तेजपात
भारत में उष्णकटिबंधीय एवं इसके अतिरिक्त उपउष्णकटिबन्धीय हिमालय से भूटान तक ९००-१५०० मी तक की ऊंचाई पर सिक्किम में २४०० मी तथा सिल्हट एवं खसिया के पहाड़ी क्षेत्रों में ९००-१२०० मी की ऊंचाई तक तेजपात के जंगली वृक्ष पाये जाते हैं | इसके पत्तों को धूप में सुखाकर प्रयोग में लिया जाता है | पत्तियों का रंग जैतूनी हरा तथा ३ स्पष्ट शिराओं युक्त तथा इसमें लौंग एवं दालचीनी की सम्मिलित मनोरम गंध पायी जाती है | यह सदा हरा रहने वाला वृक्ष है | आज हम तेजपात के औषधीय गुणों की चर्चा करेंगे –
१- तेजपात के ५-६ पत्तों को एक गिलास पानी में इतने उबालें की पानी आधा रह जाए | इस पानी से प्रतिदिन सिर की मालिश करने के बाद नहाएं | इससे सिर में जुएं नहीं होती हैं |
२- चाय-पत्ती की जगह तेजपात के चूर्ण की चाय पीने से सर्दी-जुकाम,छींकें आना ,नाक बहना,जलन ,सिरदर्द आदि में शीघ्र लाभ मिलता है |
३- तेजपात के पत्तों का बारीक चूर्ण सुबह-शाम दांतों पर मलने से दांतों पर चमक आ जाती है |
४- तेजपात के पत्रों को नियमित रूप से चूंसते रहने से हकलाहट में लाभ होता है |
५- एक चम्मच तेजपात चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से खांसी में आराम मिलता है |
६- तेजपात के पत्तों का क्वाथ (काढ़ा) बनाकर पीने से पेट का फूलना व अतिसार आदि में लाभ होता है |
७- इसके २-४ ग्राम चूर्ण का सेवन करने से उबकाई मिटती है |