अखिलेश यादव का समाजवाद और गुंडावाद जिंदाबाद
समाजवादी पार्टी का समाजवाद अपने आप में अनोखा और निराला है। पहले दिन से ही इस पार्टी ने अपराधियों के राजनीतिकरण की सोच को उजागर करते हुए कार्य करना आरंभ किया था।जिन लोगों को जेलों की सलाखों के पीछे होना चाहिए था समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश और उनके पिता मुलायम सिंह यादव के वरदहस्त के चलते वह सत्ता के गलियारों में सम्मानित पदों पर विराजमान हो गए। जिनके पीछे चंबल के बीहड़ों में पुलिस भागती फिरती थी समय आने पर पुलिस ही उनकी सुरक्षा में लग गई। इससे देश प्रदेश में एक नई सोच बनी कि पहले अपराध करो और अपराध में नाम कमाकर फिर अपना राजनीतिकरण कर लो। जिससे सुरक्षा भी मिलेगी और सम्मान भी मिलेगा। वर्तमान समाजवादियों का देश की राजनीति के लिए दिया गया यह कुसंस्कार बहुत घातक रहा। इसके परिणामस्वरूप बड़ी तेजी से राजनीति के अपराधीकरण का संक्रामक रोग भारतीय राजनीति में फैला। जिससे देश में प्रदेश की छवि खराब हुई।
पिछले दिनों आजम खान से जिस प्रकार अखिलेश यादव ने दूरी बनाई थी उसको देखकर लगता था कि उन्होंने समाजवादी पार्टी के इतिहास से कुछ शिक्षा ले ली है और अब वे सोच समझकर कदम उठाएंगे। परंतु उनका मुस्लिम तुष्टीकरण का चेहरा और अपराधियों के प्रति नरमदिली उस समय उजागर हो गई जब उन्होंने प्रदेश में चल रहे चुनावों में अपनी पार्टी के प्रत्याशियों की पहली सूची में नामी-गिरामी बदमाशों और अपराधियों को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया। निश्चित रूप से अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस समय कड़ी चुनौती दे रहे थे, परंतु नामी-गिरामी बदमाशों को टिकट देने की उनकी सोच के स्पष्ट होते ही कई लोगों ने उनसे फिर दूरी बना ली है। इस सूची के जारी होते ही जो लोग अखिलेश की पिछली सरकार के पापों को भूल रहे थे, उन्हें पता चल गया कि यदि इस पार्टी को फिर सत्ता में आने का अवसर दिया तो इससे प्रदेश में बदमाशी और अपराध बढ़ेंगे । लूट, हत्या ,डकैती, बलात्कार की घटनाएं फिर उसी चरम पर होंगी, जिस पर इनके पिछले शासनकाल में रही थीं। इसके अतिरिक्त प्रदेश फिर से सांप्रदायिक दंगों की आग में भी जलेगा।
यह बहुत ही स्वागत योग्य कदम है कि उम्मीदवार के आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी न देने का आरोप लगाते हुए समाजवादी पार्टी की मान्यता खत्म करने की मांग वाली अर्जी पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट सहमत हो गया है। यह जनहित याचिका वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर की गई है। याचिकाकर्ता वकील अश्विनी उपाध्याय ने चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच से इस याचिका पर जल्द सुनवाई की मांग की थी। जिसे न्यायालय ने स्वीकार कर लिया है।
याचिकाकर्ता ने गैंगस्टर एक्ट में जेल गए सपा के प्रत्याशी रहे नाहिद हसन का विशेष रूप से उल्लेख किया है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने नाहिद हसन जैसे अपराधिक व्यक्ति को सपा का प्रत्याशी बनाए जाने पर याचिका को स्वीकार करके बहुत ही शानदार कार्य किया है। देश की जनता के पैसे से राजनीति कर रहे राजनेताओं को किसी भी प्रकार की तानाशाही करने का अधिकार कभी नहीं मिल सकता। उन्हें इस बात को स्वीकार करना पड़ेगा कि राजनीति में शुचिता की स्थापना के लिए ही वे राजनीति में आए हैं। यदि राजनीति का अपराधीकरण करना उनका उद्देश्य है तो फिर देश के कानून को अपना काम करना चाहिए। इसके लिए चाहे किसी भी पार्टी की बलि ली जाए या किसी नेता की बलि ली जाए तो भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय को संकोच नहीं करना चाहिए। देश के संविधान और देश के कानून से बढ़कर ना तो कोई पार्टी है और ना ही कोई नेता है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय को अपना आदेश जारी करने से पहले यह भी देखना चाहिए कि आखिर सपा के शासन में अपराध का ग्राफ क्यों बढ़ जाता है ? और क्यों उग्रवादी या समाज विरोधी ताकतें सड़क पर नंगा नाच करते हुए प्रदेश को दंगों में झोंक देती हैं ?
