उगता भारत ब्यूरो
आखिरकार चुनाव आयोग ने राज्यों की स्थितियों का अवलोकन करने के बाद पांच राज्यों में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर दी। साथ ही आचार-संहिता लागू हो गई है। कोरोना संक्रमण की तेज रफ्तार के चलते देश में ऊहापोह की स्थिति थी कि क्या चुनाव टाले जायेंगे या नियत समय में ही होंगे। आखिरकार आयोग द्वारा लोकतांत्रिक प्रक्रिया को यथावत् रखने का निर्णय लिया गया। सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था की चुनौती के चलते सात चरणों में मतदान होगा तो मणिपुर में दो चरणों में। वहीं पंजाब, उत्तराखंड व गोवा में एक ही चरण में मतदान होगा। चुनाव दस फरवरी से लेकर सात मार्च तक विभिन्न चरणों में होंगे और दस मार्च को चुनाव परिणामों की घोषणा होगी। अच्छी बात यह है कि चुनाव प्रचार अभियान से संक्रमण के खतरे को देखते हुए 15 जनवरी तक चुनावी रैलियाें, नुक्कड़ सभाओं, पैदल यात्राओं तथा रोड शो आदि पर रोक लगी है। आयोग बाद में स्थिति का विश्लेषण करके तय करेगा कि आगे सार्वजनिक चुनावी कार्यक्रमों को अनुमति देनी है या नहीं। वैसे कोरोना संक्रमण की मौजूदा रफ्तार को देखते हुए नहीं लगता कि जनसभाओं की अनुमति आगे मिल पायेगी। ऐसे में परंपरागत चुनाव प्रचार माध्यमों के बजाय राजनीतिक दलों को डिजिटल माध्यमों का ही सहारा लेना होगा। कमोबेश जनस्वास्थ्य के मद्देनजर ऐसा होना जरूरी भी है। विगत के अनुभवों के मद्देनजर हमें सकारात्मक पहल करनी भी चाहिए।
निस्संदेह, ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में जहां राजनीतिक दलों से जिम्मेदार भूमिका की दरकार है, वहीं नागरिकों को भी अपने स्तर पर कोरोना से बचाव के नियमों का पालन करते हुए भीड़भाड़ वाले कार्यक्रमों से सुरक्षित दूरी बनानी होगी। कहने की आवश्यकता नहीं है कि वैक्सीन लगाने व कोरोना प्रोटोकॉल के पालन से हम संक्रमण को फैलने से रोक सकते हैं। राजनीतिक दलों को डिजिटल माध्यमों से प्रचार करके देश में चुनाव प्रक्रिया को उन्नत बनाने व समय के अनुसार ढलने का प्रयास करना चाहिए। जब देश तेजी से डिजिटलीकरण की ओर बढ़ रहा है तो राजनीतिक दलों को संकट के दौर में नई पहल करनी चाहिए। हो सकता है कि कालांतर यह व्यवस्था न्यू नॉर्मल बन जाये। हालांकि, उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री की ताबड़-तोड़ रैलियां करवा चुकी भाजपा के लिये यह बढ़त की स्थिति है। उसके पास मजबूत आईटी नेटवर्क है और सोशल मीडिया पर उसकी खासी दखल है। उसने ब्लॉक स्तर तक आईटी सेल बनाये हैं। लेकिन छोटे दलों को डिजिटल माध्यम से बढ़त लेने में दिक्कत आएगी, एक तो उनकी तैयारी नहीं है दूसरे उनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। पिछले साल भी कुछ राज्यों में डिजिटल अभियान की शुरुआत की गई थी, लेकिन इस दिशा में सभी दलों की भागीदारी जरूरी है। यह देश के लिये अच्छा होगा कि चुनाव प्रचार की डिजिटल संस्कृति विकसित हो। इससे जहां संसाधनों, समय व धन की बचत होगी, वहीं कोरोना संक्रमण पर भी रोक लग सकेगी। साथ ही पुलिस-प्रशासन की रैली-रोड शो प्रबंधन में फजीहत भी नहीं होगी।
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