गणतंत्र दिवस पर विशेष
रचनाकार- दर्शनाचार्या विमलेश बंसल आर्या
यदि वेदानुकूल हो संविधान हमारा।
तो स्वर्ग बने स्वराज्य प्यारा।।
जैसा कि हम सब जानते हैं आज ही के दिन 26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ, आज हम सभी वीर बलिदानियों को नमन करते हुए 73वाँ गणतंत्र दिवस मना रहे हैं।
राष्ट्र की सेवा व उसके प्रति समर्पण का भाव प्रत्येक भारतीय का अहर्निश कर्तव्य है। माता भूमि: पुत्रोSहं पृथिव्या अर्थात् माता भूमि है और मैं उसका पुत्र हूँ तो पुत्र का कर्तव्य बनता है मॉ की सेवा, सुरक्षा, सत्कार करना, संवर्धन हेतु समर्पित भाव से कार्य करना।
वेद का स्पष्ट आदेश है अपने राज्य को स्वस्थ सुखी समृद्ध बनाओ। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद चारों वेदों में जगह जगह राष्ट्र कैसे समुन्नत हो? मन्त्र मिलते हैं।
यजुर्वेद एक मन्त्र में तो पूरी राष्ट्र प्रार्थना ही वर्णित है जिसमें चारों वर्णों के, चारों आश्रमों हेतु खुशहाल रहने के लिए निर्देश है।
भगवान राम भगवान कृष्ण इत्यादि महान आर्य पुरुषों ने भी वेदानुकूल ही राज्य किया।
राष्ट्र प्रेम की एक अद्भुत झलक भगवान श्रीराम के लंका विजयोत्सव कर जब स्वदेश लौट रहे थे, तब लक्ष्मण जी के कथन के उस प्रत्युत्तर में मिलती है लक्ष्मण कहता है-भैया क्यों नहीं आप यहां का राज्य सुख भोगें, तब भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण को कहते हैं – जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी–
अर्थात् हे भाई लक्ष्मण! जननी और जन्मभूमि का सुख स्वर्ग से भी बढ़कर है।
महर्षि दयानन्द भी सत्यार्थ प्रकाश में लिखते हैं- कोई कितना भी करे किन्तु स्वदेशी राज्य सर्वोपरि होता है।
73 वें गणतंत्र दिवस के साथ साथ हम आज आजादी का अमृत महोत्सव भी सोल्लास मना रहे हैं। संयोग है इस 73 का योग दश और दश का योग एक है जो परस्पर जुड़कर एकत्व की भावना का संदेश दे रहा है एक अर्थात् प्रथम एक अर्थात् जो अनेक का निर्माता है। यह गणतंत्र हमें अपने राष्ट्रीय मूल्यों, जीवन पद्धतियों व पुरातन परम्पराओं के स्मरण के साथ यह भी स्मरण दिलाता है कि हम अपने राष्ट्रीय जीवन का निर्वहन कैसे और क्यों करें।
हमारा भारतीय संविधान वेद के अनुसार महाराज मनु कृत मनुस्मृति के शाश्वत सिद्धांतो को समझकर जिस दिन होगा, चंद मिनटों में सभी समस्याओं का निराकरण हो सकता है।
किसी भी भारतीय मतावलंबी की प्रार्थना भारत माता की जय के साथ ही पूर्ण होती है
