जीत से बढ़ती जिम्मेदारी
डा. शशि तिवारी
विश्वास आदमी को बांधता है लेकिन विश्वास से उपजा विश्वास जब टूटता है तो आदमी न केवल नास्तिक हो जाता है बल्कि अराजक भी बन जाता है। सफलता के लिए कड़ी मेहनत के साथ दृढ़ विश्वास का होना भी परम आवश्यक हैं। जनता की भलाई एवं विकास के लिए जनता द्वारा जनता के लिए जनता के प्रतिनिधियों के कन्धे पर उनके विश्वास को कायम रखने की अहम जिम्मेदारी होती है। इतिहास गवाह है कि जब-जब जिम्मेदारों ने गैर जिम्मेदाराना कार्य किया है, तब-तब उस व्यक्ति एवं शासक का पतन हुआ है फिर बात चाहे धर्म की हो या राजनीति की हो।
हाल ही में हुए दो राज्यों महाराष्ट्र एवं हरियाणा के विधानसभा चुनाव ने तमाम अटकलों एवं धुंध के कोहरे को साफ करते हुए मोदी को विजयपथ को न केवल आगे बढाया बल्कि जीत की माला पहना अपना जनता पर अटूट विश्वास को भी व्यक्त किया। इस चुनाव में तमाम उन राजनीतिक पण्डों को धक्का लगा जो मोदी के जादू को उतरता हुआ बता रहे थे। इस चुनाव ने कई राजनीतिक पार्टियों को न केवल आइना दिखाया बल्कि एक साफ संदेश भी दे दिया कि अब वंशवाद, जाति, धर्म, सम्प्रदाय, अंगडे-पिछडे, दलित नफरत की राजनीति करने वालों के लिए अब कोई स्थान नहीं है। दोनों राज्यों के परिणाम अब अन्य राज्यों में होने वाले चुनाव एवं राजनीति को भी प्रभावित करेंगे।
महाराष्ट्र में पहली बार भाजपा ने अपने दम पर चुनाव लडने का सबसे बडा जुआं खेला था। कर्म और तकदीर ने बेजोड साथ दिया नतीजा सामने है, वही शिवसेना, एन. सी. पी. एम. एन. एस. को भी अब देर सबेर अपने अस्तित्व के बारे में सोचने को भी मजबूर कर दिया। हरियाणा में 10 वर्षों से काबिज कांग्रेस पार्टी की बखिया उधेड़ते हुए उसे तीसरे पायदान पर पहुंचा दिया। भाजपा पहली बार हरियाणा में अपनी सरकार बना रही है। इसी तरह पिछले 25 वर्षों में भाजपा ही वह पार्टी है जिसने महाराष्ट्र में 100 से ज्यादा का आंकड़ा पार किया है।
पिछले लोकसभा, विधानसभा एवं वर्तमान में दोनों राज्यों के चुनाव में एक बात तो सिद्ध कर दी कि अब जनता जातिवाद, वंशवाद, क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद से ऊपर उठ विकास के लिए इन सभी को एक सिरे से नकारा।
अब जनता ने मोदी पर विश्वास ही किया है तब अब उनकी जिम्मेदारी भी और बढ़ गई हैं, चुनाव में किये गये वादों को पूरा करने एवं नया दृष्टिकोण के साथ ‘‘सबका का विकास सबके साथ’’ लेकर करना ही होगा। हालांकि अभी मोदी के कार्य प्रदर्शन का लेखा जोखा हो, डीजल-पेट्रोल के गिरते भावों की हो, सीमा पर रक्षा की हो, कडा जवाब देने की हो, एवं सांसदों द्वारा अपने क्षेत्र में पांच गांवों को मॉडल बनाने की हो। एक अच्छी योजना की शुरूआत हैं।
यहां सबसे महत्वपूर्ण है कि मोदी के कुनबे के मंत्री एवं भाजपा शासित राज्यों के मंत्री कितनी शिद्दत से एवं ईमानदारी से कार्यों को, विकास को अंजाम देते है या पूर्ववर्ती सरकार की ही तरह अलाल बन भ्रष्टाचार एवं अपनी सम्पत्ति बढ़ाने में ही चकरधिन्नी रहते है। अभी हाल ही में मोदी के एक मंत्री की सम्पत्ति के बारे में मीडिया में छपी खबर के अनुसार 3 माह में उनकी सम्पत्ति दो दुनी हो गई। यह निःसंदेह जनता के बीच एक अच्छा संदेश नहीं है। जरूर दाल में कुछ काला है। जिस देश में गरीबों की 75 प्रतिशत से संख्या अधिक से उस देश के जनप्रतिनिधि करोड़पति, अरबपति हो, इतना ही नहीं उनकी आय दिन दूनी रात चौगनी से भी ज्यादा हो। इतना ही नहीं इन जनप्रतिनिधियों को मिलने वाले सभी सरकारी सुख-सुविधाओं का भी भरपूर उपयोग करने में, सब्सिडी लेन में भी कोई गुरेज न हो? क्या यह आम जनता की गाढ़ी कमाई की बर्बादी नहीं हैं? गरीबों के पैसें पर ठाठ कहां तक उचित हैं? क्या यही समाजसेवा है? जब पैसा/पगार लेते है तो जवाबदेही एवं पारदर्शिता से पर्दा क्यों? आम जनता को पूरा अधिकार है कि वह नेताओं की हर गतिविधि पर नजर रखे एवं अनुचित लाभ लेने वालों की भी अच्छी तार से खबर ले जनता में इसको ले जन-जागरूकता का भी अभियान समय-समय पर चलायें?
हालांकि मोदी ने पारदर्शिता एवं जवाबदेही पर जोर तो दे रहे है लेकिन देखना यह है कि उनके अपने मंत्री इस पर कितना अमल करते है ओर नफरमानों के विरूद्ध मोदी क्या कार्यवाही करते है। इसी पर उनकी कथनी एवं करनी की अग्नि परीक्षा होगी। देखिये अब आगे-आगे होता हेै क्या?
(लेखिका सूचना मंत्र पत्रिका की संपादक है)