अजब-ग़ज़ब हैं ये चिल्लाने वाले
चिल्लाने और चिल्लपों मचाने वालों की अपने यहाँ कभी कोई कमी नहीं रही। बिना मांग ज्ञान बाँटने वाले लोग औरों को दिखाने के लिए इतना जोर-जोर से चिल्लाते हुए बातें करते हैं जैसे कि किसी सभा को संबोधित कर रहे हों। दो-जीन जनें हों तब भी कई लोग जब भी कोई बात करेंगे, फूल वोल्यूम में करेंगे और इस तरह करेंगे जैसे कि खूब सारे लोगों को सुना रहे हों।
चिल्लाने वालों की जमात हर युग में रही है लेकिन मौजूदा युग में सर्वाधिक है। आजकल कोई भी आदमी धीरे बात करने का आदी नहीं है, अधिकांश लोग चिल्ला-चिल्ला कर पूरे वोल्यूम में बात करते हैं।
बात घरों, दफ्तरों, दुकानों, सरकारी और गैर सरकारी गलियारों की हो या फिर सड़कों, चौराहों, सर्कलों और जनपथों से लेकर राजपथों तक की। बसों-रेलों को दूसरे सफर की हो या कहीं और की।
खूब सारे लोग ऎसे मिल जाएंगे जो हमेशा उच्चस्वरों में बतियाते हुए दिख जाया करते हैं। भले ही ये दो-तीन लोग ही आपस में बातचीत कर रहे हों, लेकिन चिल्ला-चिल्ला कर बात ऎसे करते हैं जैसे कि पचास-सौ को सुना रहे हों।
इन चिल्लाहटी बातूनियों के लिए इस बात का कोई असर नहीं होता कि ये जो बातें करते हैं उसका इन दो-चार के सिवा किसी को कोई मतलब नहीं है। फिर इनमें ज्ञान बाँटने वाले हों या उपदेशक किस्म के प्राणी, तब तो ये जोर-जोर से ऎसे बातें करते रहेंगे जैसे कि इनके मुकाबले के ज्ञानी और उपदेशक पूरे ब्रह्माण्ड में कहीं नहीं हों।
हर गली-मोहल्ले, महकमे और दुकानों से लेकर हर इलाके में ऎसे खूब सारे लोग विद्यमान हैं जिनके बारे में आम जन से लेकर खास तक सभी में यह चर्चित होता ही है कि ये अपने इलाके के वे लोग हैं जो कभी चुप नहीं रह सकते, और बोलेंगे तो ऎसे कि दूर-दूर तक वे सारे लोग सुनेंगे, जिनका इनकी किसी बात से कोई सरोकार नहीं होता।
फिर इन चिल्लाने वालों में भी कई प्रजातियां हैं। कुछ लोग जोर-जोर से बातें करते हैं तब भी दूसरों को लगता है कि ये लड़-झगड़ रहे हैं। कुछ पुरुष स्त्रैण स्वभाव के होते हैं और इनकी बातों में वे सारे विषय समाहित होते हैं जो महिलाओं के हैं।
इनमें से कई की आवाज भी स्ति्रयों जैसी ही होती है। खूब सारे ऎसे लोग हैं जिनका स्वर ही कर्कश है। ये जब बोलते हैं तब लगता है कि कोई सुनामी या हुदहुद ही आने वाला है। बोलें उतना, जितना जरूरी हो, आवाज उतनी रखें जितने में वे लोग अच्छी तरह सुन सकें जिन्हें सुनाया जाना है। जो लोग बिना किसी कारण के तेज आवाज में बोलने और चिल्लाने के आदी होते हैं उनकी आयु कम होती है क्योंकि इन लोगों की अधिकांश ऊर्जा समय से पहले ही बतियाने और चिल्लाने मेें ही खर्च होती है।
कुछ लोगों की आदत ही ऎसी पड़ जाती है कि वे चाहते हुए भी धीरे नहीं बोल सकते, इन लोगों को जोर से बोलना ही पड़ता है, ये जोर से न बोलें तो इनके मुँह तक न खुलें। ऎसे लोगों से उनके घरवाले तक दुःखी रहते हैं मगर न कुछ कह पाते हैं, न कुछ कर पाते हैं।
ऎसे बातूनी लोगों को तब तक झेलना ही पड़ता है जब तक इन लोगों से किसी कारणवश कोई दूरी न हो जाए अथवा इनका अस्तित्व कहीं विलीन न हो जाए। बिना वजह के अधिक तेज आवाज में बोलना कहीं सनक और कहीं उन्माद की श्रेणी में आता है।
आमतौर पर इंसान झूठ या अपनी बात को सही ठहराने के लिए जोर से बोलता है और उसका मानना होता है कि यह आवेग उसके हित में है, मगर ऎसा होता नहीं। अधिक तेज आवाज में बोलने वाले लोगों को वे ही बर्दाश्त कर पाते हैं जो या तो बहरे हैं अथवा इन लोगों की ही तरह तेज आवाज में बोलने के आदी।
कई बार वे लोग भी तेज आवाज में बोलने के आदी हो जाते हैं जो या तो किसी न किसी भीतरी बीमारी से ग्रसित हैं अथवा जिनकी मृत्यु निकट आने का समय आ चुका होता है। बिना किसी जायज वजह के तेज बोलने और चिल्लाने वाली तमाम किस्मों के लोगों के लिए इतना अवश्य है कि ये लोग अपनी किसी भी बात को सामने वालों को सहज ही नहीं समझा सकते, इन्हें छोटी से छोटी बात भी औरों को समझाने के लिए खूब सारे शब्दों का इस्तेमाल करना जरूरी होता है फिर भी सम्प्रेषण और समझाईश ठीक ढंग से नहीं कर पाते।
जोरों से बोलने और चिल्ला-चिल्ला कर बातें करने वाले लोगों की संकल्प शक्ति, वाणी शक्ति और सम्प्रेषण कौशल जवाब दे जाता है और इसका असर ये होता है कि ऎसे लोगों के जीवन में अपने मनचाहे काम कभी पूरे नहीं होते, अथवा आधे-अधूरे या विषमतापूर्ण होकर रह जाते हैं तथा अधूरे अरमानों के साथ इन्हें अपनी वापसी करने को विवश होना पड़ता है।
चिल्ला-चिल्ला कर बतियाना इंसान के भीतर की अशांति, क्रोध, राग-द्वेष तथा उद्विग्नता को प्रकट करता है और यह बताता है कि वासनाओं, कामनाओं और इच्छाओं की अपूर्णता की वजह से मन-स्थिति धीर-गंभीर और शांत नहीं हो पायी है और इंसान अपने आपमें विद्यमान अधूरेपन को पूर्णता देने में अब तक नाकाबिल ही रहा है।
इन लोगों के जीवन भर की समस्याओं और दुःखों का मूल कारण यही है। ऎसे लोगों को कुछ दिन मौन रहकर अपनी बड़बोलेपन और ज्यादा से ज्यादा बोलते रहने की समस्या पर काबू पाना चाहिए तभी इनका जीवन सुधर सकता है और उन लोगों को भी शांति से जीने का सुकून मिल सकता है, जो लोग इनके आस-पास रहा करते हैं अथवा जिन लोगों के साथ ये रहते हैं। ये घर वाले भी हो सकते हैं, नाते-रिश्तेदार और मित्र भी, या फिर रात-दिन काम करने वाले संगीसाथी अथवा सहकर्मी।