कविता — 14
चर्चा हमारे उत्थान की संसार में सब ओर थी,
हमारे ज्ञान और विज्ञान की धाक चहुंओर थी।
हमारे सद्गुणों की कीर्ति पर संसार सारा मुग्ध था,
विधाता के हाथ में हमारी नियति की डोर थी।।
ऋषिगण हमारे उपनिषद में करते थे चर्चा ब्रह्म की,
जीवन जगत के गंभीर प्रश्न और मानव धर्म की।
हमारे पास उस काल में वायुयान का विज्ञान था,
ऋषि भारद्वाज जैसे महामना करते थे बातें तर्क की।।
राइट ब्रदर्स को जो श्रेय देते किया निर्माण वायुयान का,
नहीं ज्ञान उनको है तनिक अपने देश के विज्ञान का।
लाखों वर्ष पहले जिसने दिया विमान पुष्पक नाम का,
अधिकारी सच्चा है वही हमारे मान का सम्मान का।।
परमाणु का खोजकर्ता डाल्टन नहीं कणाद हैं,
जिसने हजारों वर्ष पहले दिया हमें सिद्धांत है।
परमाणुवाद का जनक रहता था प्रभास तीर्थ में
आज तक वह महर्षि सब संसार में विख्यात है।।
बौधायन ऋषि गणितज्ञ के रूप में विख्यात थे,
‘शुल्व सूत्र’ ‘श्रौतसूत्र’ जिनके ज्ञान के सिद्धांत थे।
ज्यामितिशास्त्र जिनका यूनान में विख्यात है,
‘पाइथागोरस’ के नियम इस ऋषि के हृदयस्थ थे।।
महान खगोलविद के रूप में जाने गए थे भास्कर,
आचार्य गणितज्ञ थे, लिखे ग्रंथ बड़े शोध कर ।
न्यूटन ने उनके ग्रंथ पढ़कर ज्ञान की चोरी करी
है नहीं अधिकार उसका गुरुत्वाकर्षण की शोध पर।।
‘सिद्धांत शिरोमणि’ ग्रंथ में विज्ञान के नियम दिए,
‘लीलावती’ में भी उन्होंने अनमोल से नियम दिए।
सूर्य और चंद्र ग्रहण का भेद हमको खोलकर,
अंतरिक्ष और खगोल के कई सारे प्रश्न कम किये।।
पातंजलि योग दर्शन विश्व को अनुपम हमारी देन है,
चिकित्सा और मनोविज्ञान का दिया जिसमें ज्ञान है।
‘अष्टाध्यायी’ के रचयिता पर हमें गर्व होना चाहिए,
आचार्य थे व्याकरण के विशद जिसमें भाषा ज्ञान है।।
अभ्रक, विंदास, धातुयोग का विज्ञान जिसके पास था,
लौहशास्त्र के विज्ञान का जिसके हृदय में प्रकाश था।
क्यों न हमको गर्व हो ? – ऋषि पतंजलि के ज्ञान पर,
हजारों वर्ष पूर्व अब से जिसे योग का अभ्यास था।।
वनस्पति और पेड़-पौधे हैं रचना निराली ईश की,
सुश्रुत ,चरक ,धन्वंतरी से हमको मिली यह सीख थी।
च्यवनप्राश जैसी औषधि जिसने हमें दी पुरुषार्थ से
वंदन हमारा है उसे जिसकी खोज हर सटीक थी ।।
शरीर और गर्भशास्त्र का विद्वान विधायक चरक था,
जिसका हर एक तर्क अपना न्याय – बुद्धि परक था।
हृदय रोग, मधुमेह जिसका क्षयरोग पर अधिकार था,
वह महामेधासम्पन्न चरक हमारी वंदना के योग्य था।।
आयुर्वेद पर प्रबंध लिखे, जिन्होंने तीन – तीन खंड में,
तब चरक और सुश्रुत का था सम्मान सारे विश्व में ।
जीने की ऐसी सीख दी जो रोग – शोक हमसे दूर हों,
उनके महापुरुषार्थ की तब ख्याति थी सारे विश्व में ।।
नागार्जुन ने शोध की धातु और रसायन शास्त्र पर,
‘रस रत्नाकर’ जैसा ग्रंथ इनका है रसायन शास्त्र पर।
पारे से स्वर्ण तैयार करना – नागार्जुन की थी कला
कई ग्रन्थ इनके हैं लिखे जिनका ऋण बड़ा संसार पर।।
एडिसन से पहले विद्युत के आविष्कारक अगस्त्य ऋषि,
उन ऋषियों में से वह एक रहे जो कहलाते हैं सप्तर्षि ।
दशरथ के थे राजगुरु और ‘अगस्त्य संहिता’ के रचयिता,
‘राकेश’ विद्युत की आविष्कारक बुद्धि मिली किसे ऐसी ?
(यह कविता मेरी अपनी पुस्तक ‘मेरी इक्यावन कविताएं’- से ली गई है जो कि अभी हाल ही में साहित्यागार जयपुर से प्रकाशित हुई है। इसका मूल्य ₹250 है)
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत