आई एस : मानवता के हत्यारे
तनवीर जाफरी
सीरिया व इराक में सक्रिय आतंकवादी जो स्वयं को इस्लामिक स्टेट्स के सिपाही बताते हैं उनका मानवता के विरुद्ध कहर जारी है। यह संगठन अपनी शक्ति तथा क्रूरता के बल पर सीरिया व इराक के अतिरिक्त तुर्की व अन्य कई अरब देशों में अपना विस्तार करना चाह रहा है। इनकी कल्पनाओं के मानचित्र में अफगानिस्तान,पाकिस्तान और आगे चलकर भारत भी शामिल है। इन्होंने अपनी शुरुआती पहचान तो सुन्नी लड़ाकों के रूप में ज़ाहिर की थी और सर्वप्रथम इराक व सीरिया के शिया समुदाय के लोगों को ही निशाना बनाना शुरु किया था। परंतु इसने बाद में अपने निशाने पर इराकी कुर्द तथा ईसाई समुदाय के लोगों को भी ले लिया। इतना ही नहीं इन्होंने अपने ज़ुल्म और आतंक का निशाना उन सैकड़ों मस्जिदों व दरगाहों तथा उन तमाम ऐतिहासिक धर्म स्थलों को भी बनाया जो सुन्नी समुदाय के विश्वास तथा आस्था का केंद्र रही हैं। इनमें कई रौज़े व मज़ारें तो पैगंबरों व सहाबियों (हज़रत मोहम्मद के साथियों)की भी थीं। और तो और इन्होंने अपने दूरगामी लक्ष्य में सऊदी अरब में हज़रत मोहम्मद के रौज़े को भी शामिल कर रखा है। चूंकि सऊदी अरब की वहाबी हुकूमत भी दरगाहों,मज़ारों आदि पर जाने,वहां सजदा करने या उन स्थानों पर प्रार्थना आदि करने की सख्त विरोधी है और आईएसआईएस भी वैसे ही विचार रखती है। इसलिए वैचारिक दृष्टि से यही माना जा रहा है कि आईएस के लड़ाके वैचारिक रूप से सऊदी अरब की वहाबी हुकूमत का ही प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
परंतु ऐसा प्रतीत होता हैकि आईएस की बढ़ती कू्ररता व दरिंदगी ने सऊदी शासकों के भी कान खड़े कर दिए हैं। वैचारिक रूप से आईएस भले ही सऊदी राजघराने के वहाबी विचारों पर ही क्यों न अमल कर रहा हो परंतु आतंक फैलाते हुए अपना विस्तार करने की आईएस की नीति के चलते अब शायद सऊदी अरब को अपनी सत्ता भी खतरे में नज़र आने लगी है। और यही वजह है कि गत् 11 सितंबर को जद्दा में अमेरिकी विदेशमंत्री जॉन कैरी के साथ कई अरब देशों के साथ बैठक के दौरान अरब के बादशाह अब्दुल्ला ने जौन कैरी को आईएस के विरुद्ध न केवल हमलों में पूरा सहयोग देने व इसमें शामिल होने का वादा किया बल्कि इसके अतिरिक्त आईएस विरोधी कार्रवाईमें प्रत्येक संभव सहायता देने का भी वादा किया। अमेरिका द्वारा अपने नेतृत्व में बनाए गए आई एस विरोधी गठबंधन में जार्डन,बहरीन,कतर,सऊदी अरब तथा संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश शामिल है। इस गठबंधन द्वारा आई एस के विरुद्ध पिछले दिनों जो हवाई मोर्चा खोला गया उससे कम से कम दुनिया में शिया-सुन्नी संघर्ष के जो उमड़ते बादल आईएस की शुरुआती शिया विरोधी आतंक के चलते दिखाई दे रहे थे कम से कम वे ज़रूर छट चुके हैं। पिछले कुछ दिनों से अमेरिकी नेतृत्व में गठबंधन सेना आई एस के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए तुर्की के सीमा क्षेत्र के निकट कोबान में हवाई हमले कर रही है। हालांकि सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद द्वारा गत् वर्ष सीरियाई नागरिकों के विद्रोह को कुचलने के लिए उनके विरुद्ध कथित रूप से प्रयोग किए गए रासायनिक हथियारों के चलते अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा असद से कुर्सी छोडऩे की उम्मीद कर रहे हैं। अमेरिका असद को स्थानीय विद्रोह के मुद्दे पर उनका समर्थन किए जाने के पक्ष में भी नहीं है। फिर भी आईएस की बढ़ती शक्ति व उसके अत्याचारों को नियंत्रित करने के लिए राष्ट्रपति ओबामा ने अमेरिकी सेना को इस बात के लिए अधिकृत कर दिया है कि वह आईएसआई एस को नियंत्रित करे तथा इन्हें बरबाद करे।
