कवि हृदय भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी
उगता भारत ब्यूरो
अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री के रूप में तीन बार देश का नेतृत्व किया है. वे पहली बार साल 1996 में 16 मई से 1 जून तक, 19 मार्च 1998 से 26 अप्रैल 1999 तक और फिर 13 अक्टूबर 1999 से 22 मई 2004 तक देश के प्रधानमंत्री रहे हैं. अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी के कवि, पत्रकार और प्रखर वक्ता भी हैं. भारतीय जनसंघ की स्थापना में भी उनकी अहम भूमिका रही है. वे 1968 से 1973 तक जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे।
नरेन्द्र मोदी और अटल बिहारी वाजयेपी में एक अजीब संयोग है। नरेन्द्र मोदी का बचपन जहाँ गुजरात के वडनगर में बीता वहीं अटल जी का बचपन मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के बड़नगर में बीता। उनके पिता शिक्षक थे और उनका तबादला ग्वालियर से बड़नगर कर दिया गया था। बड़नगर में वे कवि प्रदीप और शारदा शंकर व्यास के सहपाठी थे। स्कूल के बाद कवि प्रदीप, अटल जी और शारदाशंकर व्यास तीनों शारदा शंकर व्यास की मिठाई की दुकान पर कड़ाई में बची मिठाई की खुरचन खाने जाते थे। शारदा शंकर जी व्यास का कुछ साल पहले उज्जैन में निधन हो गया। लेकिन जब भी अटल जी उज्जैन आते थे अपने मित्र शारदा शंकर से मिलना नहीं भूलते थे।
अटल जी राजनीतिक जीवन में कभी ग्वालियर तो कभी लखनऊ से चुनाव लड़ते। ग्वालियर में ही 25 दिसंबर 1924 को उनका जन्म हुआ था। वहीं विक्टोरिया कॉलेज से उन्होंने पढ़ाई की। कॉलेज के दिनों से ही उनकी एक महिला मित्र थीं राजकुमारी कौल, जो अपने आखिरी समय तक अटल जी के साथ थीं। दोनों ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (अब लक्ष्मीबाई कॉलेज) में सहपाठी थे। अटल जी कॉलेज के दिनों में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में प्रचारक और जनसंघ की राजनीति में सक्रिय रहे। उनके पिता का नाम कृष्ण बिहारी वाजपेयी और माता का नाम कृष्णा वाजपेयी था। हालांकि अटल बिहारी का संबंध उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के बटेश्वर गांव से भी है, लेकिन पिता मध्यप्रदेश में शिक्षक थे, जिसकी वजह से उनका जन्म मध्यप्रदेश में ही हुआ।
उत्तर प्रदेश में जन्म भले ही नहीं हुआ लेकिन उनका राजनीतिक लगाव सबसे अधिक यूपी से ही रहा। अटल का राजनीतिक सफर बेहद खास रहा है यही वजह है कि उम्र के इस पढ़ाव पर आने के बाद भी अटल बिहारी का व्यक्तित्व न सिर्फ अपनी पार्टी में बल्कि विपक्ष केे नेताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।
शायद ही बहुत से लोग यह जानते होंगे कि आज अटल बिहारी वाजपेयी सिर्फ राजनेता ही नहीं बल्कि एक पत्रकार भी थे। लेकिन पत्रकार से सियासत की दुनिया में उन्होंने कैसे कदम रखा आज उसपर ही चर्चा करेंगे। कहा जाता है कि एक घटना ने पत्रकार वाजपेयी की जिंदगी को संसदीय राजनीति की ओर मोड़ दिया।
मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में अटल ने इसका जिक्र किया है कि कैसे वो पत्रकार से राजनेता बने। वाजपेयी बताते हैं कि वे दिल्ली में साल 1953 में बतौर पत्रकार काम कर रहे थे और उस समय भारतीय जनसंघ के नेता डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा किए जाने के खिलाफ थे। वाजपेयी ने जानकारी देते हुए कहा कि डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर में लागू परमिट सिस्टम का विरोध करने के लिए वहां चले गए और उस समय मैं इसे कवर करने के लिए उनके साथ गया।
बता दें कि परमिट सिस्टम के मुताबिक किसी भी भारतीय नागरिक को जम्मू-कश्मीर में बसने की अनुमति नहीं थी। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर जाने के लिए हर भारतीय नागरिक के पास पहचान पत्र होना जरूरी था, लेकिन श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसके खिलाफ थे, लेकिन डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने परमिट सिस्टम को तोड़कर श्रीनगर पहुंचे और उनको गिरफ्तार कर लिया गया।
इसे कवर करने पहुंचे वाजपेयी समेत अन्य पत्रकारों को वापस दिल्ली भेज दिया गया। आगे की घटना का जिक्र करते हुए वाजपेयी ने कहा कि डॉ मुखर्जी ने मुझसे कहा कि वाजपेयी जाओ, और दुनिया वालों को कह दो कि मैं कश्मीर में आ गया हूं, बिना किसी परमिट के। वाजपेयी ने कहा कि इस घटना के थोड़े दिन बाद ही कश्मीर में नजरबंदी की हालत में सरकारी अस्पताल में डॉ मुखर्जी की मौत हो गई। जिससे अटल बहुत दुखी हुए।
इंटरव्यू में वाजपेयी ने कहा कि इसके बाद मुझे लगा कि मुझे डॉ मुखर्जी के काम को आगे बढ़ाना चाहिए और यही वजह था कि मैं पत्रकारिता छोड़ राजनीति में आ गया। सन 1957 में अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार सांसद बनकर लोकसभा में आए और 1996 में वो पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने। हालांकि मात्र 13 दिनों के लिए ही। 1998 में वह फिर से पीएम बने और 2004 तक रहे। अटल बिहारी वाजपेयी राजनीतिक का जीवन लगभग आधी सदी का है। इस दौरान उन्होंने भारत में कई उतार-चढ़ाव देखे।
कहा यह भी जाता है कि अटल जी अपनी इस महिला मित्र से प्रेम करते थे। कुछ जानकार और किताबें इस बात का भी हवाला देती हैं कि वाजपेयी जी ने कॉलेज के दिनों में कौल को एक चिट्ठी लिख प्यार का इजहार भी किया था। लेकिन उसका कोई जवाब उन्हें कभी नहीं मिला। हालांकि, बताया यह भी जाता है कि अटल जी ने चिट्ठी जिस किताब में रखबर लाइब्रेरी में छोड़ा था, उसी किताब में राजकुमारी कौल ने जवाब भी लिखा। लेकिन वह कभी अटल जी तक पहुंचा ही नहीं। अटल जी पर लिखी गई किताब ‘अटल बिहारी वाजपेयीः ए मैन ऑफ आल सीजंस’ में इस घटना का जिक्र है।
बहरहाल, जीवन की गाड़ी आगे बढ़ी। अटल जी मुख्यधारा की राजनीति में सक्रिय हो गए और इसी बीच राजकुमारी कौल के पिता ने उनकी शादी एक कॉलेज प्रोफेसर ब्रिज नारायण कौल से कर दी। शादी के बाद राजकुमारी कौल का परिवार दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामजस कॉलेज कैम्पस में रहने लगा। कहा जाता है कि दिल्ली में अटल जी और राजकुमारी कौल की दोस्ती फिर से गहरी हो गई। राजकुमारी कौल ने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘मैंने और अटल बिहारी वाजपेयी ने कभी इस बात की जरूरत नहीं महसूस की कि इस रिश्ते के बारे में कोई सफाई दी जाए।’
एक प्रखर वक्ता, दृढ़ राजनेता और कवि हृदय वाले अटल बिहारी को कई राजनीतिक जानकार ‘आदर्श प्रेमी’ की भी संज्ञा देते हैं। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने अटल जी और राजकुमारी कौल के संबंध को ‘देश के राजनीतिक हलके में घटी सबसे सुंदर प्रेम कहानी’ बताया है। दिलचस्प बात यह रही कि अटल जी और राजकुमारी कौल का संबंध कभी चर्चा का कारण नहीं बना। हालांकि जब 2014 में राजकुमारी कौल की मौत हुई तो देश के कई बड़े अखबारों ने इसे प्रमुखता से छापा। कई बड़े अखबार समूह ने तो राजकुमारी कौल को अटल जी के जीवन की डोर तक बताया।
कुलदीप नैय्यर ने टेलीग्राफ में लिखा था, ‘संकोची मिस कौल अटल की सबकुछ थीं। उन्होंने जिस तरह अटल की सेवा की, वह कोई और नहीं कर सकता था। वह हमेशा उनके साथ रहीं।’ दक्षिण भारत के पत्रकार गिरीश निकम ने बताया था कि अटल जी जब प्रधानमंत्री नहीं थे, तब भी मैं उनके घर पर फोन करता था तो वही फोन उठाती थीं और कहती थीं- मैं मिसेज कौल बोल रही हूं।
दोनों की दोस्ती की नैतिकता ऐसी थी कि राजकुमारी कौल के पति ब्रिज नारायण कौल को भी इस पर कोई ऐतराज नहीं था। राजकुमारी कौल ने 80 के दशक में एक मैगजीन को इंटरव्यू दिया था। इसमें उन्होंने कहा, ‘अटल के साथ अपने रिश्ते को लेकर मुझे कभी अपने पति को स्पष्टीकरण नहीं देना पड़ा। हमारा रिश्ता समझबूझ के स्तर पर काफी मजबूत था।’
किताब ‘अटल बिहारी वाजपेयीः ए मैन ऑफ आल सीजंस’ में राजकुमारी कौल के एक परिवारिक करीबी के हवाले से कहा गया है, ‘वास्तव में वह अटल से शादी करना चाहती थीं, लेकिन घर में इसका जबरदस्त विरोध हुआ। हालांकि अटल ब्राह्मण थे, लेकिन कौल अपने को कहीं बेहतर कुल का मानते थे। मिसेज कौल की सगाई के लिए जब परिवार ग्वालियर से दिल्ली आया, उन दिनों यहां 1947 में बंटवारे के दौरान दंगा मचा हुआ था। इसके बाद शादी ग्वालियर में हुई।’
मोरारजी देसाई की सरकार में जब अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री हुए तो कौल परिवार लुटियंस जोन में उनके साथ ही रहता था। अटल बिहारी वाजपेयी जब पीएम बने तो उनके सरकारी निवास पर भी राजकुमारी कौल अपनी बेटी नमिता और दामाद रंजन भट्टाचार्य के साथ रहती थीं। अटल जी ने नमिता को दत्तक पुत्री का दर्जा दिया था और कौल परिवार ही उनकी देखरेख करता था। जिस वक्त मिसेज कौल का निधन हुआ, अटल बिहारी वाजपेयी अल्जाइमर रोग से ग्रस्त हो चुके थे। बावजूद इसके मिसेज कौल के अंतिम संस्कार में लालकृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह और सुषमा स्वराज मौजूद रहे। ज्योतिरादित्य सिंधिया भी उनके अंतिम संस्कार में पहुंचे।
आजीवन राजनीति में सक्रिय रहे अटल बिहारी वजपेयी लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और वीर अर्जुन आदि पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादन भी करते रहे हैं. वाजपेयी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समर्पित प्रचारक रहे हैं और इसी निष्ठा के कारण उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लिया था. सर्वोच्च पद पर पहुंचने तक उन्होंने अपने संकल्प को पूरी निष्ठा से निभाया.
अटल बिहारी वाजपेयी और उनके पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी ने कानपुर के डीएवी कॉलेज में एक साथ ही कानून की पढ़ाई शुरू की थी. एक ही क्लास में होने के साथ-साथ ही इन्हें हॉस्टल में भी एक ही कमरा भी दिया गया था. जिसके बाद पिता और बेटे के रिश्ते के साथ ही इनका दोस्ती का रिश्ता भी हो गया.
इसके अलावा हिंदी सिनेमा से भी उन्हें खास लगाव था. उन्हें’उमराव जान’ फिल्म बहुत पसंद थी. कोलकाता के बेरीवाला परिवार ने दिग्गज नेता को याद करते हुए कहा कि उन्हें पांच सितारा होटलों में रहना नहीं पसंद था. वह जब भी कोलकाता आते सीआर अवेन्यू में बेरीवाला परिवार के घर ही ठहरते थे. उन्होंने कहा कि साल 1957 में वाजपेयी कोलकाता आए और हमारे साथ रहे.
पूर्व प्रधानमंत्री के जल्द स्वस्थ होने की कामना करते हुए उनके मित्र घनश्याम बेरीवाला ने बताया कि वह मांशाहारी खाने के शौकीन थे. खासकर उन्हें मछली खाना बहुत पसंद था. उन्होंने कहा कि वाजपेयी को तीखे गोलगप्पे बहुत पसंद थे. वह गोलगप्पे वाले को ऊपर कमरे में बुलाते और गोलगप्पे खाने से पहले उसमें खूब सारी मिर्च डलवाते.
मशहूर कारोबारी घनश्याम बेरीवाला ने बताया कि वह वाजपेयी जी से पहली बार 1952 में आरएसएस की बैठत में मिले थे. इसके बाद वाजपेयी जी 1956 में कोलकाता आए और होटल में ठहरने की बजाए उनके घर पर ही रुके. घनश्याम बेरीवाला के बेटे कमल बेरीवाला ने कहा कि वाजपेयी सादगी पसंद व्यक्ति थे. वह हमारे घर की ऊपरी मंजिल पर बने कमरे में रुकना पसंद करते थे. अटल बिहारी वाजपेयी और अपनी दोस्ती को याद करते हुए घनश्याम बेरीवाला ने बताया कि सांसद होने के बावजूद भी वाजपेयी जी हमारी घर की महिलाओं के साथ बैठकर बातें करते थे. उन्होंने मेरी नई नवेली बहु प्रतिभा के लिए चाय भी बनाई थी.