26 जनवरी 1950 से अब तक इस वर्तमान संविधान में 100 से अधिक संशोधन समय समय की आवश्यकतानुसार किये गए। किन्तु दुर्भाग्यवश संविधान में वर्णित राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को हम गत 73 वर्षों में भी लागू नहीं कर पाए, जिसमें गौ रक्षा, समान नागरिक संहिता तथा नागरिकों के सामाजिक व आर्थिक विकास के समान अवसरों की बात कही गई है अनुच्छेद 29 और 30 के द्वारा अल्पसंख्यकों को दिये गए विशेषाधिकारों से देश के अन्य नागरिकों को यहां तक कि अनुसूचित जाति व जन जातियों को भी वंचित रखा गया, सम्पूर्ण विश्व में संभवतः हमारा ही संविधान है जो अल्पसंख्यकों को वे अधिकार देता है जिसके लिये यहां के बहुसंख्यक भी तरसते हैं
आज महती आवश्यकता है dr भीमरावअंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान में संशोधन की जिसमें दो मुख्य बिंदु अभी अत्यधिक आवश्यक
1-समस्त विद्यालयों में वैदिक शिक्षा अनिवार्य हो।
2- समान नागरिक संहिता कानून बने।
लगभग 125 संशोधन अब तक हुए देशकाल परिस्थितिनुसार।
आज यदि यह 2 संशोधन और हो जाएं अर्थात् 2 नियम और बन जाएं
तो फिर गर्व से गा सकेंगे-
जहाँ डाल डाल पर,,,,,,,
हमारे वैदिक मंत्रों में शक्ति, संगठन, शांति, सद्भाव ईश्वर ने किस तरह हमें मूल में दिया है आज चिन्तन कर प्रचार प्रसार करते हुए उस पर चलने की आवश्यकता है।।
मैंने आज इस पावन अवसर पर ऋग्वेद के प्रथम मंडल के अस्सीवें सूक्त के सभी सोलह मंत्रों का काव्य भावार्थ करने का प्रयास किया है जिसमें स्वराष्ट्र कैसे सुखकर हो? वर्णन मिलता है।-
सभी षोडश मंत्रों के अन्त में एक ही सूक्ति है जिसमें ईश्वर का स्पष्ट आदेश है अपने राष्ट्र की अर्चना करो —
*अर्चन्ननु स्वराज्यम्*
ऋग्वेद-१-८०-१,२,३,४,५,६,७,८,९,१०,११,१२,१३,१४,१५,१६
🎤 *गीत*
विमल वेद वाणी आधारित,
सुखद राष्ट्र सुंदर सु प्यारा।
नित हो राष्ट्र आराधन भारा।
जय जय हो गणतंत्र हमारा।।
ऋग्वेद के प्रथम मंडल पर,
एक बार हम नजर दौड़ाएं।
80वाँ सूक्त मंत्र हैं षोडश ,
जिनसे स्वर्णिम राष्ट्र सजाएं।
ऐसा हो स्वराज्य हमारा,
सुख, शांति, समृद्धि आधारा।।
जय जय जय गणतंत्र हमारा,,,
१-
सबका एक ही ध्येय लक्ष्य हो,
स्वराष्ट्र उन्नति हित कर्म,
चक्रवर्ती हो राज्य, सामिग्री,
एकत्रित संयुक्त हो धर्म।
आध्यात्मिक, भौतिक सुख हेतु,
सेवा संरक्षण वृद्धि भारा।।
जय जय जय——
२- हम सब मिलजुल प्रेम भाव से,
करें परस्पर वर्धन सुख का,
सबकी उन्नति में स्व उन्नति,
शत्रु निवृत्ति, धर्म प्रशंसा।
धर्माचरण से युक्त राष्ट्र हो,
आओ पेंग बढावें भारा।।
जय जय जय——–
३- सूर्य तुल्य जिनकी हो प्रसिद्धि,
होते वे जन ऐश्वर्य भोक्ता,
कीर्ति पताका फैले नभ में,
अर्चन पूजन सत्कृत होता।
राष्ट्र पुरुष उन सब वीरों पर,
गर्व करें सहयोग दे भारा।।
जय जय जय—-
४- जो हों चाहक राष्ट्र प्रणेता,
विद्या धर्म प्रचार करें।
विशेष नीति और न्याय नियामक,
हो धर्मात्मा व्यवहार करें।
पिता पुत्र सम वर्तें प्रजा संग,
हर दिन दिनकर हो उजियारा।।
जय जय जय——
५- हो आलोकित राष्ट्र वेद से,
मिट जावे सारा अंधियारा।
मिले दण्ड अत्याचारी जन,
हो सत्कृत विद्वन जन भारा।
बने राष्ट्र ऐसा हे प्रभुवर,
दो सम्मति सुख राज्य हो भारा।।
जय जय जय—
६- जैसे सूर्य सर्व उपकारी,
वैसे सुखकारी हो राजा।
नाशे काले काले बादल,
रोक दे पूर्व ही सब प्रतिकूलता।
सेवक, अन्न के दाता होवें,
आनन्द वर्धक हो सुख भारा।।
जय जय जय—–
७- होवे प्रजा की सेवा सुरक्षा,
वर्तें भानुवत् आदेश।
जिससे पुष्ट शरीर, आत्मा,
संस्कृति भूमि सुरक्षित देश।
कर की व्यवस्था न्याय नियामक,
दण्डित चोर उचक्के भारा।।
जय जय जय—–
८- बढ़े राज्य व्यापार बढावें,
देश देशांतर आवें जावें।
नॉका, यान से करें सवारी,
देशों से सम्बन्ध बनावें।
बढ़े धनादि राज्य सुख अपना,
जिससे सुभूषित राष्ट्र हो प्यारा।।
जय जय जय—-
९- कोई भी राष्ट्र सुखी तब तक नहीं,
जब तक छोड़े न वैर विरोध।
राज्य की डोर उन्हीं हाथों में,
जिन पर गर्व हो, विमल प्रबोध।
वैदिक़ धार्मिक रहे सुशासन,
चिंतन कर सहयोग दें भारा।।
जय जय जय—–
१०- सूरज ज्यों स्व बल,
आकर्षण,
करता मेघ हनन, सुप्रकाश।
शक्तिशाली ज्ञानी भी राजा,
दुष्ट दलन करे धर्म सुवास।
शुभ गुण आकर्षण व न्याय से,
महके आर्यावर्त यह न्यारा।।
जय जय जय—–
११- जैसे सूर्य के आकर्षण से,
सब भूगोल को गति मिले।
बरसा कर जल मीठा मीठा,
पूरी प्रजा को पुष्टि मिले।
वैसे राजा की गति मति से,
मिले प्रजा को सुख चहुँ भारा।।
जय जय जय—–
१२- जैसे प्रबल सूर्य को कदापि,
बादल जीत नहीं सकते।
धर्मी राजा के बल को भी,
न शत्रु चुनौती दे सकते।
शस्त्र शास्त्र से सजे राज्य स्व,
सुखकर अपना राष्ट्र हो
न्यारा।।
जय जय जय—-
१३- करे प्रहार सूर्य विद्युत पर,
कुटिल मेघ भी करे हनन।
ऐसा युद्ध हो धर्म अधर्म का,
जीते राजा ब्रह्म क्षत्र तन।
क्यों न विजय फिर अपने राज्य की,
लहरे पताका नभ जयकारा।।
जय जय जय—
१४- जैसे सूर्य से होकर संयुक्त,
चलते प्राणी भ्रमते पंछी।
वैसे प्रजा संयुक्त प्रशासन,
राज्य से बढ़ती गति, आनन्दी।
बनकर धार्मिक स्वकक्षा चल,
गमनागमन करें सुख भारा।।
जय जय जय——
१५- यह सब तब ही सम्भव है,
जब प्रभु, गुरु की कृपा मिले।
विद्वन जनों की संगति आशीष,
से सम्मति, गति, दया मिले।
वैदिक़ संविधान से पुष्पित,
पल्लवित हो स्वराज्य हमारा।।
जय जय जय—–
१६- ईश्वर का आदेश यही है,
सुखकर राज्य बनायें हम।
ईश,
वेदनिष्ठ जन पाकर आश्रय,
ईश कृपा भर पाएं दम।
सर्वोन्नति हो वेद विमल सज,
ध्येय वाक्य यह हो (सर्वे भवन्तु सुखिनः) आधारा।।
जय जय जय——
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