सभी प्रकार के वातरोगों में लहसुन
का उपयोग करना चाहिए।
इससे रोगी शीघ्र ही रोगमुक्त हो जाता है तथा
उसके शरीर की वृद्धि होती है।’ कश्यप ऋषि के अनुसार
लहसुन सेवन का उत्तम समय पौष व माघ महीना
(दिनांक 22 दिसम्बर से 18 फरवरी 2015 तक) है।
प्रयोग विधिः 200 ग्राम लहसुन छीलकर पीस लें।
4 लीटर दूध में ये लहसुन व 50 ग्राम
गाय का घी मिलाकर दूध गाढ़ा होने तक
उबालें। फिर इसमें 400 ग्राम मिश्री, 400
ग्राम गाय का घी तथा सोंठ, काली मिर्च,
पीपर, दालचीनी, इलायची, तमालपात्र,
नागकेशर, पीपरामूल, वायविडंग, अजवायन,
लौंग, च्यवक, चित्रक, हल्दी, दारूहल्दी,
पुष्करमूल, रास्ना, देवदार, पुनर्नवा, गोखरू,
अश्वगंधा, शतावरी, विधारा, नीम, सोआ व
कौंचा के बीज का चूर्ण प्रत्येक 3-3 ग्राम
मिलाकर धीमी आँच पर हिलाते रहें।
मिश्रण में से घी छूटने लग जाय, गाढ़ा मावा बन जाय तब
ठंडा करके इसे काँच की बरनी में भरकर रखें। 10 से
20 ग्राम यह मिश्रण सुबह गाय के दूध के
साथ लें (पाचनशक्ति उत्तम हो तो शाम
को पुनः ले सकते हैं। भोजन में मूली, अधिक तेल व
घी तथा खट्टे पदार्थों का सेवन न करें।
स्नान व पीने के लिए गुनगुने पानी का प्रयोग करें।
इससे 80 प्रकार के वात रोग जैसे – पक्षाघात
(लकवा), अर्दित (मुँह का लकवा),
गृध्रसी (सायटिका), जोड़ों का दर्द, हाथ
पैरों में सुन्नता अथवा जकड़न, कम्पन, दर्द,
गर्दन व कमर का दर्द, स्पांडिलोसिस
आदि तथा दमा, पुरानी खाँसी, अस्थिच्युत
(डिसलोकेशन), अस्थिभग्न (फ्रेक्चर) एवं अन्य
अस्थिरोग दूर होते हैं।
इसका सेवन माघ माह के
अंत तक कर सकते हैं।