पर ध्यान केन्दि्रत करें कि आवश्यकताओं और संसाधनों को जहाँ तक हो सके, सीमित रखें तथा जो वस्तुएं अपने लायक नहीं हैं उन्हें उपहार में अथवा मोल में योग्य लोगों तक पहुँचा दें।
यह सफाई अपने भीतर कई संदेश लिए हुए है। दीपावली अंधेरों, बैक्टीरियाओं, कीटाणुओं, सूक्ष्म जीवों से मुक्ति के लिए साफ-सफाई आदि के साथ ही अनचाही और अनुपयोगी वस्तुओं से मुक्ति और कम से कम संसाधनों में आवश्यकताओं की पूर्ति का संदेश भी देती है।
प्रकृतिस्थ होने की कोशिश करना और अपने मनुष्य होने के मूल स्वभाव में लौटना ही सबसे बड़ी साफ-सफाई है। बाहरी सफाई के साथ ही मन-तन और मस्तिष्क की साफ-सफाई भी करें तभी इस बार दीपावली पर लक्ष्मी मैया की प्रसन्नता प्राप्त की जा सकती है क्योंकि लक्ष्मी मैया बाहरी सफाई के साथ ही चित्त की शुद्धि को भी देखती हैं।