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दिल्ली में अब क्या होगा?

मैंने चार−पांच दिन पहले लिखा था कि यदि दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग कोई सरकार खड़ी करवा सकें तो अगला राष्ट्रपति उन्हें ही बनवा दिया जाना चाहिए। इसका अर्थ क्या था? यही कि वे असंभव को संभव बनाने में जुटे हुए थे। अब दिल्ली विधानसभा के भंग होने के बाद जो चुनाव होंगे, उनमें से फिर त्रिशंकु विधानसभा निकलेगी, यह मानने का कोई कारण नहीं है।

यदि ‘आप’ की अधकचरी सरकार अभी तक चलती रहती तो इस बात की संभावना हो सकती थी कि चुनाव होने पर फिर त्रिशंकु विधानसभा बन जाती, क्योंकि साल भर के राज में वह भी अन्य भ्रष्ट पार्टियों की तरह जमकर पैसा इकट्ठा कर लेती और अपने कुछ न कुछ अच्छे कामों से अपने लिए कुछ ठोस वोट बैंक भी बना लेती लेकिन अपने 49 दिन के शासन में उसने अपने आप को अनाड़ी तो सिद्ध किया ही, अपने माथे पर सिद्धांतहीन होने की मुहर भी लगा ली। जिस पार्टी को भ्रष्ट कहते−कहते उसका गला सूखता रहता था, वह उसी के गले लग गई।

कांग्रेस के समर्थन पर टिकी ‘आप’ की सरकार अपनी नाटकीयता की स्मृति छोड़ गई। उसके नेताओं ने कई अच्छे निर्णय भी किए लेकिन वे सब उनके नाटकों के शोर में डूब गए। जाहिर है कि अब जो विधानसभा के चुनाव होंगे, उनमें उसकी शक्ति अगर आधी भी बच जाए तो गनीमत होगी। राष्ट्रीय चुनाव में सच पूछा जाए तो ‘आप’ को एक भी सीट नहीं मिली। पंजाब से जीती हुई सीटें उम्मीदवारों की अपनी हैं। राजमोहन गांधी और आनंदकुमार जैसे लोगों को हारना पड़ा। ‘आप’ के हारने का कारण मोदी थे। मोदी का बुखार अभी उतरा नहीं है, यह हरियाणा और महाराष्ट्र ने सिद्ध कर दिया है। दिल्ली उससे अछूती कैसे रह सकती है? दिल्ली की जनता अब मजबूत और स्थिर शासन चाहती है। वह उसे कौन दे सकता है? सिर्फ भाजपा! दिल्ली वाले भाजपा को क्यों सबसे ज्यादा पसंद करेंगे, क्योंकि केंद्र में भी भाजपा आ चुकी है।

कांग्रेस का स्थान दूसरा रहेगा कि तीसरा, कुछ कह नहीं सकते। यदि उसका केंद्रीय नेतृत्व वही रहा, जो अब तक रहा है और प्रांतीय नेतृत्व भी यदि जोरदार नहीं आता तो भी वह अपनी स्थिति में थोड़ा सुधार कर सकती है। उसे जो भी फायदा होगा, वह ‘आप’ को होने वाले घाटे से होगा। ‘आप’ और कांग्रेस, एक−दूसरे के वोट काटेंगे। उसका लाभ स्पष्ट रुप से भाजपा को मिलेगा।

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