मिट्टी से जुड़ा हूँ तो गीत मिट्टी का गाऊंगा.
जरुरत पड़ी तो खेतों में बन्दूक भी उगाऊंगा.
मुझे होगी जरुरत ना तिलक ना चन्दन की,
धूल धरती की जब अपने माथे पर लगाऊंगा.
अदालत में क़ुरान-ए-पाक और गीता मानिन्द,
मिट्टी हाथ में लेकर सौगन्ध मिट्टी की खाऊंगा.
फसलों का मैं राजा महलों का ना सही,
मलमल नहीं मिट्टी ही ओढूंगा-बिछाऊंगा.
दिवाली पर बाबूजी मुझसे लेते हैं ये वचन,
कि हर साल सजावट में दीया मिट्टी का जलाऊंगा.
कि भरके पेट देश का मैं भूखा भी सो जाऊ तो,
यही रस्म हो चले तो भी ये रस्म निभाऊंगा.
मुझे मिट्टी में मिलने में मिलेगी मौत मनचाही,
”राज” हिस्सा था मैं खेतों का उसी में लौट आऊंगा.
-मुकेश कुमार ”राज”