‘राष्ट्रनीति’ का उद्देश्य यही है ……
कविता — 11
‘राष्ट्रनीति’ का उद्देश्य यही है ……
स्वाधीन हुए भारत को अब सात दशक हैं बीत गए।
भय, भूख ,भ्रष्टाचार मिटे ना कितने ही नेता चले गए।।
राजनीति अपना धर्म देश में निश्चित करने से चूक गई।
संप्रदायवाद और उग्रवाद ने अस्मत जनता की लूट लई।।
बढ़े कटुता- कलह देश में और क्लेश यहाँ पर फैल गया।
न जाने कौन, कहां, कब, कैसे सद्भाव हमारा लील गया ?
‘वसुधैव कुटुंबकम’ आदर्श हमारा किस पापी की भेंट चढ़ा ?
‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ कहना हमसे कौन कहां पर छीन गया ?
राज धर्म है यही देश में सब मिलकर अपना विकास करें।
देश की उन्नति कैसे होगी ? – इस पर चिंतन विशेष करें।।
राष्ट्र नीति का उद्देश्य यही है सबका सब मिल कल्याण करें।
अधिकारों से पहले कर्तव्य निभाएं और इसी का ध्यान करें।।
पहले आर्य राष्ट्रनीति को समझें तब समझोगे हिंदू दर्शन।
राम कृष्ण के जीवन से समझो कैसा हो राजा का दर्शन ।।
उग्रवाद के शुभचिंतक का है – बस, एकमात्र उपचार यही।
फांसी दे दो चौराहे पर – इससे कुछ भी कम स्वीकार नहीं।।
देश में आग लगाने वाले अब गद्दारों से भी कहना होगा।
यदि भारत में तुमको रहना है तो ‘वंदेमातरम’ कहना होगा।।
वही लोग हमारे भाई हैं जिनके हृदय से हृदय मिल जाएं।
जो दूध समझकर भारत को उसमें शक्कर सम घुल जाएं।।
उग्रवादी को ‘श्रीमन’ कहना, राजनीति का आचार नहीं।
‘राकेश’ धर्म से बढ़कर जग में और कोई आधार नहीं ।।
(यह कविता मेरी अपनी पुस्तक ‘मेरी इक्यावन कविताएं’- से ली गई है जो कि अभी हाल ही में साहित्यागार जयपुर से प्रकाशित हुई है। इसका मूल्य ₹250 है)
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत