अपने भीतर ही विद्यमान है रूप-सौन्दर्य का प्रपात
रूप-रंग लावण्य और सौन्दर्य न कहीं बाहर से आता है, न थोंपा जा सकता है। इसका सीधा रिश्ता होता है अपने ही भीतर से। हर इंसान के भीतर ही विद्यमान रहता है अपने रूप-रंग को निखारने और अप्रतिम सौन्दर्य का वह महाप्रपात, जो हमेशा अक्षुण्ण बना रहता है।
यह इंसान पर निर्भर है कि वह इस अखूट स्रोत को पता पाने का प्रयास कैसे करता है। जो लोग इस खजाने की चाभी पा जाते हैं, इसका उपयोग करना सीख और समझ लेते हैं वे इसका भरपूर उपयोग करते हुए अपने जीवन को सँवारने और सुनहरे भविष्य को पाने में कामयाब हो जाते हैं।
अपने चेहरे-मोहरे और शरीर का सौन्दर्य, तेज-ओज और आकर्षण सब कुछ निर्भर करता है हमारे स्व चरित्र, चित्त की शुद्धि और शुचिता पर। जिनका मन जितना अधिक शुद्ध होगा, ,खान-पान और व्यवहार जितना पवित्र होगा, उतना हमारा लावण्य अभिवृद्धि की ओर गतिमान रहेगा। बाहरी रसायनों के लेप से कुछ घण्टे तक चेहरे का सौन्दर्य और ओज दर्शाया जा सकता है लेकिन हमेशा यह बरकरार नहीं रहता।
आज पूरी दुनिया में सौन्दर्य और आकर्षक व्यक्तित्व पाने की अंधी होड़ मची है और उसी अनुपात में जाने किन-किन प्रकारों के ब्यूटी और स्पॉ पॉर्लर खुलते और पसरते जा रहे हैं लेकिन इनमें जाने के बाद भी स्थायी सौंदर्य नहीं आ पा रहा है।
कृत्रिम सौंदर्य कुछ घण्टों का मेहमान बनकर रह जाता है और इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि एक बार इसका सहारा पा लिए जाने के बाद बार-बार इनके भरोसे रहने की जो आदत बढ़ती जा रही है वह अपने आप में जाने कितनी समस्याओं को जन्म देती है।
धन, समय और श्रम तीनों को स्वाहा करने के बाद भी जो प्राप्त होता है वह स्थायी नहीं होता। वर्तमान में हमें गंभीरता से यह सोचने की आवश्यकता है कि आखिर ऎसा क्यों होने लगा है कि हम अपना मौलिक सौंदर्य खोने लगे हैं और हमें कृत्रिम रसायनों पर निर्भर होने की विवशता ओढ़नी पड़ रही है।
वह भी ऎसा क्षणिक रूप-रंग कि चंद घण्टों में ऎसा उतर जाए कि कोई हमें बिना मेकअप के देखे तो आश्चर्य में ही पड़ जाए या भ्रमित-भयभीत हो जाए। जितना पैसा और समय हम इन पॉर्लरों में लगाते हैं उससे आधा भी हम अपने चित्त की शुद्धि और शारीरिक व्यायाम, सेवा तथा निष्काम कर्मयोग में लगाएं तो पॉर्लरों के मुकाबले कई गुना अधिक और स्थायी तारुण्य भाव वाला सौंदर्य स्वाभाविक रूप से पाया जा सकता है। कोई कुछ न करे, अपने मन और मस्तिष्क के भीतर समाहित मलीनता को धीरे-धीरे छोड़ता जाए, तो ज्यों-ज्यों नकारात्मकता बाहर आएगी, वैसे-वैसे मनः सौंदर्य बढ़ता चला जाएगा और इसका सीधा प्रभाव चेहरे पर दिखने लगता है।
मन में मलीनता और दिमाग में षड़यंत्राें के रहते किसी के चेहरे पर तेज नहीं आ सकता, कृत्रिम रसायनों के लेप और कॉस्मेटिक्स से यदि तेज और ओज दिखाई भी देने लग जाए तो उस लावण्य की उम्र कुछ घण्टों से ज्यादा नहीं होती।
अपने भीतर के मनः सौंदर्य को पल्लवित-पुष्पित करें और सकारात्मक चिंतन को जीवन में अपनाएं, इससे अपने आप लावण्य और शारीरिक सौष्ठव की प्राप्ति होती रहती है। इस परम सत्य को जानने और अनुगमन करने की आज जरूरत है।
इस बार की दीपावली और रूप चतुर्दशी कई मायनों में खास है। यह रूप चौदस न सिर्फ अपना रूप निखारने के लिए है बल्कि इस बार की रूप चौदस कई मायनों में खास है। अपना देश अब साफ-सफाई और स्वच्छता की डगर पर बढ़ चला है।
अब हर तरफ सफाई होने लगी है। इसमें हमारे प्रधानमंत्रीजी से लेकर आम आदमी तक की जो ऎतिहासिक भागीदारी देखने को मिल रही है उसे देख लग रहा है कि अब सफाई और सफाया होकर ही रहने वाला है। इस बार की रूप चौदस हमारे लिए यह पैगाम भी लेकर आयी है कि हम खुद की साफ-सफाई और सौन्दर्य के प्रति जितने सचेत रहते हैं उतना ही हमें हमारे आस-पास और क्षेत्र की साफ-सफाई और सौंदर्यीकरण के लिए सजग रहने और इसमें हरसंभव भागीदार बनने की जरूरत है।
आईये आज रूप चतुर्दशी पर हम यही संकल्प लें कि पूरा देश साफ-सुथरा करने में तन-मन और धन से सहभागिता निभाएंगे और ‘स्वच्छ भारत-स्वस्थ भारत’ के संकल्प को साकार करने के लिए इस देश को हर किस्म के कचरे से मुक्त करने के प्रयासों में समर्पित भागीदारी अदा करेंगे।