– कल्पना डिण्डोर
लक्ष्मी पाने के फेर में हम सदियों से कुछ न कुछ करते ही आ रहे हैं। सदियों पहले उतना धूमधड़ाका नहीं था। पटाखों का शोर नहीं था, माईक दानवों का अस्तित्व तक भी नहीं। श्रद्धालु आराम से लक्ष्मी मैया की पूजा-अर्चना करते, और लक्ष्मी मैया भी पूरी उदारता के साथ वह सब कुछ बाँट दिया करती थी जो इन्हें अभीप्सित होता था।
लक्ष्मी मैया भी खुश थी, लोग भी खुश और श्रद्धालुओं से लेकर आमजन तक सभी में उत्साह पसरा रहता सो अलग। अब सब कुछ बदल गया है। लक्ष्मी हमारे सामने आ भी जाए तो लोग नकार दें।
जो कुछ लक्ष्मी पूजा और उपासना के नाम पर हम कर रहे हैं वह दीपावली पर फैशनी औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं रह गया है। इस दिन भी पूजा इसलिए करनी पड़ रही है कि इसका संबंध रुपए-पैसों और सोने-चांदी की इच्छाओं से है और सबकी इच्छा रहती ही है कि सुख-समृद्धि उनके अपने पाले में आए और हमेशा बनी रहें। इस पर्व का संबंध लक्ष्मी से न हो तो हम हाथी-घोड़े बेचकर चादर तान के सोये रहें, जैसे कि दूसरे उत्सवों और पर्वों में करते आ रहे हैं।
चारों तरफ रोशनी का दरिया और चकाचौंध का मंजर, इतनी तेज रोशनी की आँखें चुंधियाने लगें, झिलमिल रंगीन रोशनी भी इतनी कि हर ब्लेक एण्ड व्हाईट शख्स भी रंग-बिरंगा नज़र आने लगे।
लक्ष्मीजी के बारे में सुनते रहे हैं कि दीवाली की रात धरती पर परिभ्रमण करती हैं और ऎश्वर्य का वरदान बाँटती हैं। अभी कल ही लक्ष्मीजी और भगवान श्रीनारायण की दीवाली को लेकर जबर्दस्त चर्चा हुई। भगवान नारायण इस बात को लेकर उत्सुक थे कि लक्ष्मीजी अबकि बार किस एजेण्डे के साथ धरती पर जा रही हैं।
उधर लक्ष्मीजी इस उधेड़बुन में हैं कि धरती पर जाना अब खतरों से कम नहीं है। हाथी पर जाएं या उल्लू पर सवार होकर। लोग-बाग बमों के धमाकों से धरा को इतना कंपायमान कर देते हैं कि लक्ष्मीजी का वाहन तक भी घबराकर उधर जाने से डरने लगा है।
पग-पग पर होते धमाकों की गूंज ने लक्ष्मीजी की शाश्वत शांति छिनने में कोई कसर बाकी नहीं रख छोड़ी है। जो कुछ बचा-खुचा था उसे माईक वालों ने पूरा कर दिया। हर तरफ शोर और पटाखों के धमाकों के बीच लक्ष्मी मैया अपनी बात को समझाएं तो कैसे, यहां तक कि अपने वाहन उल्लू तक के कान भी जवाब दे जाते हैं।
उल्लू को वे कहती कुछ हैं, उल्लू सुनता कुछ है। उल्लु अपनी ध्ांधेबाज बिरादरी की ओर ही देखता हुआ जाने किन-किन आकार-प्रकारों और लिबासों वाले उल्लुओं की ओर भागता-फिरता है। हर बार लक्ष्मीजी कुछ न कुछ बाँटने का मन लेकर आती हैं, सोचती हैं एक दिन का ही तो मामला है, दिल खोलकर देने से परहेज क्यों।
लेकिन अब हालात कुछ बदल गए हैं। लक्ष्मी मैया सौम्य, शांत और मुदित माहौल देखना चाहती हैं लेकिन हर तरफ बिजली के दौड़ते करंट, आँखों में अंधेरा कर देने वाली घातक रोशनी का मंजर, पग-पग पर जमीन पर पटाखों का शोर और आसमान में धमाके कर देने वाले राकेट्स की वजह से भ्रमण करना भी निरापद नहीं रहा।
लक्ष्मीजी का क्या दोष, वे मेहमान की तरह हमारे पास आना और बाँटना चाहती हैं, वरदान देने को उत्सुक रहती हैं मगर अब लक्ष्मीजी के हमारे करीब आने का माहौल ही नहीं रहा। भयंकर शोर के बीच दीपावली मनाने का शगल जब से चला है तभी से हमारी सुख-समृद्धि और शांति को ग्रहण लग गया है।
हर आदमी पटाखे की तरह हो गया है, बात-बात में गुस्सा हो जाता है, फट पड़ता है और शोर करने लगता है। और भी न जाने क्या-क्या हो गया है हर तरफ कुछ-कुछ नया-नया। अब इतने भीषण और कानफोडू शोर के बीच लक्ष्मीजी कैसे आएं हमरे द्वार …..। कोई तो कुछ समझो।