हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा की विजय के अर्थ क्या हैं? इस विजय का सबसे पहला संदेश तो यह है कि यह सच्चे लोकतंत्र की विजय है। जनता के लोकतांत्रिक निर्णय को पलीता लगाने वाली चीजे हैं – जातिवाद, क्षेत्रवाद, संप्रदायवाद! इन अ-राजनीतिक दबावों से ऊपर उठ कर लोगों ने मतदान किया यानी उन्होंने निजी संबंधों के मुकाबले स्वविवेक को वरीयता दी। भावनाओं पर विवेक की विजय ही असली लोकतांत्रिकता है। हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा को इस बार ऐसी जातियों, ऐसे तबकों और ऐसे क्षेत्रों से वोट मिले हैं, जहां से उसे पहले कभी नहीं मिले। यदि यह प्रवृत्ति राष्ट्रीय स्तर पर सबल होती जाए तो भारत दुनिया का सबसे बड़ा ही नहीं, सबसे अच्छा लोकतंत्र भी बन जाएगा।
दोनों राज्यों में भाजपा को अपूर्व सफलता मिली है तो कांग्रेस को भयंकर पराजय मिली है। दूसरे शब्दों में नरेंद्र मोदी का कांग्रेस मुक्त भारत का सपना साकार होता लग रहा है। कांग्रेस अब एक अखिल भारतीय क्षेत्रीय पार्टी भर रह गई है। भारतीय लोकतंत्र के लिए इसे शुभ लक्षण नहीं कहा जा सकता। एक स्वस्थ सरकार के संचालन के लिए सबल प्रतिपक्ष का होना बहुत जरुरी है। पता नहीं, अब कांग्रेस कब अपने पांवों पर खड़ी होगी? यह भी पता नहीं कि गैर-कांग्रेसी दल अब बड़े पैमाने पर इकट्ठे होंगे या नहीं? इन प्रांतीय दलों को एक करना और उनका अखिल भारतीय मोर्चा बनाना लगभग असंभव कार्य है। यह भी पता नहीं कि वे कांग्रेस के छाते के नीचे एक होना चाहेंगे या नहीं? इन सभी दलों का चरित्र कांग्रेस-जैसा ही है। सभी दल प्राइवेट लिमिटेड कंपनियां बन चुके हैं। हर दल का नेता अपना मालिक स्वयं है। वह किसी अन्य को अपना नेता कैसे स्वीकार करेगा? यह भारतीय लोकतंत्र के लिए घाटे का सौदा है।
इन दोनों राज्यों के चुनाव से यह संकेत भी उभरा है कि मोदी लहर अब भी कायम है। यदि नरेंद्र मोदी दोनों राज्यों में घूम-घूमकर प्रचार नहीं करते तो भाजपा को विजय तो मिलती लेकिन ऐसी नहीं मिलती कि वह सरकार बना सके। दोनों राज्यों में भाजपा और कांग्रेस के गठबंधन टूट गए। यह टूट सिद्ध करती है कि राजनीति का अर्थ शुद्ध सत्ता है। सभी घटकों को खुद पर गरुर था लेकिन चुनाव परिणाम ने भाजपा को सही साबित कर दिया। सबको अपने-अपने वज़न का सही-सही पता चल गया। क्योंकि सत्ता ही ब्रह्म है, इसलिए टूटे हुए गठबंधन शायद फिर जुड़ जाएं। या सत्ता के खातिर नए गठबंधन भी जुड़ सकते हैं। यह भी असंभव नहीं कि क्षेत्रीय दलों का पराभव शुरु हो जाए और देश में दो-दलीय व्यवस्था मजबूत होने लगे। अगर ऐसा हो तो भारतीय लोकतंत्र काफी स्वस्थ और सबल हो जाएगा।
इन दोनों राज्यों में भाजपा की विजय केंद्र सरकार के लिए वरदान सिद्ध हो सकती है। हरियाणा दिल्ली का सबसे निकट का राज्य है। अब भाजपा जब चाहे लाखों लोगों को दिल्ली में जमा कर सकती है। मुंबई भारत की वित्तीय राजधानी है। दिल्ली और मुंबई, दोनों दो पटरियों की तरह भाजपा की रेल को तेजी से चला सकती हैं। नए और शक्तिशाली भारत को खड़ा करने में अब ज्यादा आसानी होगी।