गढ़ चित्तौड़ सिखाता है …….
कविता – 10
गढ़ चित्तौड़ सिखाता है …….
गढ़ चित्तौड़ सिखाता है पौरुष की भाषा हम सबको।
भारत के वैभव और शौर्य की भी गाथा हम सबको।।
यह बतलाता है कैसे मैंने तूफानों को झेला है ?
कैसे नीच पिशाचरों को अपने से दूर धकेला है ?
उत्थान पतन के कैसे अवसर आए मेरे जीवन में ?
सबके बीच अटल रहने की वीरों की भाषा हम सबको।
भारत के वैभव और शौर्य की भी गाथा हम सबको।।
बड़े गर्व से कहता है एक बप्पा रावल हुआ यहां।
ईरान तक जिसकी ख्याति के मिलते हैं प्रमाण यहाँ।।
नागभट्ट प्रथम से मिलकर जिसने था इतिहास रचा,
ईरानी राजकुमारी लाया ऐसी अनुपम गाथा हम सबको।
भारत के वैभव और शौर्य की भी गाथा हम सबको।।
कई रक्तिम युद्ध हैं मैंने देखे जिनका मैं प्रमाण खड़ा।
एक से एक भयंकर शत्रु यहां पर आकर खेत रहा ।।
न जाने कितने पीछे हटे , न जाने कितने भाग गए
कितने अकबर छलनी हुए गर्वीली भाषा हम सबको ,
भारत के वैभव और शौर्य की भी गाथा हम सबको।।
तीन हुए आख्यान यहां गौरव से भरा इतिहास रचा।
दिए बड़े बलिदान यहाँ पर शत्रु भी ना एक बचा ।।
हजारों पद्मिनी कूद पड़ी थीं जलती हुई चिताओं में,
मैंने उनका जौहर देखा – जौहरी भाषा हम सबको।
भारत के वैभव और शौर्य की भी गाथा हम सबको।।
भारत के वैभव और शौर्य की भी गाथा हम सबको।।
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खंडहर मत नहीं कहना मुझको यह मेरा अपमान हुआ।
अंगारे मुझमें धधक रहे हैं बतलाओ ! मैं कब शांत हुआ ?
इतिहास के चमकते हीरों को मैंने सच्चा सम्मान दिया,
गोरा बादल और जयमल फत्ता की भी गाथा हम सबको।
भारत के वैभव और शौर्य की भी गाथा हम सबको।।
मौर्यवंशी चित्रांगद ने तब मेरा नाम चित्रकूट रखा ।
कालांतर में चित्रकूट ही चित्तौड़ के रूप में जाना गया।।
सातवीं सदी से अब तक मैंने कितने ही बलिदान दिये
है धर्म की रक्षा कैसे होती ? – बतलाता हूं तुम सबको।
भारत के वैभव और शौर्य की भी गाथा हम सबको।।
परमारों के राजा मुंज ने कभी मुझ पर अधिकार किया।
फिर सोलंकी राजा जयसिंह ने छीन मुझे स्वीकार किया।।
सामंत सिंह मेवाड़ के राजा ने अपना साहस दिखलाया,
उत्थान पतन से कैसे निकला ? बतलाता हूं तुम सबको,
भारत के वैभव और शौर्य की भी गाथा हम सबको।।
रतन सिंह ने दिखलाया था अपना पराक्रम खिलजी को।
रानी पद्मिनी ने दिखलाया जौहर अपना खिलजी को।।
जीते हुए खिलजी ने मुझको मालदेव वको सौंप दिया,
हम्मीर ने मुझको कैसे पाया, उसे सुनाता तुम सबको,
भारत के वैभव और शौर्य की भी गाथा हम सबको।।
मैंने रानी करुणावती को – बड़े वनिकट से है देखा।
उसी ने अपना पुत्र उदयसिंह गूजरी पन्ना को सौंपा।।
राणा सांगा के पौरुष का सम्मान अभी तक करता हूं ,
उस महापुरुष के पौरुष की मैं छवि दिखाता तुम सबको,
भारत के वैभव और शौर्य की भी गाथा हम सबको।।
गूजरी पन्ना माता के बलिदान का मैं उल्लेख करूं ।
मैंने उस मां को देखा है मैं क्यों ना उस पर गर्व करूँ।।
करुणावती के जौहर को मेरा शत शत अभिनन्दन है,
राणा उदयसिंह पर क्या बीती, सब बतलाता तुम सबको,
भारत के वैभव और शौर्य की भी गाथा हम सबको।।
जयमल फत्ता की गाथा से मेरा बड़ा सम्मान बढ़ा।
दूसरा गढ़ ना जग में कोई जिसे इतना सम्मान मिला।।
राजतिलक मैंने कई देखे – चिताओं के श्रृंगार किये,
फूल कंवर के जौहर की भी कथा सुनाता तुम सबको,
भारत के वैभव और शौर्य की भी गाथा हम सबको।।
उदयसिंह महाराणा ने मुझे छोड़ उदयपुर बसा दिया।
पर निज हिय से कभी राणा ने मेरा ना अपमान किया ।।
उदयसिंह मेरा गौरव है ,जिसने बलिदानी इतिहास रचा,
राणा प्रताप के बचपन की हर कथा सुनाता तुम सबको ,
भारत के वैभव और शौर्य की भी गाथा हम सबको।।
राणा प्रताप के जीवन ने मुझको गौरव का बोध दिया।
‘राणा’ और ‘प्रताप’ किसे कहते मुझे ऐसा उद्घोष दिया।।
‘राकेश’ अतीत के वैभव से हर काल में शिक्षा लेते रहो
महाराणा है उत्कर्ष मेरा, यशगाथा सुनाता तुम सबको
भारत के वैभव और शौर्य की भी गाथा हम सबको।।
(यह कविता मेरी अपनी पुस्तक ‘मेरी इक्यावन कविताएं’- से ली गई है जो कि अभी हाल ही में साहित्यागार जयपुर से प्रकाशित हुई है। इसका मूल्य ₹250 है)
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत