भाजपा की होगी उत्तर प्रदेश में वापसी : आतंकवादियों को बिरयानी नहीं खिलाएंगे ‘गोली’ : योगी आदित्यनाथ
गाजियाबाद (ब्यूरो डेस्क ) वैसे तो इस समय देश के पांच प्रदेशों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, परंतु उत्तर प्रदेश इन पांचों प्रदेशों में सबसे बड़ा प्रदेश है इसलिए हम यहां पर उत्तर प्रदेश की ही चर्चा कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में कॉन्ग्रेस चुनाव से लगभग बाहर हो चुकी है । जबकि बसपा अपने आपको पराजित मान चुकी है, लेकिन सपा के अखिलेश यादव मजबूती के साथ चुनाव लड़ रहे हैं। इसके पीछे वे सभी ताकतें हैं जो भाजपा को पराजित कर देना चाहती हैं। टुकड़े टुकड़े गैंग और उन जैसे अनेकों भारत विरोधी और भारत द्रोही लोग प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से सपा को सत्ता में लौट आने की तैयारी कर रहे हैं जिससे कि उनके ‘सोती गंज बाजार’ फिर खुल सकें और भूमाफिया सक्रिय होकर फिर लोगों के प्लॉटों पर कब्जे कर सकें या किसी अन्य प्रकार से अपनी गुंडागर्दी के माध्यम से प्रदेश को अस्त-व्यस्त कर सकें। इनकी अकुलाहट बहुत अधिक बढ़ चुकी है। इसका कारण केवल एक है कि प्रदेश को लूटने का लाइसेंस इनके हाथ से चला गया है।
धीरे – धीरे उत्तर प्रदेश का चुनाव सभी विपक्षी पार्टियों ने पश्चिमी बंगाल विधानसभा के चुनाव जैसा बना दिया है। जहां सभी विपक्षी दलों ने अपने आपको चुनावी प्रतियोगिता से धीरे-धीरे बाहर कर लिया था और मतदाताओं को कहीं स्पष्ट तो कहीं अप्रत्यक्ष रूप से यह संकेत दे दिया था कि भाजपा को हराने के लिए ममता को सत्ता में फिर आने दीजिए।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत प्राप्त करना भाजपा के लिए बहुत आवश्यक है। इसका एक कारण यह है कि इसी वर्ष राष्ट्रपति के चुनाव भी होने हैं , उस समय पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश के विधायकों के वोट बहुत काम आएंगे। दूसरे, उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य को हारने का अर्थ है कि देश में ‘मोदी लहर’ अब समाप्त हो रही है। यही कारण है कि ‘मोदी लहर’ को बनाए रखने और दिखाए रखने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के लिए यह चुनाव जीतना आवश्यक है। तीसरे, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इस चुनाव को हर स्थिति में जीतना चाहेंगे। क्योंकि पिछला चुनाव तो भाजपा और विशेष रूप से प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर जीत लिया गया था, पर इस बार का चुनाव जीतना या हारना मुख्यमंत्री योगी के कार्यों पर मोहर लगाने के जैसा होगा। यदि वह चुनाव हारते हैं तो निश्चय ही उनके राजनीतिक कैरियर पर इसका प्रभाव पड़ेगा।
उत्तर प्रदेश जनसंख्या के मामले में देश का सबसे बड़ा प्रदेश है। सारे भूमंडल पर भी इस मामले में उत्तर प्रदेश से मात्र 6 ही देश बड़े हैं। कहने का अभिप्राय है कि उत्तर प्रदेश को चलाना एक देश को चलाने के समान है। बहुत सारी समस्याओं से जूझ रहे प्रदेश को योगी आदित्यनाथ निश्चय ही पटरी पर दौड़ाये रखने में सफल रहे हैं। यदि जनता उनको दोबारा सत्ता में लाती है तो निश्चय ही यह माना जाएगा कि प्रदेश के मतदाताओं में उनकी कार्यशैली को पसंद किया है।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों को 7 चरणों में विभाजित किया गया है । ज्ञात रहे कि यहां की कुल 403 विधानसभा सीटें हैं। विभिन्न सर्वे एजेंसीज ऐसा संकेत दे रही हैं कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार फिर से वापसी कर रही है। यद्यपि यह सर्वे एजेंसी इस बात पर सहमत हैं कि योगी विधानसभा की उतनी सीटें इस बार नहीं ले पाएंगे जितनी पिछले चुनाव में ले गये थे। इस बार कुछ सीटें कम हो जाएंगी, परंतु सरकार बनना लगभग तय दिखाई दे रहा है। भाजपा को टक्कर देते हुए सपा अपनी कुछ सीटों को बढ़ाएगी तो कांग्रेस और बसपा अपनी वर्तमान स्थिति को भी बचाए रखने में सफल नहीं हो पाएंगी। यद्यपि भाजपा का आत्मविश्वास इस समय यह बता रहा है कि वह 2017 के मुकाबले इस बार 10 सीट बढ़ाकर ही लाने वाली है।
बसपा की मायावती अपने भ्रष्ट शासन के पाप से लगभग डूब चुकी लगती हैं। उन्होंने प्रदेश को बड़ी तेजी से जातिवाद के जहर में धकेल दिया था। वह अपने वोट बैंक के लिए सरकारी संपत्ति को लुटा पिटाकर प्रदेश को नुकसान देने के अतिरिक्त और कुछ नहीं कर पाईं। वह अपने शासनकाल में पत्थर की मूर्तियां तराशती हीं और अब अपने द्वारा बनवायी गई मूर्तियों के म्यूजियमों को देखने में समय व्यतीत कर रही हैं। जिन लोगों के मतों पर वह भरोसा करती थीं उनका भी कल्याण वह नहीं कर पाईं। इसी प्रकार की स्थिति सपा की भी रही। अखिलेश यादव ने न केवल जातिवाद को बढ़ावा दिया बल्कि उन्होंने मुस्लिम सांप्रदायिकता को भी जहरीला बनाया। जिससे प्रदेश में 100 से अधिक बार दंगे हुए। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह रही कि उन्होंने दंगाइयों का समर्थन किया और जो लोग दंगों से पीड़ित रहे उनकी ओर उनका राजधर्म आंख उठाकर देखना भी अच्छा नहीं मानता था। इस बार बड़ी संख्या में ऐसे मुस्लिम मतदाता भी हैं जो यह समझ चुके हैं कि सपा के शासनकाल में दंगे सुनियोजित ढंग से कराए जाते थे। जिससे मुसलमान को नुकसान होता था। जबकि योगी सरकार में कहीं कोई दंगा नहीं हुआ। ऐसे समझदार मुस्लिम मतदाता सपा के विरुद्ध वोट कर सकते हैं। जबकि तीन तलाक का दंश झेलती रही मुस्लिम महिलाएं भी योगी – मोदी के साथ दिखाई दे सकती हैं।
2017 के चुनाव में ही सपा को बहुत बड़ी संख्या में यादव समाज ने ठुकरा दिया था। क्योंकि अखिलेश यादव की मुस्लिम सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाली नीतियां यादव समाज को पसंद नहीं आ रही थीं। इस बार भी जो लोग अखिलेश की मुस्लिमपरस्त नीतियों से त्रस्त रहे, वे उनका साथ नहीं दे रहे हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस प्रकार अपने भाषणों में आतंकवादियों, समाज विरोधी लोगों और दंगाइयों को खुली चुनौती दे रहे हैं और स्पष्ट शब्दों में यह बोल रहे हैं कि हम उन्हें सपा की तरह बिरयानी ना खिलाकर गोली खिलाएंगे, यह बात लोगों को रास आ रही है। बिरयानी खिलाने की अपसंस्कृति से प्रदेश के लोग त्रस्त रहे हैं। जिससे बदमाश और गुंडे लोग आम आदमी को परेशान करते रहे हैं। पिछले 5 वर्ष में जिस प्रकार गुंडागर्दी पर लगाम लगी है और सपा की बिरयानी कल्चर से लोगों को निजात मिली है उसके शुभ संकेत भाजपा के लिए उत्साहवर्धक हैं। सबसे पहले लोग बिरयानी कल्चर और गुंडा वाद से मुक्ति चाहते हैं वास्तव में शासन का उद्देश्य भी यही होता है कि वह समाज विरोधी और दंगाई लोगों के खिलाफ कठोर रहे। जबकि आम आदमी के प्रति उसका दृष्टिकोण उदार हो। इसी को राजधर्म कहते हैं। यदि कोई सरकार सत्ता में रहकर नागरिकों को परेशान करने वाले लोगों के प्रति उदार दिखाई देती है तो समझना चाहिए कि सरकार में बैठे लोग भी दंगाई और आतंकवादी सोच के हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर से पार्टी का प्रत्याशी घोषित कर भाजपा ने पूर्वांचल को अपने साथ जोड़े रखने का बेहतरीन दांव चला है। जबकि सपा के अखिलेश यादव ने अपने दल के प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर जिस प्रकार गुंडों को टिकट दिया है, उससे उनके बनते हुए खेल में विघ्न पैदा हो गया है। स्थायी रूप से दल बदलू के रूप में जाने जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य ने भाजपा में अपनी दाल गलती न देखकर फिर एक गलती कर ली है और वह भाजपा खेमे से कूदकर सपा में शामिल हो गए हैं। उन्होंने भाजपा खेमे से जब सपा में छलांग लगाई तो उन्होंने कहा कि प्रदेश की योगी सरकार पिछड़ों, दलितों, शोषितों, मजदूरों और किसानों के लिए कुछ नहीं कर पाई , इसलिए वह भाजपा छोड़कर सपा में जा रहे हैं। जब उनसे पूछा गया कि सपा ने मजदूरों , पिछड़ों, दलितों , शोषितों के लिए क्या किया ? तो उनके पास गिनवाने के लिए कुछ भी नहीं था। फिर भी स्वामी प्रसाद मौर्य के भाजपा छोड़ सपा में जाने से भाजपा के उन विधायकों को लाभ मिल गया जो भाजपा में इस बार प्रत्याशियों की सूची से काट दिए गए थे। बताया जाता है कि ऐसे 45 विधायक थे, जिनको इस बार टिकट नहीं दिया जा रहा था। स्वामी प्रसाद मौर्य की छलांग बाजी ने इनका कल्याण कर दिया।
जब बारी भाजपा की आई तो उसने भी मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा यादव को पार्टी की सदस्यता ग्रहण करवाकर सारा हिसाब पाक साफ कर लिया।
अब चुनावी बिसात बिछ चुकी है देखना यह है कि चुनावी ऊंट किस करवट बैठता है ? परंतु वर्तमान परिस्थितियों में तो यह कहा जा सकता है कि भाजपा सत्ता में वापसी कर रही है। पश्चिम बंगाल में जो कुछ हुआ था उसे प्रदेश का मतदाता भी बड़ी गंभीरता से समझ रहा है। जात-पात के भेदभाव को छोड़कर राष्ट्र सर्वप्रथम के नाम पर चुनाव करने की तैयारी प्रदेश का मतदाता कर चुका है। वह शांति और व्यवस्था के लिए वोट देना चाहता है। अब देखना यह है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और सपा के अखिलेश यादव इस विषय में लोगों को अपनी अपनी ओर कितना आकर्षित कर पाते हैं ?
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत