Categories
विविधा

लक्ष्मी वहीं,  जहाँ उपभोक्ता खुश

दीपावली के माहौल में हर तरफ लक्ष्मीजी को खुश करने और रखने के लिए सभी प्रकार के जतन किए जा रहे हैं। लक्ष्मी को रिझाने के लिए झाड़ु बुहारी, साफ-सफाई,रंग-रोगन, लिपाई-पुतायी, पाठ-पूजा, अनुष्ठान, रंगीन रोशनी और सजावट से लेकर वह सब कुछ किया जा रहा है जो इंसान के बूते में है।

गरीब से लेकर अमीर तक सभी लोग लक्ष्मी मैया को प्रसन्न करने के लिए इन दिनों दिन-रात किसी न किसी काम में जुटे हुए हैं।  हर साल दीपावली पर लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए लाख-लाख जतन करने के बाद भी हम लक्ष्मी को प्रसन्न नहीं कर पाए हैं।

यहाँ हमें लक्ष्मी आवाहन के मनोविज्ञान को अच्छी तरह समझना होगा।  भौतिक संसाधनों, धन-वैभव, सोना-चाँदी से लेकर सभी प्रकार की वैभवशाली वस्तुओं और मुद्राओं का होना तभी तक लक्ष्मी की श्रेणी में गिना जाता है जब तक उसमें पुरुषार्थ और पवित्रता से अर्जन की गंध समायी हो।

ऎसा नहीं होने पर यह सब कुछ अलक्ष्मी की श्रेणी में माना जाता है।  पुरुषार्थ का मतलब पूर्ण परिश्रम और ईमानदारी से होने वाला कर्मयोग है और जब इससे लक्ष्मी प्राप्त होती है वही इंसान को शाश्वत आनंद, परम शांति और आत्मतृप्ति का चरम सुख प्रदान करती है।

इस प्रकार से प्राप्त धन-वैभव को ही लक्ष्मी माना गया है। लक्ष्मी जहाँ आती या रहती है वहाँ ऎश्वर्य रहता है। इस प्रकार की लक्ष्मी जिसके पास होती है उसका चेहरा सदैव मुदित अर्थात प्रसन्न रहता है, उसे कभी शोक, रोग, क्षोभ, चिन्ता और भय नहीं होता।

हम जिस किसी क्षेत्र में हों, जहाँ कहीं काम-धंधे में लगे हों, किसी भी प्रकार का व्यवसाय करते हों या और कुछ, इन सभी में सदैव इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि जो काम-धंधा और व्यवहार हो, उसमें पूरी ईमानादारी और पवित्र भाव हो, किसी को धोखा देने या धोखाधड़ी का कोई विचार न हो तथा वस्तु का तौल एवं शुद्धता का पैमाना ऎसा हो कि इसमें किसी भी अंश में विश्वासहीनता जैसा भाव पैदा न हो।

बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय की भावना से काम धंधा हो, तभी धंधे में बरकत आ सकती है। जितना वाजिब मुनाफा हो, उसे ही प्राप्त किया जाए, ग्राहक को शुद्ध और ताजी वस्तु दी जाए, सामग्री में कहीं किसी भी प्रकार की कोई मिलावट न हो, हर सामग्री इस प्रकार की दी जाए कि प्राप्त करने वाले की सेहत से कोई खिलवाड़ न हो और उसका पक्का भरोसा हम पर बना रहे।

काम-धंधा या व्यवसाय कोई सा क्यों न हो, इसमें व्यापार के आदर्शों का पालन किया जाए तो लक्ष्मी जल्दी प्रसन्न होती है। हम कितने ही दीये जला लें, सब तरफ रोशनी का कितना ही ज्वार उमड़ा दें, कितने ही पकवानों से छप्पन भोग बना डालें, घर-आंगन से लेकर रास्तों तक रंगीन रोशनी का समंद लहरा डालें, इत्र-फुलैल महका दें, जात-जात के फूलों से देहरी सजा लें, रंगोली और माण्डणें सजा दें, और वह सब कुछ कर डालें जो लक्ष्मीजी को अपनी तरफ खींच लाने के लिए किया जाता रहा हो, लेकिन यह सब व्यर्थ है अगर हमारे भीतर शुचिता और बंधुत्व भाव से धंधा करने की मानसिकता भरी हुई नहीं है।

हम औरों का धन अपनी झोली में भरने के लिए लाख चोरी करें, चोरी छिपे काम करें, कर चोरी करते रहें, मुनाफा और कालाबाजारी करते रहें और ग्राहकों की मजबूरियों का फायदा उठा कर उनका शोषण करते हुए अपने बैंक बेलेंस, घर और तिजोरियां भरते रहें, तब भी लक्ष्मी हमारे करीब कभी नहीं आएगी।

जो लोग ऎसा कर रहे हैं उन्हें यह मान लेना चाहिए कि वे जिसे लक्ष्मी मानकर चल रहे हैं, असल में वह अलक्ष्मी ही है और यह एक समय तक ही उनके पास रहने वाली है, इसके बाद न उनके काम आ पाएगी, न उनके वंशजों के।

हमारे सामने ढेरों उदाहरण अक्सर आते रहते हैं जिनमें अलक्ष्मी की तीव्र वेग भरी चंचलता देखने में आती है लेकिन हम हैं कि अपनी सारी मान-मर्यादाओं और नैतिकताओं को भुलाकर मुनाफा ही मुनाफा कमाने के फेर में जुटे हुए हैं।

जो लोग वाकई लक्ष्मी को पाने की इच्छा रखते हैं वे अपनी ईमानदारी, नैतिक मूल्यों और मानवीय संवेदनाओं पर कायम रहते हुए काम-धंधा करते हैं। बड़े-बड़े व्यवसायी भी ऎसे हैं जो अपने व्यापार में कभी बेईमानी नहीं करते, उनका कारोबार खूब फलता-फूलता रहता है और लक्ष्मी उन पर इतनी प्रसन्न रहती है कि उन्हें हमेशा बरकत देती है।

इसलिए लक्ष्मी को पाने की तमन्ना हो, वास्तविक और शाश्वत सुख-समृद्धि पाने की कामना हो तो अपने हृदय से अंधकार और मलीनता को दूर भगाएं, वहाँ कोने-कोने में रोशनी पहुंचाएं और प्राणी मात्र में  ईश्वर के दर्शन करते हुए अपना कारोबार करें, शोषण की मानसिकता को त्यागें।

लक्ष्मी वहीं स्थायी निवास करती है जहां नारायण का कर्मयोग साकार दिखता है, हृदय में अंधकार न हो तथा लोक मंगल से विश्व मंगल की भावनाओं का उदात्त दर्शन पग-पग पर सहजता से दिखाई देता हो।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version