प्रतिभा ने कहा कि इतने बड़े नेता को अपने लिए चाय बनाता देख मैं दंग रह गई. प्रतिभा ने कहा कि 1981 में जब ‘उमराव जान’ फिल्म रिलीज हुई थी वाजपेयी जी कोलकाता में ही थे. उन्होंने एक रात में तीन बार वह फिल्म देखी इतना ही नहीं वह अपने साथ फिल्म की वीसीडी भी दिल्ली ले गए. कुछ वर्षों के बाद कोलकाता आने पर उन्होंने वीसीटी लौटा दी थी.
बेरीवाला परिवार ने अटल बिहारी वाजपेयी से जुड़ी सभी सभी यादें तस्वीरों के रूप में सहेज कर रखी हैं. जिस कमरे में वाजपेयी ठहरते थे बेरीवाला परिवार ने उसे उसी तरह रखा है. परिवार के लोगों ने अटल जी के अच्छे स्वास्थ्य की कामना की है.
भारतीय जनता पार्टी की सांसद हेमा मालिनी ने पिछले साल मथुरा में एक कार्यक्रम के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से जुड़ा ये राज खोला था. हेमा मालिनी ने बताया कि अटल बिहारी वाजपेयी को उनकी एक फिल्म इतनी ज्यादा पसंद आयी कि उन्होंने 25 बार देखी थी. यह फिल्म 1972 में आई सीता और गीता थी.
हेमा मालिनी ने इसी दौरान इस पूरे किस्से का जिक्र करते हुए बताया था कि मुझे याद है कि एक बार मैंने पदाधिकारियों से कहा कि मैं भाषणों में अटल बिहारी वाजपेयी का जिक्र करती हूं. लेकिन उनसे कभी मिली नहीं, मिलवाइए, तब वो मुझे उनसे मिलाने ले गए. लेकिन मैंने महसूस किया कि अटल बिहारी वाजपेयी बात करने में कुछ हिचकिचा रहे हैं. इस पर मैंने वहां मौजूद एक महिला से पूछा कि क्या बात है. अटल जी, ठीक से बात क्यों नहीं कर रहे. उन्होंने बताया कि असल में ये आपके बहुत बड़े प्रशंसक रहे हैं. इन्होंने 1972 में आई आपकी फिल्म ‘सीता और गीता’ 25 बार देखी थी. इसलिये वह अचानक आपको सामने पाकर हिचकिचा रहे हैं.
अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में हुए कंधान विमान अपहरण कांड के बारे में काफी लोगों को जानकारी है. लेकिन यह शायद कम ही लोगों को पता है कि कंधार विमान अपहरण से एक दशक पहले वाजपेयी ने खुद अपनी जान पर खेलकर 48 लोगों को जान बचाई थी. उस समय खुद वाजपेयी हाइजैकर के सामने खड़े हो गए थे. यह पूरा मामला 22 जनवरी 1992 का है. उस दिन लखनऊ से दिल्ली की उड़ान भर रही इंडियन एयरलाइंस के विमान को उड़ान भरने के 15 मिनट बाद हाइजैक कर लिया गया.
उड़ान में सवार एक शख्स ने अपने पास केमिकल बम होने का दावा किया और फ्लाइट को वापस लखनऊ हवाई अड्डे ले जाने के लिए कहा. इस पर विमान में सवार सभी लोगों की सांसे थम गई. विमान हाईजैक होने की सूचना से सुरक्षा एजेंसियों में हड़कंप मच गया. अपहरणकर्ता की बात मानते हुए विमान को लखनऊ एयरपोर्ट पर लैंड किया गया. सुरक्षा एजेंसियों ने हाईजैकर से संपर्क किया तो उसने मांग की कि उसे विपक्ष के बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी से मिलना है. उसने धमकी दी की यदि मुलाकात नहीं हुई तो वह विमान को बम से उड़ा देगा.
किस्मत से उस दिन वाजपेयी जी समेत तमाम विपक्षी नेता लखनऊ में ही थे. उस समय पूर्व प्रधानमंत्री सर्किट हाउस में खाना खा रहे थे. इस दौरान लखनऊ के डीएम भागे हुए वाजपेयी जी के पास आए. उन्होंने वाजपेयी जी से कहा कि आपका इस समय लखनऊ एयरपोर्ट चलना जरूरी है. उन्होंने वाजपेयी जी को पूरी बात बताई और कहा अगर आप नहीं मिले तो वह पूरे विमान को उड़ा देगा.
इसके बाद अटल जी वहां से सीधे एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गए. अटल बिहारी वाजपेयी को पहले एयर ट्रैफिक कंटोलर के टावर पर ले जाया गया. वहां से अटल जी ने अपहरणकर्ता से बात की, लेकिन उसे वाजपेयी की आवाज को पहचानने से इंकार कर दिया. वह लगातार विमान को उड़ाने की धमकी दे रहा था. इसके बाद वाजपेयी, डीएम और लालजी टंडन जीप में बैठकर विमान के पास पहुंचे. विमान के नीचे फिर से हाईजैकर की वाजपेयी से बात कराई गई लेकिन उसने इस बार भी आवाज को पहचानने से इनकार कर दिया.
इसके बाद अटल जी ने प्लेन के अंदर जाने का फैसला किया. इस दौरान अटल बिहारी वाजपेयी के साथ लालजी टंडन भी थे. वह अपहरणकर्ता के सामने खड़े हो गए. लालजी टंडन ने हाईजैकर से कहा कि तुम वाजपेयी से मिलना चाहते थे वह तुम्हारे सामने खड़े हैं. तुम अपनी मांग रखो और इनके पैर छू लो. जैसे ही हाईजैकर वाजपेयी के पैर छूने के लिए आगे आया सुरक्षाबलों ने उसे पकड़ लिया.
अटल बिहारी वाजपेयी और बॉलीवुड के दिग्गज एक्टर दिलीप कुमार के आपसी रिश्ते काफी अच्छे रहे हैं. दोनों एक-दूसरे के इतने करीब थे कि अटल बिहारी वाजपेयी के लिए दिलीप कुमार ने तत्कालीन पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ को डांटते हुए ‘शराफत’ से रहने की सलाह दे दी थी.
इस वाक्ये को पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद कसूरी की किताब ‘नाइदर अ हॉक नॉर अ डव’ में लिखा है, ‘एक बार जब जंग को खत्म करने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ को फोन किया था और उनकी बात एक्टर दिलीप कुमार से करवाई थी. नवाज दिलीप कुमार की आवाज सुनकर चौंक गए थे.’
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और अभिनेता दिलीप कुमार के रिश्ते काफी अच्छे थे और ऐसा कई मौकों पर अकसर सामने भी आता रहा था. पाकिस्तान की करगिल घुसपैठ के दौरान एक ऐसा मौका भी आया जब अटल बिहारी वाजपेयी के लिए दिलीप कुमार ने तत्कालीन पाक पीएम नवाज शरीफ तक को डांट लगा दी थी. दिलीप ने शरीफ को ‘शराफत’ से रहने की सलाह भी दे दी थी. दिलीप कुमार ने नवाज शरीफ से कहा, ‘मियां साहब हम आपकी तरफ से ऐसी उम्मीद नहीं करते थे, क्योंकि आपने हमेशा कहा है कि आप भारत और पाकिस्तान के बीच शांति चाहते हैं.’
दिलीप कुमार ने अटल जी के कहने पर नवाज शरीफ से बात की और कहा, ‘मैं एक भारतीय मुसलमान के तौर पर आपको बताना चाहता हूं कि पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव की स्थिति में भारतीय मुस्लिम बहुत असुरक्षित हो जाते हैं और उन्हें अपने घरों से भी बाहर निकलना मुश्किल लगता है. इसलिए हालात को काबू रखने में कुछ कीजिए.’
11 मई 1998 का दिन भारत के इतिहास के पन्नों का एक ऐसा दिन है जिसने भारत को एक नई जीत दिलाई थी लेकिन इस जीत और पहल का सारा श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी को ही जाता है. दरअसल, 11 मई 1998 को राजस्थान के पोखरण में तीन बमों का सफल परीक्षण किया गया था और इसके साथ ही भारत न्यूक्लियर स्टेट बन गया. यह देश के लिए गर्व का पल था. हालांकि, भारत को परमाणु राष्ट्र बनाना आसान नहीं था.
अक्सर ही अपनी कविताओं और भाषणों से लोगों का दिल जीत लेने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत को परमाणु राष्ट्र बनाने के लिए हरी झंडी दिखाई थी लेकिन उनके लिए यह आसान नहीं था. दरअसल, 1998 में वाजपेयी को प्रधानमंत्री बनने के लिए कई सारी क्षेत्रिय पार्टियों के साथ समझौते करने पड़े थे.
यहां आपको बता दें कि, अटल बिहारी वाजपेयी 1996 में ही भारत को परमाणु राष्ट्र बनाना चाहते थे. जिस वक्त उन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली थी और पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने उन्हें परमाणु बम के बारे में बताया था. लेकिन उस वक्त वाजपेयी की सरकार 13 दिन से ज्यादा नहीं टिक पाई थी और इस वजह से उन्होंने इस फैसले को रद्द कर दिया था.
बता दें कि, 1995 में वर्तमान प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने परीक्षण की सभी तैयारियां कर ली थी लेकिन किसी वजह से वह इस परीक्षण को अंजाम नहीं दे पाए. इसके पीछे कई थ्योरी बताई जाती हैं. जिसमें से एक के मुताबिक अमेरिकी उपग्रहों को पोखरण में तैयारी के बारे में पता चल गया था, जिस वजह से उस वक्त परीक्षण को निरस्त करना पड़ा था. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1996 में 13 दिन तक सरकार में रहने के दौरान अटल ने इकलौता परमाणु कार्यक्रम को हरी झंडी दिखाने का फैसला किया था लेकिन जब उन्हें लगा कि उनकी सरकार स्थिर नहीं है तो उन्होंने इस फैसेल को रद्द कर दिया था. इन सभी घटनाओं से एक बात तो साफ है कि अटल और नरसिम्हा राव दोनों ही भारत को परमाणु राष्ट्र बनाना चाहते थे.
न्यूकलर परीक्षण के काम को चोरी छिपे लगातार किया जा रहा था. केवल पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और कुछ अन्य लोगों को ही परीक्षण से पूर्व इसकी जानकारी थी. अटल कई कारणों से परीक्षण जल्दी करना चाहते थे. वह जानते थे कि चीन के पास परमाणु हथियार हैं और पाकिस्तान ने भी गौरी मिसाइल सफलतापूर्वक टेस्ट कर ली थी. पाकिस्तान के सूचना मंत्री मुशाहिद हुसैन गौरी के विकास को ‘दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन का प्रयास’ बता रहे थे. गौरी के अलावा पाकिस्तान ‘गज़नवी मिसाइल’ पर भी काम कर रहा था. वहीं चीन-पाकिस्तान की बढ़ती नजदीकियां भी भारत के लिए खतरा बन रही थी. अमेरिका और जापान समेत कई पश्चिमी देश भी भारत पर CTBT पर साइन करने के लिए दबाव डाल रहे थे.
परीक्षण की इजाजत देने के बाद कुछ देर तक परीणाम जानने का इंतजार करने के बाद अटल ने अपने घर पर एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई थी. इस प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने सफल परमाणु परीक्षण की जानकारी देते हुए कहा था, ‘आज 15:45 बजे, भारत ने तीन अंडरग्राउंड न्यूक्लियर टेस्ट को पोखरण में अंजाम दिया. आज किया गया यह परीक्षण एक विखंडन उपकरण, कम उपज डिवाइस और थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस से लेस था. उसका उपज अपेक्षित मूल्यों के अनुरूप मापा गया है. मापन ने यह भी पुष्टि की है कि वातावरण में रेडियोधर्मिता से बाहरी लोगों को कोई नुकसान नहीं हुआ. इस प्रयोग भी 1974 में किए गए प्रयोग के जैसे विस्फोट का इस्तेमाल किया गया था. मैं सभी वैज्ञानिकों और इंजीनियर जिन्होंने इस परीक्षण को सफल बनाने में मदद की को बधाई देता हूं.’ हालांकि, वह हमेशा ही इस परीक्षण का श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को देते हैं.
साल 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी की घोषणा कर दी थी. विपक्षी दलों के नेताओं ने जोर-शोर से इसका विरोध किया था. भारी विरोध के बीच इंदिरा गांधी को झुकना पड़ा था और 1977 में चुनाव का ऐलान किया गया था. इमरजेंसी खत्म होने पर दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली का आयोजन किया गया था. इस रैली में अटल बिहारी वाजपेयी भी पहुंचे थे. भाषण देने के लिए वे जैसे ही मंच पर खड़े हुए वहां ‘इंदिरा गांधी मुर्दाबाद’ और अटल बिहारी जिंदाबाद के नारे लगने लगे.
अटल बिहारी वाजपेयी ने भीड़ को शांत रहने का इशारा किया. इसके बाद अपने खास अंदाज में थोड़ी देर शांत रहने के बाद कहा- ‘बाद मुद्दत मिले हैं दीवाने.’ इसके बाद वे फिर से शांत हो गए और अपनी आंखें मूंद ली. इसके बाद खचाखच भरे रामलीला मैदान में भीड़ दीवानी हो गई. पूरे वातावरण में जिंदाबाद का नारा गूंजायमान हो रहा था. इसके बाद वाजपेयी ने एक बार फिर से आंखें खोली और भीड़ को शांत रहने का इशारा किया. इसके बाद कहा- ‘कहने सुनने को बहुत हैं अफसाने.’ एक बार फिर से भीड़ नारे लगाने लगी. फिर वाजपेयी ने कहा- ‘खुली हवा में जरा सांस तो ले लें, कब तक रहेगी आजादी भला कौन जाने.’