सपा और अपराध का चोली दामन का साथ रहा है । इसके लिए हमें थोड़ा सा इतिहास में झांकना पड़ेगा। बसपा की सुप्रीमो मायावती 2007 से 2012 तक उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रही थीं। यह बहुत ही दु:खद तथ्य है कि मायावती के शासनकाल में जितना अपराध था उससे 16% अधिक अपराध सपा के शासनकाल अर्थात 2012 से 2017 में बढा। आंकड़े हैं कि जहां बसपा के शासनकाल में हर रोज 5783 घटनाएं होती थीं वहीं सपा के कार्यकाल में यह आंकड़ा 6433 तक पहुंच गया था।
उत्तर प्रदेश में 2014-15 में दुष्कर्म की घटनाओं में 161 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई थी, राज्य अपराध ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 2014 में 3467 दुष्कर्म की घटनाएं हुईं, जो कि 2015 में बढ़कर 9075 पहुंच गईं। यही नहीं राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर नजर डालें तो प्रदेश में 70 प्रतिशत घटनाएं सपा विधायकों और सपा मंत्रियों के विधानसभा क्षेत्रों में हुई थीं। उस समय प्रदेश में चार वर्षों में 93 लाख से अधिक आपराधिक घटनाओं को अंजाम दिया गया, जिसमें प्रदेश की राजधानी सबसे आगे रही।अकेले लखनऊ में 2.78 लाख आपराधिक घटनाएं दर्ज हुईं। उस समय के बारे में ध्यान देने वाली बात यह थी कि लखनऊ में 9 में से 7 विधायक सपा के थे । जिनमें से तीन विधायक मंत्री थे।
अब सपा प्रमुख अखिलेश यादव को जनता के सामने आने से पहले अपने गिरेबान में बार बार झांककर देखना चाहिए था कि उन्होंने जो कुछ किया है वह सब आंकड़ों के रूप में पहले से ही प्रदेशवासियों के पास उपलब्ध है। ऐसे में वे जितने साफ-सुथरे कपड़े पहन कर आते हैं उतने ही साफ-सुथरे विचारों को लेकर भी लोगों के सामने उपस्थित हों तो कोई बात बने।
प्रदेश के लोगों को वह दिन भी याद है जब अखिलेश यादव ने डी0पी0 यादव जैसे आपराधिक छवि के नेता को पार्टी और संगठन से दूर करने का साहसिक निर्णय लिया था। उससे यह आशा जगी थी कि वे भविष्य में डी0पी0 यादव जैसे लोगों को कहीं भी प्रश्रय नहीं देंगे। यद्यपि अखिलेश यादव से इस प्रकार की गई अपेक्षा में उस समय भारी गिरावट देखने को मिली जब उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनावों में अतीक अहमद जैसे आपराधिक पृष्ठभूमि के नेता को चुनाव मैदान में उतार दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने कई अन्य ऐसे ही आपराधिक पृष्ठभूमि के नेताओं को चुनाव में टिकट देकर अपनी इच्छा साफ कर दी थी।
2017 के विधानसभा चुनावों में भी उन्होंने कई दागियों को टिकट दिए। इससे अखिलेश यादव का दोगलापन प्रकट हुआ और लोगों को लगा कि पिता और पुत्र में किसी प्रकार का अंतर नहीं है।
नेशनल इलेक्शन वॉच ने अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते यह दावा किया था कि उनकी सरकार में 54% आपराधिक पृष्ठभूमि के या दागी लोग मंत्री पद प्राप्त कर गए हैं। उस समय उत्तर प्रदेश की 403 सदस्यों की विधानसभा में 189 विधायक ऐसे थे जिन पर दागी होने के गंभीर आरोप थे। इनमें से 98 के विरुद्ध तो न्यायालयों में गंभीर आपराधिक मामले भी लंबित थे।
यदि सपा के मुखिया अपने परिवार की राजनीति को चमकाने के लिए इस बार के चुनाव में भी आपराधिक लोगों को ही टिकट देने का मन बना चुके हैं तो ऐसा करके उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि उनकी समाजवाद और लोकतंत्र के प्रति आस्था केवल एक नाटक है। वे धनबली, ‘गन’बली और बाहुबली लोगों के आधार पर राजनीति करना चाहते हैं । इसी आधार पर सत्ता को हथियाकर अपनी तानाशाही चलाने के लिए मार्ग खोज रहे हैं। वह जिन राम मनोहर लोहिया जैसे समाजवादी नेताओं का उदाहरण दे देकर वर्तमान मोदी सरकार या योगी सरकार को कोसते हैं तनिक उनके जीवन के बारे में भी उन्हें विचार करना चाहिए जो बहुत ही सादगी पूर्ण था और बहुत ही ईमानदारी के साथ वह देश को आगे बढ़ाने के लिए संघर्ष करते रहे थे। उन्होंने कभी भी सैफई महोत्सव जैसे वाहियात आयोजन करके देश के धन को वाहियात लड़के – लड़कियों को नचाने में खर्च करना उचित नहीं माना। वह देश की धरोहर थे और देश की सांस्कृतिक विरासत के प्रति उनकी अटूट आस्था थी। जबकि आज के समाजवादी और विशेष रूप से अखिलेश यादव के भीतर ऐसे संस्कार नहीं हैं।
भारतीय राजनीति के विषय में यह बहुत ही लज्जाजनक तथ्य है कि यहां पर कोई भी राजनीतिक दल दूध का धुला हुआ नहीं है। सभी अपनी-अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए अपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों का साथ लेते रहे हैं । नेशनल इलेक्शन वाच ने 2014 के लोकसभा चुनाव में सभी दलों के प्रत्याशियों की आपराधिक पृष्ठूभूमि का विश्लेषण किया था। कुल 1259 प्रत्याशियों के विश्लेषण में 235 ने अपने विरुद्ध आपराधिक मामलों की जानकारी दी थी। जिससे पता चला कि 19 फीसदी प्रत्याशी आपराधिक पृष्ठूभूमि के थे।
लोकसभा चुनाव 2014 में विभिन्न राजनीतिक दलों ने बढ़-चढ़कर अपराधिक पृष्ठभूमि के प्रत्याशी उतारे थे। जिन के आंकड़े इस प्रकार हैं – सपा 35, बसपा 35, भाजपा 28, कांग्रेस 27, आम आदमी पार्टी 16। इसके उपरांत भी यह एक अच्छी बात है कि वर्तमान में केंद्र की मोदी सरकार और प्रदेश में योगी सरकार राजनीति के अपराधीकरण को रोकने की दिशा में ठोस कार्य करते हुए चुनाव सुधार के प्रति गंभीरता दिखा रही हैं । यद्यपि इस कार्य में देश का वर्तमान विपक्ष अपेक्षित सहयोग नहीं कर रहा है।
इन आंकड़ों से पता चलता है कि राजनीतिक दल चुनाव सुधारों को लेकर चाहे कितनी ही बड़ी – बड़ी बातें क्यों न करते हैं पर वास्तव में इनका चिंतन राजनीतिक सुधारों को पूर्ण ईमानदारी के साथ लागू करने का कभी नहीं रहा है। एक से बढ़कर एक बाहुबली को साथ लेकर जब तक राजनीतिक दल चलते रहेंगे तब तक इनके सामाजिक न्याय प्रदान करने के खोखले नारों पर विश्वास करना असंभव है। अब समय आ गया है जब देश को खोखले नारों से या खोखले समाजवाद और खोखले आदर्शों से नहीं बल्कि यथार्थ के धरातल पर ठोस नीतियों को लागू करने से चलाया जाएगा।
अखिलेश यादव को अब यह भी समझ लेना चाहिए कि समाजवाद का अभिप्राय गुंडावाद जिंदाबाद नहीं है। समाजवाद का अर्थ है गुंडावाद समाप्त हो और देश प्रदेश के शरीफ गरीब लोगों को समय पर न्याय मिले।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत