“हिंदुस्तान ही खालिस्तान है” और “सारा खालिस्तान ही हिंदुस्तान है”
डॉ. इंद्रेश कुमार
पंजाब के Nangal (नंगल) और लुधियाना ‘ में कुछ कार्यक्रम थे । प्रश्नोत्तर सत्र के दौरान वहां आमंत्रित मुख्य अतिथि से खालिस्तान समर्थक एक बंधु ने तीख़ा प्रश्न करते हुए कहा- खालिस्तान की मांग पर आप (हिन्दुओं) को क्या कहना है?
मुख्य अतिथि ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया :-
जब देश को और धर्म को आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत शीश देने वाले वीरों की आवश्यकता थी तब *”पिता दशमेश”* गुरु गोविंद सिंहजी महाराज ने *”ख़ालसा पंथ”* का सृजन करते हुए *”संत-सिपाही”* परंपरा की नींव डाली थी, जिसमें हर जाति, वर्ण और क्षेत्र के लोग शामिल हुए ताकि धर्म बच सके।
यानि खालसा पंथ लोगों को समाज को और राष्ट्र को जोड़ने के लिए आया था लेकिन दुर्भाग्य से कुछ लोगों ने इस पवित्र शब्द का दुरूपयोग कर इस शब्द का प्रयोग भारत को तोड़ने के लिए और लोगों को बांटने के लिए उपयोग मे लिया और नाम दिया *”खालिस्तान”*।
तो ऐसा करने वालों को ये जरूर सोचना चाहिए कि वो *”दशम पातशाह”* की शिक्षाओं का अनुकरण कर रहे हैं या उसके विपरीत जा रहे हैं? उन्हें ये जरूर सोचना चाहिए कि उनके आचरण से पवित्र *”खालसा”* शब्द शोभित हो रहा है अथवा इस पवित्र शब्द दुरूपयोग हो रहा है?
इसके बाद उन्होंने प्रश्न करने वाले से कहा-
*सतगुरु “नानक देव जी”* की प्राकट्य स्थली *’तलवंडी साहिब’* वर्तमान पाकिस्तान में है, चतुर्थ पातशाही *”गुरु रामदास जी”* की प्राकट्य स्थली चूना मण्डी, लाहौर में है और वह भी दुर्भाग्य से आज पाकिस्तान में आता है। दशम पातशाह *”गुरु गोविंद सिंह जी”* का प्रकाश बिहार के पटना साहिब में हुआ था तो जहाँ तक खालिस्तान का ही प्रश्न है तो मुझे आपसे इतना पूछना है कि जो खालिस्तान आप मांग रहे हो उसमें हमारे गुरुओं की ये प्राकट्य स्थली शामिल होनी चाहिए कि नहीं होनी चाहिए?
प्रश्न पूछने वाला मौन था तो इन्होंने आगे कहा-
*”करतारपुर साहिब”* जहाँ गुरु नानक देव जी ज्योति-जोत में समाये थे वो आज पाकिस्तान में हैं, पंचम *”गुरु अर्जुन देव”* जी ने ‘लाहौर’ में शरीर छोड़ा था और दशम पातशाह *”गुरु गोविंद सिंह जी”* महाराज ‘नांदेड़ साहिब’, महाराष्ट्र में ज्योति-ज्योत में समाये थे। मुझे आपसे इतना ही पूछना है कि जो खालिस्तान आप मांग रहे हो उसमें हमारे गुरुओं के ज्योति-ज्योत में समाने की ये स्थली होनी चाहिए कि नहीं होनी चाहिए?
प्रश्नकर्ता मौन था तो उन्होंने आगे कहा-
*”दशमेश पिता”* ने जब *”खालसा”* सजाया था तो शीश देने जो पंच प्यारे आगे आये थे उनमें से एक *’भाई दयाराम’* थे जो लाहौर से थे, दूसरे मेरठ के *’भाई धरम सिंह जी’* थे, तीसरे जगन्नाथपुरी, उड़ीसा के *’हिम्मत सिंह जी’* थे, चौथे द्वारका, गुजरात के युवक *’मोहकम चन्द जी’* थे और पांचवें कर्नाटक के बीदर से भाई *’साहिब चन्द सिंह’* जी थे तो मेरा प्रश्न ये है कि उस खालिस्तान के अंदर इन *पंच प्यारों* की जन्म-स्थली होनी चाहिए कि नहीं होनी चाहिए?
प्रश्न पूछने वाला मौन था तो उन्होंने आगे कहा-
सिख धर्म के अंदर 5 तख्त बड़ी महत्ता रखते हैं, इनमें से एक तख्त *श्री पटना साहिब* में है जो बिहार की राजधानी पटना शहर में स्थित है। 1666 में *”गुरु गोबिंद सिंह जी”* महाराज का यहाँ प्रकाश हुआ था और आनंदपुर साहिब में जाने से पहले उन्होंने यहाँ अपना बचपन यहाँ बिताया था और लीलाएं की थी।
इसके अलावा पटना में गुरु नानक देव जी और गुरु तेग बहादुर जी के भी पवित्र चरण पड़े थे।
एक और तख़्त *श्री हजूर साहिब* महाराष्ट्र राज्य के नांदेड़ में है। तो मेरा प्रश्न ये है कि ये सब पवित्र स्थल आपके खालिस्तान में होने चाहिए कि नहीं होने चाहिए?
इतना कहने के बाद भी वो रुके नहीं और आगे कहा-
महाराजा *रणजीत सिंह* ने जिस विशाल राज्य की स्थापना की थी उसकी राजधानी लाहौर थी । उनके *महान सेनापति हरिसिंह नलवा* की जन्म स्थली और शरीर त्याग स्थली दोनों ही आज के पाकिस्तान में है, इसके अलावा अनगिनत ऐसे संत जिनका बाणी *पवित्र श्री गुरुग्रंथ साहिब* में है वो सब भारत के अलग-अलग स्थानों में जन्में थे तो मेरा प्रश्न है कि आपके इस खालिस्तान में ये सब जगहें आनी चाहिए कि नहीं आनी चाहिए?
प्रश्नकर्ता जब तिलमिलाकर रह जाने के सिवा कुछ कह न सका तो उन्होंने उससे कहा-
इन सारे प्रश्नों के उत्तर तभी मिल सकते हैं और ये सारे ही स्थल तभी खालिस्तान के अंदर, आ सकते हैं जब आप और मैं ये मानें कि सारा *”हिंदुस्तान ही खालिस्तान है”* और *”सारा खालिस्तान ही हिंदुस्तान है”*।
मान लो अगर आपने खालिस्तान ले भी लिया तो क्या इन जगहों पर वीजा और पासपोर्ट लेकर आओगे जो आज तुम्हारे अपने है? आप तो बड़े छोटे मन के हो जो इतने से खालिस्तान मांग कर खुश हो रहे हो और मैं तो आपको *खालिस्तान में पूरा अखंड हिंदुस्तान दे रहा हूँ ।* है हिम्मत मेरे साथ ये आवाज़ उठाने की?
वो कसमसाकर रह गया और पूरी सभा-स्थली तालियों से गूँज उठी । सरस्वती को अपने कंठ में धारण करने वाले ये प्रमुख वक्ता थे ।
*संघ प्रचारक ” इन्द्रेश कुमारजी “* जो संभवत: इस्लाम के चौदह सौ सालों के इतिहास में पहले गैर-मुस्लिम हैं जो उनकी आँखों में आँखे डालकर सच कहने का साहस रखते हैं । वो जब जहर से भरे नव-बौद्ध और अनूसूचित जाति और जनजाति समाज के बीच बोलते है तो उनके भाषण के बाद उसके नाम के जयकारे लगने लगते हैं, वो जब बौद्ध-जैन और सिख समाज से संवाद करते है तो उन्हें सुनने वाले को लगता ही नहीं कि वो हिंदुत्व की मूल धारा से ज़रा भी अलग हैं ।
किसी को गाली दिए बिना,
उकसाए बिना,
चिढ़ाए बिना,
अपमानित किये बिना
सत्य कहने का हौसला
और हुनर मुझे इसी
पुण्यात्मा से मिला है ।
🇮🇳 जय हिंद
*वन्दे मातरम्*🚩
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