इन तीन पंक्तियों में ही वाजपेयी ने इमरजेंसी खत्म होने की सारी प्रतिक्रिया जाहिर कर दी. इसके बाद भीड़ ने इतने नारे लगाए कि वाजपेयी को कुछ और कहने की जरूरत ही नहीं पड़ी. देश ने देखा कि वाजपेयी कितने करिश्माई नेता हैं. जनता किस कदर उन्हें सुनना चाहती है.
जब बीजेपी के संगठन ने वेंकैया नायडू को पार्टी अध्यक्ष बनाने का फैसला का लिया. लेकिन फैसला लेने के पहले पीएम रहे वाजपेयी को नहीं बताया गया. जब यह तय हो गया कि पार्टी के अध्यक्ष अब वेंकैया नायडू होंगे तो जसवंत सिंह और अरुण जेटली को यह बताने के लिये अटल जी से मिलने पहुंचे. ऐसा माना जाता है कि वाजपेयी इस फैसले से खुश नहीं थे.वाजपेयी ने जसवंत और अरुण जेटली के लिये जूस मंगवाया और दोनों से पार्टी के फैसले के बारे में सुना. वाजपेयी आंखे मूंदे सुनते रहे लेकिन कहा कुछ ननहीं. इसी बीच जसवंत सिंह ने जूस पीने के बाद वहां गिलास लेने आये कर्मचारी से पूछा कि क्या जूस ताजा था?
अपनी वाकपटुता के लिये मशहूर वाजपेयी ने जसवंत की बात सुनकर तुरंत जवाब दिया, अब पूछने से क्या फायदा? वाजपेयी ने बातों ही बातों में अपनी असहमति जता दी थी.
मशहूर कॉमेडियन एक्टर जॉनी लीवर ने भी अनुपम खेर को दिए एक इंटरव्यू शो में अटल बिहारी वाजपेयी को लेकर एक किस्सा सुनाया. जॉनी लीवर अक्सर अपने जोक्स में पूर्व प्रधानमंत्री के भाषण के स्टाइल को कॉपी करते रहे हैं.
इसे देखने के बाद एक बार जॉनी लीवर की अटल बिहारी वाजपेयी से मुलाकात हुई थी. उस वक्त जॉनी लीवर घबरा गए कि कहीं उनकी कॉपी करने की वजह से उन्हें कुछ सुनना न पड़े, लेकिन इसका बिल्कुल उलट हुआ.
जॉनी लीवर को देखकर अटल बिहारी ने अपने अंदाज में सभी को हटाते हुए हाथ खोलकर बोले- ‘अरे… मेरा पार्टनर आ गया यार’ और फिर गले लगा लिया. अटल बिहारी के इस व्यवहार को लेकर जॉनी काफी खुश हुए. अनुपम खेर को अटल बिहारी वायपेयी के बोलने के स्टाइल को कॉमेडी अंदाज में एक जोक भी सुनाया. जिसे आप वीडियो में साफ देख सकते हैं.
जब कभी अटल जी और उनके अविवाहित होने का जिक्र होता है, तो सदन में उनका वह बयान याद आ जाता है। विपक्ष के हमलों के बीच तब अटल जी ने बड़ी साफगोई के साथ संसद में कहा था, ‘मैं अविवाहित जरूर हूं, लेकिन कुंवारा नहीं।’ ऐसा भी नहीं है कि आजीवन अविवाहित रहने का सवाल अटल जी से नहीं पूछा गया। हालांकि, जब कभी भी यह सवाल आया उन्होंने एक ही जवाब दिया।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयीपर राष्ट्रधर्म के विशेषांक ‘हम सबके अटल जी’ का विमोचन मंगलवार को यशपाल सभागार में राज्यपाल राम नाईक ने किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि पूरे भारत के राजनीतिक और सामाजिक जीवन में अटल जी जैसा जन नायक हमने नहीं देखा। उन्हें भारत रत्न देकर केंद्र सरकार ने सभी भारतीयों के मन की इच्छा पूरी की है। इसी तरह आपने भी उन पर यह अंक निकालकर लोगों के मन की इच्छा पूरी की है।
राज्यपाल ने भी अटल जी से जुड़े कई संस्मरण सुनाए। कहा कि करीब 50 साल तक उनका साथ मुझे मिला। अटल जी के करीबी रहे पूर्व सांसद लाल जी टंडन ने भी कई संस्मरण सुनाए। इस मौके पर अटल के स्वास्थ्य को लेकर टंडन का दर्द उभर आया। उन्होंने कहा कि काश, आज अटल जी दो शब्द भी बोल देते तो राजनीति की पूरी दिशा बदल जाती। मैं उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूं। वह जल्दी स्वस्थ हो जाएं और फिर से हम उनकी वाणी को सुन सकें।
टंडन ने कहा कि अटल जी को मैंने अपने बड़े भाई, पिता, मित्र, नेता और मार्गदर्शक सहित कई भूमिकाओं में देखा है। मैं समझ नहीं पा रहा कि उन्हें किस रूप में याद करूं। यह हमारा दुर्भाग्य है कि वह बोल नहीं रहे हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन मंत्री राम लाल ने कहा कि अटल जी का व्यक्तित्व ऐसा था कि विरोधी भी उनकी तारीफ करते थे। खासकर उनकी बोलने की अदा के सभी कायल थे। कई बार तो बोलने के लिए उन्हें शब्दों की जरूरत नहीं होती थी, बल्कि सिर्फ आंखों और हाथों के इशारे वे अपनी बात कह देते थे।
राज्यपाल राम नाईक ने बताया कि मुझे कैंसर हुआ था। उस समय मैं पब्लिक एकाउंट कमिटी का इस्तीफा लेकर उनके पास गया। अटल जी ने कहा कि जाओ तुम्हें कुछ नहीं होगा और इस्तीफा नहीं लिया। वह बहुत सरल थे, लेकिन जहां सख्त फैसले लेने की जरूरत होती तो वहां कठोर भी हो जाते थे। पोखरण विस्फोट इसका उदाहरण है। प्रतिबंध लगाने के बाद अमेरिका को उन्हें हटाने को मजबूर होना पड़ा। समारोह की अध्यक्षता कर कर रहे डॉ़ एससी राय ने भी अटल जी से जुड़े संस्मरण सुनाए। राष्ट्र धर्म के संपादक आनंद मिश्र अभय ने सभी अतिथियों को धन्यवाद दिया।
अटल बिहारी वाजपेयी की मशहूर 6 कविताएं:
1. उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा.
क़दम मिलाकर चलना होगा.
2. हरी हरी दूब पर
ओस की बूंदे
अभी थी,
अभी नहीं हैं|
ऐसी खुशियां
जो हमेशा हमारा साथ दें
कभी नहीं थी,
कहीं नहीं हैं|
क्कांयर की कोख से
फूटा बाल सूर्य,
जब पूरब की गोद में
पाँव फैलाने लगा,
तो मेरी बगीची का
पत्ता-पत्ता जगमगाने लगा,
मैं उगते सूर्य को नमस्कार करूं
या उसके ताप से भाप बनी,
ओस की बूंदों को ढूंढूं?
सूर्य एक सत्य है
जिसे झुठलाया नहीं जा सकता
मगर ओस भी तो एक सच्चाई है
यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है
क्यों न मैं क्षण क्षण को जिऊं?
कण-कण में बिखरे सौन्दर्य को पिऊं?
सूर्य तो फिर भी उगेगा,
धूप तो फिर भी खिलेगी,
लेकिन मेरी बगीची की
हरी-हरी दूब पर,
ओस की बूंद
हर मौसम में नहीं मिलेगी।
3. खून क्यों सफेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया.
बंट गये शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार दड़ गई.
दूध में दरार पड़ गई.
खेतों में बारूदी गंध,
टूट गये नानक के छंद
सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है.
वसंत से बहार झड़ गई
दूध में दरार पड़ गई.
अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं ग़ैर,
ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता.
बात बनाएं, बिगड़ गई.
दूध में दरार पड़ गई.
4. क्षमा करो बापू! तुम हमको,
बचन भंग के हम अपराधी,
राजघाट को किया अपावन,
मंज़िल भूले, यात्रा आधी।
जयप्रकाश जी! रखो भरोसा,
टूटे सपनों को जोड़ेंगे।
चिताभस्म की चिंगारी से,
अन्धकार के गढ़ तोड़ेंगे।
5. कौरव कौन
कौन पांडव,
टेढ़ा सवाल है|
दोनों ओर शकुनि
का फैला
कूटजाल है|
धर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है|
हर पंचायत में
पांचाली
अपमानित है|
बिना कृष्ण के
आज
महाभारत होना है,
कोई राजा बने,
रंक को तो रोना है|
6. ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूं?
तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।
मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है।
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