ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया द्वारा डॉ अहिल्या मिश्र की आत्मकथात्मक ‘दरकती दीवारों से झांकती ज़िंदगी’ का लोकार्पण

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नई दिल्ली। (विशेष संवाददाता ) ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के तत्वावधान में आयोजित पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में डॉ अहिल्या मिश्र की नवीनतम कृति ‘दरकती दीवारों से झांकती ज़िंदगी’ आत्मकथात्मक उपन्यास का लोकार्पण 10 जनवरी को सम्पन्न हुआ ।
ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के महासचिव डॉ शिवशंकर अवस्थी ने कहा कि संस्था के परामर्शदाता पद्मश्री श्याम सिंह शशि के सान्निध्य एवं उपाध्यक्ष डॉ सरोजिनी प्रीतम की अध्यक्षता में कार्यक्रम का आयोजन किया गया । शुभ्रा महंतो द्वारा सरस्वती वंदना गायन के साथ कार्यक्रम शुरू हुआ । तत्पश्चात् पुस्तक का लोकार्पण किया गया और उसके बाद पुस्तक पर चर्चा की गई जिसमें प्रमुख वक्ता एवं विशेष वक्ता के रूप में आमंत्रित राष्ट्रीय स्तर के लब्धप्रतिष्ठित विद्वानों ने पुस्तक की समीक्षा की और अपने व्यक्त किए ।
प्रमुख वक्ता के रूप में डॉ हरीश अरोड़ा, साहित्यकार पूर्व निदेशक, दूरशिक्षा निदेशालय, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा एवं प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, पी जी डी ए वी कॉलेज (सांध्य), दिल्ली विश्वविद्यालय ने कहा कि आत्मकथा अपने जीवन से जुड़ी होती है । दरकती दीवारों के पीछे से संवेदनात्मक सत्य दिखाई पड़ता है और यह सत्य तथा लेखिका के जीवन से जुड़ी अलग अलग कथाएँ एक साथ जुड़कर अहिल्या मिश्रा की कहानी बेबाक़ी से लोगों के सामने लाती है। सारे प्रसंग उनके जीवन को दिखानेवाला है। पहले बचपन की दृढ़ अहिल्या आती है फिर अहिल्या स्त्री रूप में आती है जो बचपन की अहिल्या नहीं है लेकिन पुनः यह दूसरी अहिल्या अपने व्यक्तित्व को बचपन की अहिल्या से जोड़ती है । यदि उस समय स्त्री विमर्श के नारे होते तो अहिल्या सबसे ऊपर आतीं । उन्होंने भावाभिव्यक्ति की बात करते हुआ कहा कि लेखिका की भाषा उनके मन और परिवेश की भाषा है जो उन्होंने ग्रामीण जीवन से सीखा है और यह उपन्यास की विशेषता है । हर व्यक्ति चाहेगा कि उनके जैसा बने ।

मुख्य वक्ता प्रो (डॉ) मुकेश अग्रवाल , पूर्व प्राचार्य पी जी डी वी कॉलेज , दिल्ली विश्वविद्यालय एवं लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार व आलोचक ने लेखिका को बधाई एवं शुभकामनाएँ देते हुए अपने वक्तव्य में कहा कि यह एक उपन्यासात्मक आत्मकथा है जो आत्मतोष के साथ साथ दूसरों को भी लाभान्वित करने वाली है । यह मात्र अहिल्या जी की कहानी नहीं बल्कि हर उस व्यक्ति की कहानी है जो संघर्ष के माध्यम से समाजिक विसंगतियों से लड़ते हुए आगे बढ़ना चाहता है । इसमें मात्र बिहार की नारी का नहीं सम्पूर्ण भारत की नारी का चित्रण किया गया है तथा भारतीय समाज और संस्कृति दोनों का चित्रण है।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, हिंदी-विभाग के सहायक प्रोफेसर और साहित्यकार डाॅ. अशोक कुमार ज्योति ने उपन्यास के शब्द सौन्दर्य की व्याख्या करते हुए और मिथिला के आंचलिक शब्दों का उल्लेख करते हुए कहा कि उपन्यास के एक-एक शब्द में मिथिला की संस्कृति बोलती है । उन्होंने लेखिका के व्यक्तित्व को परिभाषित करते हुए कहा कि जो आसमान छूना चाहते हैं वो पलटकर कभी नहीं देखते कि जीवन पीछे कितना छूट गया है। अहल्या की तरह चुनौती देना लेखिका के व्यक्तित्व की विशेषता बनती है।
कवयित्री, लेखिका एवं कर्नाटक चैप्टर के संयोजक डॉ उषा रानी राव ने पुस्तक के सम्बंध में उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि मैं इसे कोरी संस्मरण या आत्मकथा के रूप में नहीं देखकर इसे स्त्री विमर्ष का आख्यान और स्त्री चिंतन का दस्तावेज मानती हूँ जिसमें पूरी स्त्री बिरादरी का संघर्ष है। लेखिका वर्तमान की खिड़की से अतीत को निहारते हुए अतीत का नवीनीकरण भी करती हैं पर इसमें कहीं कुंठा और संत्रास नज़र नहीं आता। यह लेखिका के दृढ़ व्यक्तित्व की विशेषता है ।
हैदराबाद के साहित्यकार व माईक्रोसॉफ़्ट (प्रोग्राम मैनेजमेंट) के निदेशक श्री प्रवीण प्रणव ने आत्मकथा के तीनों खंडों का संक्षेप में परिचय देते हुए इसकी झलकियाँ प्रस्तुत की और कहा कि पहला खंड आत्मकथा का है, दूसरा खंड उपन्यास की ओर मुड़ता है तथा तीसरा खंड दुखदायी है। उन्होंने रामचरितमानस की पंक्तियों को संदर्भित करते हुए उपन्यास की घटनाओं का उल्लेख किया और कहा कि कहानी का अंत अभी बाँकी है जिसे भविष्य में लिखी जानी चाहिय।
विशेष वक्ता नरेंद्र परिहार (ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया नागपुर चैप्टर के संयोजक व साहित्यकार) ने पुस्तक के विभिन्न पहलुओं की समीक्षा करते हुए बताया कि पुस्तक में दबंग चरित्र लेखिका के हैदराबाद आने के बाद शुरू होता है और अभी और भी बहुत कुछ कहना बाक़ी है जो भविष्य में लिखी जानी चाहिए ।
गोवा चैप्टर के संयोजक डॉ किरण पोपकर (सहायक प्राध्यापक, शासकीय महाविद्यालय) ने विभिन्न शैलियों पर बातें की और कहा कि उपन्यास की उपलब्धि है कि कहीं से भी पढ़ना शुरू करके इसे समझा जा सकता है। ऊबड़ खाबड़ में भी एक समानता नज़र आती है।
जबलपुर चैप्टर के संयोजक व साहित्यकार डॉ उषा दुबे ने संदेश दिया कि यह कृति पूर्णत: आत्मकथात्मक उपन्यास है जिसकी विशेषता इसमें अभिव्यक्ति की सादगी, जीवन के प्रत्येक पलों में जिया गया अनुभवों का खारापन, सार्वजनिकता और उत्तर देने की ताकत है।
अध्यक्षीय टिप्पणी में डॉ सरोजिनी प्रीतम ने डॉ अहिल्या मिश्र के साथ बिताए पुराने क्षणों को याद करते हुए शुभकामना संदेश दीं और कहा कि पुस्तक पढ़कर लगता है कि उँगली पकड़ कर हम साथ चल रहे हैं। सुंदर और बेबाक़ वर्णन में हर स्त्री अपना चेहरा देख सकती है ।
शुभेक्षा संदेश देते हुए साहित्यकार व नागरी लिपि परिषद के संचालक डॉ हरिपाल सिंह ने कहा कि रचनाकार सम्पूर्ण देश समाज और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है जो अहिल्या जी ने किया है ।
यह उपन्यास एक भारतीय नारी की आत्मकथा है, इसके लिए साधुवाद ।
हैदराबाद के साहित्यकार प्रो रविरंजन (पूर्व विभागाध्यक्ष हैदराबाद विश्वविद्यालय) ने भी लेखिका को बधाई दिया और इस आत्मकथा को लेखिका की एक बड़ी उपलब्धि माना। उन्होंने उपन्यास पढ़ने की इच्छा भी ज़ाहिर की।
कार्यक्रम में ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के विभिन्न चैप्टरों से साहित्यकार एवं देश भर से साहित्यकार गण श्रुति सिंहा, संदीप शर्मा, डॉ मधू भटनागर, डॉ, मंजू शर्मा, नंदगिरी देवनायकाम, सी जयश्री, डॉ, रमा द्विवेदी, नीलम कुलश्रेष्ठ, डी पी मिश्रा, प्रो ऋशभदेव शर्मा, उषा शर्मा, शशि गोयल, कोयल विश्वास, तृप्ति मिश्रा, विनीता शर्मा , टी बसंता, डॉ शीला झुनझुनवाला, अवधेश कुमार सिंहा, डॉ गोपाल शर्मा, डॉ ममता सिंह, डॉ मधु भारद्वाज, जी परमेश्वर, दीपा कृष्णदीप, कंचन बोरकर, साधना झा, स्मृति शुक्ला, के किशन, चंदन कुमारी, अक्षय कुमार, मधु भटनागर, भावना पुरोहित, अतुल कुमार, वी एन देवनपल्ली, साधना झा, डॉ,बी एल अच्छा, सुनीता सिंह, सुदेश भाटिया, आदि साहित्य प्रेमियों ने भाग लिया और सबने उपन्यास के लिए लेखिका को अनेकानेक बधाईयाँ दी। डॉ आशा मिश्रा ‘मुक्ता’ के आत्मीय आभार प्रदर्शन के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

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