सारा हिन्दुस्तान इन दिनों भिड़ा हुआ है साफ-सफाई में। गांधी जयन्ती से शुरू हुआ दौर अब दीवाली को देखकर पूरे परवान पर है। हर साल दीवाली पर यही होता है। गांवों से लेकर महानगरों तक सारे के सारे इसी जतन में जुटे हुए हैं कि लक्ष्मी मैया को रिझाने लायक साफ-सफाई दिखा दें ताकि बरकत का ग्राफ दिखने लग जाए।
हर कोई घरों का कचरा बाहर की ओर फेंकने में व्यस्त है और सड़कों का कचरा गांवों, शहरों और महानगरों के मुहाने जमा होने लगा है। कचरे का यह परिवहन हर तरफ पूरे शबाब पर है। किसी भी क्षेत्र के लोगों के स्वभाव और स्वच्छता प्रेम को देखना हो तो इनके मुहाने, नदियों के तटों को देख लेना काफी है।
कूड़ा-करकट और गंदगी अंधेरों का प्रतीक है और इन्हीं अंधेरों में जहरीले जानवरों, मकड़ियों और तमाम प्रकार के नकारात्मक माहौल का अस्तित्व बना रहता है। हम चारदीवारियों से घिरे स्थल को ही अपना घर मानकर घर की साफ-सफाई करने में जुटे रहत हैं और ऎसे में घरों का कचरा अपने आस-पास सड़कों पर जमा होने लगता है। जरूरी नहीं कि यह दीवाली तक वहां से भी हट जाए। लेकिन हम खुश हो लेते हैं कि हमारा घर साफ-सुथरा है।
घरों का साफ होना ही काफी नहीं है। यह हमारा भ्रम ही है कि बाहर कचरे के ढेर लगाकर घरों में सफाई कर हम लक्ष्मीजी के आगमन की तैयारी कर रहे हैं और लक्ष्मीजी मान ही जाएंगी, इधर निगाह फेरने आ ही जाएंगी।
अपने घर तक पहुंचने के रास्तों पर भी जरा भी कचरा पसरा हो, मार्ग में स्पीड़ ब्रेकर हों या खड्डे हों, किसी पोखर में पानी भरा हो, कीचड़ फैला हुआ हो अथवा ऎसी सामग्री का ढेर का पड़ा हो जो न किसी काम की नहीं है, तब ऎसी स्थिति में पूरा का पूरा क्षेत्र वास्तुदोष से भी घिर जाता है और नकारात्मक ऊर्जाओं का निरन्तर वेग इस कदर हलचल मचाता रहता है कि यहाँ लक्ष्मीजी तो क्या मामूली किसी देव, गंधर्व, किन्नर या कोई सा गण भी आना पसंद नहीं करता।
सड़कों के किनारे रहने वाले खूब सारे लोग अपनी तरफ का कचरा निकाल कर सड़क के बीच में जमा कर दिया करते हैं और यह मानते हैं सफाई हो गई, इसका कोई अर्थ नहीं है। साफ-सफाई का सीधा सा अर्थ यही है कि हमारे जीवन से उन सभी प्रकार की वस्तुओं को बाहर निकालें जिनका हमारे लिए कोई उपयोग नहीं रह गया है।
दीवाली की यह साफ-सफाई समाजवाद का संदेश भी देती है। जो वस्तु हमारे काम की नहीं है, उसे किसी न किसी प्रकार से उन लोगों तक पहुंचायें जिनके काम आ सकती है। लक्ष्मी हमेशा ताजगी और शुद्धता पसंद करती है। इसका यह अर्थ नहीं कि हम हमारे पास अनाप-शनाप कपड़े-लत्ते और दूसरी कई प्रकार की ऎसी सामग्री का भण्डार दबाए रखें जिसका हमारे लिए कोई उपयोग नहीं है।
खूब सारे लोग ऎसे होते हैं जिनकी मानसिकता कबाड़ी की तरह होती है। ये लोग पूर्वजन्म के कबाड़ी ही कहे जा सकते हैं। इन लोगों का एकमेव जीवन लक्ष्य यही होता है कि जहां से जो वस्तु प्राप्त हो जाए, उसे अपने घर में रख लें, भले ही इसका कोई उपयोग कभी न हो। इनकी मानसिकता का दोष कहें या ज्योतिषीय कोई कारण, पर इतना जरूर है कि दुनिया में ऎसे गृहस्थ कबाड़ियों की कोई कमी नहीं है जिन्हें बेवजह अपने घर को कबाड़खाने का दर्जा देने का शौक जिंदगी भर बना रहता है। इनमें पुरुष और महिलाएं दोनों प्रजातियों के घरेलू कबाड़ी हर क्षेत्र मेें पाए जाते हैं।
इनके पास खूब सारी वस्तुओं का इतना अधिक भण्डार जमा हो जाता है कि सामग्री जीर्ण-शीर्ण भले हो जाए, कुछ समय बाद किसी काम की नहीं रहे, मगर न ये इसका उपयोग किसी और को करने देते हैं, न खुद के लिए के लिए इनका कोई उपयोग हो पाता है।
ऎसे लोगों के घरों में जमा यह कबाड़ एक जगह बेवजह कैद हो जाने से इन लोगों को श्रापित कर देता है और ये गृहस्थ कबाड़ी मानसिक और शारीरिक बीमारियों का कबाड़ बन कर रह जाते हैं। जिन वस्तुओं का संबंध ग्रहों से होता है, उन ग्रहों से संबंधित कबाड़ की वजह से ये ग्रह अनिष्ट फल देते हैं।
इन घरेलू कबाड़ियों में सौ फीसदी लोग कंजूस-मक्खीचूस ही होते हैं। न इनसे कोई दान-धरम हो सकता है, न ये किसी के काम आ सकते हैं। जिंदगी भर जो दिखा, जो मिला,उसे घर में लाकर पेटियों, बोरों, भण्डार गृहों में कैद कर दिया।
आजकल बहुसंख्य गृहिणियों और गृहस्वामियों के दुःखों, व्याधियों और अवसादों की तह में जाएं तो साफ पता चलेगा कि इन लोगों के कबाड़ी स्वभाव के कारण ही इनका पूरा जीवन अभिशप्त हो चुका है। कितनी ही दीपावलियां आ जाएं, इन गृहस्थ कबाड़ियों के घरों से यह कबाड़ जब तक नहीं हटता तब तक इनके घरों से लक्ष्मीजी रूठी ही रहेंगी।
अपने आस-पास भी ऎसे खूब पुरुष और महिलाएं हैं जिनके बारे में साफ-साफ कहा जाता है कि ये लोग जमा ही जमा करते रहते हैं, कबाड़ियों की तरह हर वस्तु को अपने घर में लाकर स्टोर में जमा कर देते हैं, यह सामग्री न इनके काम आ पाती है, न दूसरों को देने की इनमें उदारता होती है। इस प्रजाति के घरेलू कबाड़ियों की हर समय प्राप्त ही प्राप्त करने की इच्छा रहती है, देने में इन्हें नानी याद आ जाती है।
हमारे जीवन में तमाम प्रकार की नकारात्मकता, व्याधियों और उपद्रवों का एक कारण हमारे घर में संचित वह सामग्री भी होती है जो बेवजह हमारे यहाँ कैद रहती है। इससे घर का वास्तु भंग तो होता ही है, इस सामग्री के कारण नकारात्मकता हावी रहती है। दीवाली की सफाई के दौरान इस बात पर ध्यान दें और उन सभी प्रकार की वस्तुओं को उपयोगिता के लिए औरों तक पहुंचायें, बेच दें अथवा उपहार में दे दें। फिर देखियें सारी समस्याओं का अपने आप समाधान कैसे होने लगता है, घर में कैसे खुशहाली आने लगती है।