भारतीय संविधान के लेखन से जुड़े कुछ तथ्य

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26 जनवरी 1950 का दिवस भारत के इतिहास का स्वर्णिम दिवस है। क्योंकि उस दिन स्वतंत्र भारत का संविधान लागू हुआ था। उस दिन बहुत दिनों के संघर्ष के पश्चात भारत ने अपना गणतांत्रिक स्वरूप सुनिश्चित कर आजादी की खुली हवा में सांस लेते हुए आगे बढ़ने का ऐतिहासिक निर्णय लिया था।  26 जनवरी 1950 की प्रातः 10 बजकर 18 मिनट पर वह ऐतिहासिक पल आए थे जब भारत का संविधान लागू किया गया था। सारा देश हर्ष और उल्लास के साथ अपने गणतंत्र दिवस के पहले समारोह को मना रहा था। 2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन में बनकर तैयार हुआ भारत का संविधान यूं तो 26 नवंबर 1949 को ही बनकर तैयार हो गया था पर उसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया।
   गणतांत्रिक भारत ने जब अपने राजपथ पर आगे बढ़ना आरंभ किया तो यह ऐतिहासिक निर्णय लिया गया कि प्रत्येक वर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस परेड भारत के राजपथ से आरंभ होकर ऐतिहासिक लालकिले पर समाप्त होगी। इस अवसर पर भारतीय सेना भी अपनी शक्ति का प्रदर्शन करेगी। मूल रूप में भारत के संविधान की 2 प्रतियां तैयार की गई थीं- एक अंग्रेजी में और एक हिंदी में। हमारे संविधान की ये दोनों प्रतियां हाथ से लिखी गई हैं।
  हमारे संविधान में इस समय 465 अनुच्छेद, तथा 12 अनुसूचियां हैं और ये 22 भागों में विभाजित किया गया है। इसके निर्माण के समय मूल संविधान में 395 अनुच्छेद थे, जो 22 भागों में विभाजित थे। इसमें केवल 8 अनुसूचियां थीं। हमारे संविधान की धारा 74 (1) में यह व्‍यवस्‍था की गई है कि राष्‍ट्रपति की सहायता को मंत्रिपरिषद् होगी, जिसका प्रमुख पीएम होगा।
   इसका अधिकांश भाग ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में लागू किए गए भारत सरकार अधिनियम 1935 से लिया गया है।1950-54 तक भारत के गणतंत्र दिवस समारोहों का वह स्वरूप नहीं था जो आज दिखाई देता है। इन 5 वर्षों में इरविन स्टेडियम (जिसे अब नेशनल स्टेडियम कहा जाता है), लाल किला, रामलीला ग्राउंड्स और किंग्सवे में गणतंत्र दिवस मनाया गया था। गणतंत्र दिवस समारोह 1955 में पहली बार राजघाट में मनाया गया था।
    इंडोनेशिया अपने आपको भारत के बहुत अधिक निकट समझता है। यद्यपि उसने अपना धर्म परिवर्तन कर इस्लाम स्वीकार कर लिया है , परंतु इसके उपरांत भी वह अपने मूल वैदिक स्वरूप को भूला नहीं है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का इंडोनेशिया के बारे में इस विषय में तो कोई विशेष लगाव नहीं था परंतु इसे मात्र एक संयोग ही कहा जाएगा कि उन्होंने इंडोनेशिया के पहले प्रमुख, राष्ट्रपति सुकर्णो को भारत के पहले गणतंत्र दिवस के पहले मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया था।
   भारत के गणतंत्र दिवस पर एक गौरवशाली परंपरा आरंभ की गई जिसके अंतर्गत हर वर्ष झंडा फहराने के ऐतिहासिक पलों के पश्चात राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रपति को 21 तोपों की सलामी दी जाती है। यह भारत के गौरव का तो प्रतीक है ही साथ ही उसके प्रभुत्व संपन्न राष्ट्र होने का प्रतीक भी है। गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान भारत रत्न, पद्म भूषण और कीर्ति चक्र जैसे कई राष्ट्रीय पुरस्कार देने की परंपरा भी चली आ रही है। यह सभी पुरस्कार देश के लिए विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाली विभिन्न प्रतिभाओं को प्रदान किए जाते हैं।
    हमारे गणतंत्र दिवस से भारतीय वायुसेना का इतिहास भी जुड़ा है। क्योंकि गणतंत्र दिवस पर ही भारतीय वायु सेना अस्तित्व में आई थी। इससे पहले, भारतीय वायु सेना एक नियंत्रित निकाय के रूप में कार्य कर रही थी, लेकिन गणतंत्र दिवस के बाद, भारतीय वायु सेना एक स्वतंत्र निकाय बन गई।
   वैसे भारत के लिए संविधान नाम का शब्द कोई नया नहीं है। सृष्टि के प्रारंभ में 4 अरब 32 करोड वर्ष अर्थात जितनी देर सृष्टि रहेगी, उतनी देर के लिए परमपिता परमेश्वर ने वेदों के रूप में अग्नि, वायु ,आदित्य और अंगिरा जैसे ऋषियों को वेदों का ज्ञान दिया था। जो श्रुति परंपरा के माध्यम से बहुत देर तक यथावत चलते रहे । बाद में इन्हें ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के रूप में अलग – अलग लिखा गया। महर्षि मनु ने मनुस्मृति लिखकर भी वेद सम्मत संविधान की व्यवस्था ही संसार को दी थी। उस व्यवस्था से भी यह संसार बहुत देर तक शासित अनुशासित होकर चलता रहा ।
जब विभिन्न मत, पंथ ,संप्रदायों में देशों के बंटवारे होने लगे तो लोगों ने भारत के मौलिक चिंतन से अलग हटकर ‘अपनी – अपनी डफली, अपना- अपना राग’ अलापना आरंभ किया और अपने – अपने संविधान बनाने आरंभ किये। लोगों ने ऐसा अपना – अपना अस्तित्व अलग – अलग दिखाने की होड़ में किया। किसी की भी यह इच्छा नहीं थी कि वह किसी दूसरे का अनुसरण करे। यह वह काल था जब भारत की वसुधैव कुटुंबकम की परंपरा को विभिन्न मत, पंथ, संप्रदायों ने मिटा दिया और विश्व अनेकों राष्ट्रों में खंड खंड हो गया। परिवार की भावना लुप्त हो गई और अनेकों राष्ट्र एक दूसरे के शत्रु हो गए । वैसे संप्रदायों की यही विशेषता भी होती है कि वह अनेकताओं को स्थापित करते चले जाते हैं। इसे भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि भारत ने भी जब स्वतंत्रता प्राप्त की तो जो कभी भारत से ही शासित अनुशासित रहने वाले राष्ट्र हुआ करते थे, भारत ने उन्हीं के तथाकथित ज्ञान से ज्ञान लेकर अपना संविधान बनाया।
  भारत के वर्तमान संविधान से पूर्व सन् 1895 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने मांग की थी कि अंग्रेजों के अधीन रहकर भारत के लोग अपना संविधान अपने आप बनाएं। तब अंग्रेजों ने भारत के लोगों द्वारा ही अपना संविधान बनाए जाने संबंधी संविधान सभा की मांग को ठुकरा दिया था। 1922 में महात्मा गांधी ने भी अंग्रेजों से इसी मांग को दोहराया था कि भारत के लोग अपना संविधान अपने आप बनाएं। यद्यपि अंग्रेजों ने उनकी मांग को भी पहले वाली मांग की भांति ही ठुकरा दिया।
इसी प्रकार की मांगों के निरंतर उठने से अंत में अंग्रेजों ने भारत के लोगों द्वारा अपना संविधान अपने आप बनाए जाने संबंधी मांग को 1940 में जाकर स्वीकार कर लिया।1942 में क्रिप्स कमीशन ने अपनी रिपोर्ट के माध्यम से यह संस्तुति की कि भारत के लोग अपना संविधान अपने आप बनाएं और इस संबंध में निर्वाचित संविधान सभा का गठन किया जाए।
        इसी प्रक्रिया पर आगे बढ़ते हुए डॉ सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता में 9 दिसम्बर, 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई।11 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की बैठक में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष चुना गया, जो अंत तक इस पद पर बने रहे। संविधान सभा की पहली बैठक का मुस्लिम लीग ने बहिष्कार किया । क्योंकि वह पाकिस्तान बनाने की मांग पर अड़ी हुई थी और अपने भावी देश पाकिस्तान के लिए अलग संविधान सभा की मांग कर रही थी।
   जब देश का संविधान बनाया जा रहा था तब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसमें कुछ विभिन्न प्रकार के चित्र डलवा कर इसे सजाने के बारे में सूचना आरंभ किया। बंगाल के शान्तिनिकेतन में नंदलाल बोस उस समय कलाभवन के प्राध्यापक के तौर पर काम कर रहे थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू जब शांतिनिकेतन में अपने प्रवास काल पर थे तो उन्होंने बोस को विशेष रूप से इस काम के लिए नियुक्त किया। भारत के संविधान में कुल 22 चित्रों को स्थान दिया गया। जिन्हें बनाने में नंदलाल बोस को 4 वर्ष का समय लगा था। नेहरू सरकार ने इस काम के लिए उन्हें ₹21000 पारिश्रमिक के रूप में दिए थे। यद्यपि इस प्रकार के पारिश्रमिक को एक अन्य कलाकार प्रेम बिहारी रायजादा ने लेने से मना कर दिया था। प्रेम बिहारी रायजादा ही थे जिन्होंने संविधान की मूल प्रति को हाथ से लिखा था। कहा जाता है कि सरकार ने जब रायजादा से उनका पारिश्रमिक पूछा तो उन्होंने किसी भी प्रकार का पारिश्रमिक लेने से मना कर दिया था, परंतु उनकी एक शर्त थी कि संविधान के प्रत्येक पृष्ठ पर उनका नाम होना चाहिए। इसके अतिरिक्त संविधान के अंतिम पृष्ठ पर उनके दादाजी का नाम भी लिखा जाना चाहिए । नेहरू सरकार ने अपनी उदारता का प्रदर्शन करते हुए रायजादा के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था।
नंदलाल बोस के द्वारा भारत के संविधान को सजाने में जिन चित्रों को स्थान दिया गया है उनमें मोहनजोदड़ो, वैदिक काल, रामायण, महाभारत, बुद्ध के उपदेश, महावीर के जीवन, मौर्य, गुप्त और मुगल काल, इसके अलावा गांधी, सुभाष, हिमालय से लेकर सागर आदि के चित्र सम्मिलित हैं।
यह एक दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि कांग्रेस की सरकारों ने ही बाद में इन चित्रों को भारत के संविधान से हटा दिया।

– डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक :  उगता भारत

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