योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली और भाजपा छोड़ते नेता
सुरेश हिंदुस्तानी
योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली भी प्रदेश की जनता ने देखी है। दोनों में जमीन आसमान का अंतर है। कहने का आशय यह है कि प्रदेश की जनता योगी आदित्यनाथ की राजनीति से बहुत प्रसन्न है। अब उत्तर प्रदेश में विद्वेष की राजनीति को तिलांजलि दी जा चुकी है।
उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों से पूर्व जिस प्रकार से दलबदल करने के लिए कुछ राजनेता उतावले हो रहे हैं, उसके पीछे एक मात्र कारण यही माना जा रहा है कि ये सभी राजनेता भाजपा की विचारधारा को आत्मसात नहीं कर सके हैं। दूसरा बड़ा कारण यह भी माना जा रहा है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के काम करने का तरीका उत्तर प्रदेश में विगत कई वर्षों से चली आ रही राजनीति के तरीके से भिन्न है। हम भली भांति जानते हैं कि संन्यासी वृति के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ निःसंदेह उत्तर प्रदेश में स्वच्छ राजनीति के पक्षधर हैं और भाजपा छोड़ने वाले ज्यादातर विधायकों की राजनीतिक शैली बिलकुल भिन्न तरीके की रही है। कौन नहीं जानता कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में राजनीति करने वालों में दबंग किस्म के राजनेता भी मुख्य धारा में शामिल थे। प्रदेश की जनता इस प्रकार की राजनीति से प्रताड़ित भी होती रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यकीनन इस दबंग राजनीति पर लगाम लगाने का साहसिक कार्य किया है। वास्तव में लोकतंत्र को बचाने के लिए स्वच्छ छवि वाले राजनेताओं की बहुत आवश्यकता है, लेकिन कांग्रेस, सपा और बसपा की राजनीतिक कार्यशैली एकदम अलग प्रकार की है।
उत्तर प्रदेश के राजनीतिक हालातों का अध्ययन किया जाए तो यह सहज ही दिखाई देता है कि पूर्व की सरकारों के समय में अपनाई जाने वाली राजनीतिक शैली में जबरदस्त बदलाव आया है, लेकिन जिस व्यक्ति के स्वभाव को यह बदलाव पसंद नहीं है, वह निश्चित ही भाजपा के साथ राजनीति करने के लिए फिट नहीं बैठता। ऐसे लोग स्वाभाविक रूप से भाजपा का साथ छोड़ने के लिए बाध्य ही होंगे। हालांकि यह प्रामाणिक रूप से कहा जा सकता है कि दल बदल करने वाले राजनेताओं के कोई भी नीति सिद्धांत नहीं होते। वह अवसर देखकर अपने आप में बदलाव करने में सिद्धहस्त होते हैं। जहां तक प्रदेश के कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के पार्टी छोड़ने का सवाल है तो यही कहा जाएगा कि प्रदेश में उनके परिवार की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पर्याप्त भरपाई की गई, लेकिन मुख्य सवाल यही है कि भाजपा का जो कार्यकर्ता वर्षों से अहर्निश परिश्रम कर रहा है, उसकी उपेक्षा भी नहीं की जा सकती। और करनी भी नहीं चाहिए। जो लोग अभी हो रहे दलबदल को योगी आदित्यनाथ के लिए खतरे की घंटी निरूपित कर रहे हैं, वे ऐसा लगता है कि बहुत बड़े भ्रम में हैं। क्योंकि कांग्रेस, सपा और बसपा की कार्यशैली से प्रदेश की जनता भलीभांति परिचित है।
अब योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली भी प्रदेश की जनता ने देखी है। दोनों में जमीन आसमान का अंतर है। कहने का आशय यह है कि प्रदेश की जनता योगी आदित्यनाथ की राजनीति से बहुत प्रसन्न है। अब उत्तर प्रदेश में विद्वेष की राजनीति को तिलांजलि दी जा चुकी है। पहले प्रताड़ित लोग थाने जाने के लिए भय खाते थे, लेकिन अब वे पुलिस वाले भी जनता की बात को ध्यान से सुनते हैं जो सपा और बसपा के संरक्षण में कार्य करते रहे हैं। योगी आदित्यनाथ का स्पष्ट कहना है कि जिन अधिकारियों को राजनीति करनी है, वह राजनीतिक मैदान में आकर मुकाबला करें, पुलिस कार्यप्रणाली में राजनीति नहीं चलेगी। ऐसा वीडियो वायरल भी हुआ, जिसे प्रदेश सहित देश की जनता ने भी देखा।
उत्तर प्रदेश की राजनीति की सबसे बड़ी विसंगति यही है कि यहां की राजनीतिक धुरी चार प्रमुख दलों के आसपास ही घूमती है। जिसमें भाजपा वर्तमान में शासन में है। कांग्रेस, सपा और बसपा भी सरकार का संचालन कर चुकी हैं। हालांकि प्रदेश में जब से बहुजन समाज पार्टी का उदय हुआ है, तब से कांग्रेस की स्थिति रसातल को प्राप्त कर चुकी है। आज कांग्रेस की हालत ऐसी है कि उसके साथ कोई भी आने के लिए तैयार नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने बहुत बड़ी अपेक्षा के साथ कांग्रेस का हाथ पकड़ा था, लेकिन कांग्रेस ने सपा को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया। इसी प्रकार बसपा की भी कहानी इसी प्रकार की है। उसे अपनी सरकार बनने के पूरे आसार दिखाई दे रहे थे, लेकिन पूरे नहीं हो सके। इस बार बसपा प्रमुख मायावती ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। चुनाव से पूर्व मायावती की यह चुप्पी किसी बहुत बड़े कदम की आहट है। राजनीतिक रूप से यही कहा जाएगा कि मायावती अगर इसी प्रकार चुप रहकर तमाशा देखेंगी तो इसका लाभ सपा और कांग्रेस को मिल सकता है और भाजपा के लिए बहुत बड़ा संकट पैदा हो सकता है। हालांकि इस बार सपा और कांग्रेस के लिए करो या मरो वाली स्थिति है। यह भी सही है कि दोनों के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है, लेकिन राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए पूरा जोर लगाना होगा, जिसे दोनों दल कर भी रहे हैं। दूसरा यह भी एक कारण है कि कांग्रेस की ओर से प्रियंका वाड्रा को चमत्कारिक नेता के रूप में स्थापित करने के लिए ऐसा करना जरूरी भी है।
उत्तर प्रदेश के राजनीतिक हालात क्या होंगे, यह अभी से केवल अनुमान लगाया जा सकता है और अनुमान सत्य ही होंगे, ऐसा प्रामाणिक रूप से नहीं कहा जा सकता। लेकिन प्रदेश के विभिन्न कोनों से यह आवाज अवश्य ही मुखरित हो रही है कि विधायक बदल दीजिए, लेकिन मुख्यमंत्री योगी जी ही चाहिए। इसके निहितार्थ पूरी तरह से स्पष्ट हैं कि प्रदेश की जनता योगी को मुख्यमंत्री के रूप में पहली पसंद मानती है। उनके कार्य करने की शैली भ्रष्ट राजनेताओं के लिए चेतावनी का कार्य कर रही है। उनकी यही शैली आयातित नेताओं को भाजपा से दूर कर रही है। हालांकि इसे भाजपा के लिए शुभ संकेत भी माना जा रहा है। अब देखना यही है कि भाजपा अपने बिछड़ने वाले साथियों की भरपाई के लिए क्या तैयारी करती है।