वैसे आई एस के लड़ाकों की करतूतों का उनके नेताओं द्वारा जारी किए जाने वाले वीडियो तथा ऑडियो संदेशों से यह साफ ज़ाहिर होता है कि यह लोग वैचारिक रूप से मुसलमान तो क्या,शिया-सुन्नी अथवा वहाबी तो क्या इंसान ही नहीं प्रतीत होते। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि जानवर भी क्रूरता की वह हदें पार नहीं करते जो आई एस के राक्षसी प्रवृति के लड़ाकों द्वारा की जा रही हैं। उनके द्वारा दिल दहला देने वाली कई ऐसी वीडियो सार्वजनिक की जा चुकी हैं जिनमें उन्हें विदेशी बंधकों के बेरहमी से सिर कलम करते हुए दिखाया जा रहा है। इनके द्वारा सैकड़ों धर्मस्थलों को ध्वस्त किए जाने के दृश्य दुनिया पहले ही देख चुकी है। शिया-सुन्नी,ईसाई व कुर्द समुदाय के लोगों का सामूहिक नर संहार यह मानवता विरोधी लोग कई बार कर चुके हैं। इनके द्वारा महिलाओं को उनके हाथों में ज़ंजीरें बांधकर सरेआम बेचे जाने का दृश्य भी जगज़ाहिर हो चुका है। इनके हाथों से बच निकलने वाले कुछ व्यक्तियों का यह भी कहना है कि आईएस लड़ाके केवल महिलाओं के साथ ही जबरन सेक्स संबंध स्थापित नहीं करते बल्कि पुरुषों के साथ भी यह दुराचारी अप्राकृतिक यौन संबंध स्थापित करते हैं। ऐसे ही एक भुक्तभोगी व्यक्ति ने तो यह बताया कि अकेले उसके साथ ग्यारह आईएस लड़ाकों ने दुष्कर्म किया। पिछले दिनों आई एस के एक वरिष्ठ मौलवी का एक नया ऑडियो टेप सार्वजनिक हुआ है जिसमें उसने अपने लड़ाकों को निर्देश दिया है कि तुम अमेरिकी,यूरोपिय,फे्रंच,ऑस्ट्रेलिया,कनाडा अथवा किसी अन्य ऐसे देश के नागरिकों को जो उसके अनुसार अल्लाह पर विश्वास नहीं करते उन्हें जैसे चाहो मार डालो। और अपने ही देश के ऐसे लोगों को जो इन अल्लाह को न मानने वाली शक्तियों का साथ दे रहे हैं उन्हें जैसे चाहो मार डालो।
इनके हौसले,इनके नेताओं के दिशा निर्देश तथा अब तक इनके द्वारा लिखी गई ज़ुल्मो-सितम की दास्तान तथा भविष्य के इनके इरादों से यह साफ ज़ाहिर हो चुका है कि यह लोग इस्लाम तो क्या किसी भी धर्म की शिक्षाओं से कोई वास्ता नहीं रखते। इनका केवल एक ही मकसद है और वह है दुनिया में अब तक का सबसे बड़ा ज़ुल्म व बर्बरता का इतिहास लिखना तथा इसी रास्ते पर चलते हुए अपनी ताकत व पैसों के बल पर जहां तक हो सके अपनी सत्ता का विस्तार करना। बड़े आश्चर्य का विषय है कि दुनिया की तालिबानी विचाराधारा रखने वाली कुछ ताकतें ऐसे क्रूर लोगों का साथ देने के लिए उत्सुक दिखाई दे रही हैं। आईएस के समर्थन में खड़े होने वाले लोग इन राक्षसों में क्या कुछ सकारात्मक देख रहे हें? या वे उनसे क्या उम्मीद लगाए बैठे हैं इसके विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता। पिछले दिनों तो सोशल मीडिया पर एक चित्र वायरल हुआ है जिसे ड्रोन द्वारा लिया गया चित्र बताया जा रहा है। इस चित्र में आईएस के एक लड़ाके को गधे के साथ कुकर्म करते देखा जा रहा है। यदि यह चित्र सही है तो इसी के आधार पर इन राक्षसों व दुष्कर्मियों के धर्म,इनकी शिक्षा,इनकी सोच और िफक्र तथा इनके इरादों का भलीभांति अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
मानवता के ऐसे अपराधियों के विरुद्ध हालांकि कई अरब देशों के साथ गठबंधन बनाकर अमेरिका ने इनसे मोर्चा लेने का इरादा किया है। परंतु साथ-साथ अमेरिका ने अपने आप्रेशन केवल हवाई हमलों तक ही सीमित रखने की बात भी की है। और आई एस को तबाह करने में तीन से चार वर्ष तक का समय लगने का अनुमान लगाया है। अब इन तीन-चार वर्षों में आईएस के राक्षसों का ज़ुल्म व कहर किन-किन लोगों पर टूटेगा खुदा बेहतर जाने। अमेरिका निश्चित रूप से इराक और अफगानिस्तान में गत् वर्षों में किए गए अपने सीधे सैन्य हस्तक्षेप के प्रयोगों से सबक लेते हुए किसी प्रकार के ज़मीनी संघर्ष में नहीं पडऩा चाहता। परंतु यह भी तय है कि बिना ज़मीनी संघर्ष के आईएस के लड़ाकों को पूरी तरह से नेस्तनाबूद कर पाना संभव भी नहीं है। इसलिए भले ही अमेरिका स्वयं अपने अमेरिकी सैनिकों को आईएस के विरुद्ध सीरिया व इराक की धरती पर उतारने से क्यों न कतरा रहा हो परंतु ईरान सहित इराक सीरिया व दूसरे आईएस विरोधी गठबंधन देशों जार्डन,बहरीन,सऊदी अरब,कतर व संयुक्त अरब अमीरात व आई एस के अगले निशाने के रूप में आने वाले तुर्की जैसे सभी देशों की थल सेना को चाहिए कि वे यथाशीघ आईएस के विरुद्ध ज़मीनी कार्रवाई के लिए एक मज़बूत सैन्य गठबंधन तैयार करें तथा अमेरिका के निर्देश व सहायता से आईएस के विरुद्ध निर्णायक लड़ाई लड़ें। आईएस के सर्वोच्च नेता अबु बकर अल बगदादी से लेकर उस के अंतिम लड़ाके तक का अस्तित्व इस्लाम के ही नहीं बल्कि मानवता के लिए भी बहुत बड़ा खतरा बन सकता है।