कविता — 18
लालकिले की दीवारो ! क्या तुम मेरे उत्तर दोगी?
अपने निर्माता का नाम बताने का क्या जोखिम लोगी ?
कहां गए वे लोग सयाने और कहां गए निर्माता भूप ?
किसने तेरी नींव रखी थी किसने दिया भव्य स्वरूप ?
किस-किस पापी ने तेरी अस्मत को अपने पैरों से रौंदा है ?
वह कौन से पवित्र हाथ रहे तेरी नींव को जिसने खोदा है ?
हिंदू निर्माता तेरे रहे हैं – यह निश्चय से मैं कह सकता।
तेरे निर्माण के प्रमाणों से हर कोई यह तय कर सकता।।
मुगलों ने निर्माण तेरे को बलात हड़पने का षड्यंत्र रचा।
तभी तो उनका कोई वंशज ना भारत में अब शेष बचा ।।
जो हत्यारे होते हैं वे हर दिन हत्या करते प्रमाणों की।
नाम स्वयं का चमकाने को ना मानें बात अनुसंधानों की।।
शाहजहां नहीं तेरा निर्माता – इसके प्रमाण मिलें बहुतेरे।
अनंगपाल तँवर राजा ने रचना के इतिहास बनाए हैं तेरे।।
आज भी इंद्रप्रस्थ दिल्ली में अनंगपाल के वंशज बसते ।
इतिहासबोध जिनको है अपना गर्व से सीना चौड़ा करते ।।
तँवर गुर्जर हैं देशभक्त वे अपने शासक पर गर्व करें।
मार लगाने में शत्रु को कभी नहीं वे शर्म करें ।।
उनके बारे में मुझे बता – तू क्यों संकोच किए खड़ा ?
सच को दुनिया को बतला दे जिसको सीने में लिए खड़ा ।।
अनगिन तूफानों को तूने झेला – आंधी के खाए थपेड़े भी।
हिंसा पापाचार के तांडव और दुष्टों के देखे बखेड़े भी।।
तुर्कों मुगलों से पहले तेरे अस्तित्व के प्रमाण पर्याप्त मिले।
पर नेता कायर मौन रहे , नहीं तेरा सच कभी मान सके ।।
धर्मनिरपेक्ष लोगों के कारण हुई राजनीति बेढंगी है।
सच को नेता कह ना सकें, चलते चाल बड़ी बदरंगी हैं ।।
नेता भाषण और घोषणा करते, दिन रात देश को बेच रहे।
नहीं आती लाज कभी इनको किस दिशा में देश को भेज रहे ?
राजनीति जब सच कहने में संकोच करे और मौन रहे ।
बच पाता नहीं धर्म ऐसे में – संहार झूठ का कौन करे ?
जो नेता सच को कहने में प्राणों की बाजी लगा देता।
वह नेता ही नेता हुआ करता जो देश से शत्रु भगा देता ।।
जो जागरूक होकर देश चलाए शासन का संचालक हो।
शासक वही कहा जाता जो निज देश धर्म का पालक हो।।
जो देश – धर्म के प्रतीकों को सही न्याय नहीं दिला पाता।
कोई राजा कैसे हो सकता ? नहीं प्यासे को नीर पिला पाता।।
शोध – बोध की आज हमें हर युग से अधिक जरूरत है।
हमें इतिहास बोध से रोक सके भला किसमें इतनी जुर्रत है ?
अपने अतीत के गायक हैं हम और वर्तमान के नायक हैं ।
अधिनायक अपने आगत के और देश धर्म के पालक हैं ।।
जितने भी किले से प्रश्न किए उनके उत्तर हम दे देंगे ।
‘राकेश’ हमें जिसने कहीं रोका, समय पर उसको देखेंगे।।
(यह कविता मेरी अपनी पुस्तक ‘मेरी इक्यावन कविताएं’- से ली गई है जो कि अभी हाल ही में साहित्यागार जयपुर से प्रकाशित हुई है। इसका मूल्य ₹250 है)
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत