कविता — 6
हमारे पूर्वज बड़े महान थे
हृदय देश में जिसकी देवगण उतारते हैं आरती।
गीत जिसके शूरपुत्रों के गाती रही है मां भारती।।
देवत्वाभिलाषी जहां सेवन करें सदा इष्ट कर्म का।
काममय यह जीव भी सेवन करे निज धर्म का।। 1 ।।
यथाकारी तथाकारी तथा भवति – यह सिद्धांत है।
जिसने लिया है जन्म भू पर होता उसका अंत है।।
कहे जाते देव सत्य हैं पर अनृत मनुष्य भी कहा।
पाता है मोक्ष को वही जिसने द्वन्द्व को हंसकर सहा।। 2।।
असमर्थ है यह लेखनी कैसे लिखे उनकी कथा।
जो हमको देकर गए सर्वोच्च संस्कृति सर्वथा।।
देश-धर्म हितार्थ जो जीवन को समझते त्याज्य थे।
स्वराज्य और स्वधर्म जिनके लिए सदा आराध्य थे।।3।।
वे आर्यजन निश्चय – हमारे पूर्वज बड़े महान थे।
पूजता था विश्व जिनको लाभ पाता ज्ञान से।।
अग्नि जिसका देवता है रहता सदा ही अग्रणी।
वायु, आदित्य ,अंगिरा के भूलोकवासी हैं ऋणी।।4 ।।
संसार परिवर्तनशील है नहीं एक सा रहता कभी।
जहां आज मातम छा रहा वहां उत्सव रहे हैं कभी।।
नहीं ढूंढ सकते आप उनको जो कभी सम्राट थे।
कहां गए अब राज उनके जो विशाल और विराट थे।।5।।
संपूर्ण भूगोल में हमारे काम और नाम का सम्मान था।
हमारे कहे हर वाक्य पर – जाता सभी का ध्यान था ।।
हमारे पूर्वजों के बोल ही तब रचते थे विधि-विधान को।
उस विधान के आधीन होकर था संसार पाता ज्ञान को ।।6।।
(यह कविता मेरी अपनी पुस्तक ‘मेरी इक्यावन कविताएं’- से ली गई है जो कि अभी हाल ही में साहित्यागार जयपुर से प्रकाशित हुई है। इसका मूल्य ₹250 है)
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत