जब हम रामचरितमानस पढ़ते हैं तो हमें पता चलता है कि सीतामैया ने लाल मुँह वाले बंदरों को यह आशीर्वाद दिया था कि जाओ! एक समय ऐसा आएगा, जब तुम लोगों को भारतवर्ष पर शासन करने का अवसर उपलब्ध होगा। मेरा मानना है कि हिंदुस्तान पर जितनी देर भी अंग्रेजों का शासन रहा , यह वही लाल मुंह के बंदर थे जिनको सीता जी ने उस समय हिंदुस्तान पर राज करने का आशीर्वाद दिया था।
अँग्रेज चाफेकर बन्धु,खुदीराम बोस, मदन लाल धींगरा, भगत सिंह जैसे अनेकों क्रांतिकारियों को फ़ांसी देते रहे। जलियांवाला बाग में लोगों को गोलियों से भूनते रहे और अन्य अनेकों स्थानों पर क्रांतिकारियों के विरुद्ध घोर अत्याचार करते रहे। पर गांधी और गांधी के चेलों ने उनकी ओर कभी नजर उठा कर देखना तक उचित नहीं माना। वह अपने क्रांतिकारियों के कार्यों को अनुचित, अवैधानिक और राजद्रोह के दृष्टिकोण से देखते रहे। जब देश आजाद हुआ तो गांधी के चेलों ने यह झूठ प्रचारित प्रसारित कर दिया कि ‘साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल, दे दी हमें आजादी बिना खडक बिना ढाल ।’
देश की जनता पर पता नहीं क्या जादू हुआ कि उसने कभी भी गांधीवादियों के इस झूठ से पर्दा उठाने का साहस नहीं किया और ना ही कभी यह पूछा कि तुमने इतना बड़ा झूठ देश से क्यों बोल दिया ? देश के लोगों ने यह भी नहीं पूछा कि जिस व्यक्ति ने देश के तीन टुकड़े कर दिए हैं , उसे राष्ट्रपिता किस दृष्टिकोण से कहा जा रहा है ? देश के टुकड़े करने वाला व्यक्ति राष्ट्रपिता नहीं राष्ट्र का हत्यारा हो सकता है।
सावरकर व सुभाष ने देश को ब्रिटिश शासन से मुक्त किया। गांधीवादियों ने इतिहास में लिखवाया कि सावरकर गाँधी का हत्यारा है। उन्होंने यह भी प्रसारित किया कि सावरकर जी ने एक बार नही कई बार अंग्रेजों से माफ़ी माँगी। सुभाष बोस ने भारत पर हमला किया जो असफल रहा। गाँधी की अहिंसा के सिद्धांत में उसका विश्वास नही था। पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस गांधी को राष्ट्रपिता (सरासर झूठ,सुभाष बोस ने गाँधी को राष्ट्रपिता कहने का मज़ाक़ उड़ाया था ) कहते थे। भारतवर्ष की स्वतंत्रता का इतिहास लिखने वाले इतिहासकार इतिहास लेखन के सिद्धांत कि ”तथ्य पवित्र होते है,व्याख्या अपनी हो सकती है।” की पवित्रता को भूलकर इतिहास लेखन करते रहे। उसी का परिणाम रहा कि यहाँ के इतिहास लिखने वालों ने स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण घटनाक्रम को पूरा का पूरा उड़ा दिया। ऐसे मनघड़ंत इतिहास की रचना की जिसकी मिसाल पूरे विश्व में नही मिलेगी।
इस लेख मला को लिखने का मेरा उद्देश्य है कि भारत की आने वाली पीढ़ी को स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास सही पढ़ाया जाय। मेरा प्रयास है कि पक्षियों के साथ खिलवाड़ न किया जाए और जो जैसा है उसको वैसा ही प्रस्तुत किया जाए। यद्यपि मैं पेशे से इंजीनियर होने के नाते देश का एक जागरूक नागरिक हूं। छात्र जीवन में छात्र राजनीति से जुड़ने के कारण इतिहास के सच लिखने में मेरी विशेष रुचि रही थी जो आज भी है।
कांग्रेस में दो दल थे गरम दल व नरम दल। गरम दल का का उद्देश्य था अंगरेजो को भारत में रखते हुए भारत की उन्नति करना, नरम दल के नेता थे गोखले। गरम दल का उद्देश्य था अंग्रेजों को भारत से निकाल फेंकना, तभी भारत की उन्नति होगी। गरम दल के नेता थे तिलक। तिलक का ६ वर्ष का बर्मा के मांडला जेल से १९१५ में जब छूटने का समय आया तो गोखले का कोई उत्तराधिकारी भारत में नही था। उनका स्वास्थ्य गिर रहा था। तब गोखले के उत्तराधिकारी के रूप में दक्षिण अफ़्रीका से गाँधी लाये गये। गाँधी दक्षिण अफ़्रीका में लम्बे समय तक लड़कर भी सफल नही हो सके थे तो गोखले पहले लंदन गये। वहाँ से दक्षिण अफ़्रीका के गवर्नर जनरल को फ़ोन गया। गोखले की यह सूचना गाँधी को देने पर “गाँधी ख़ुशी से झूम उठे की गोखले भारत सरकार की तरफ़ से व indirectly empire की तरफ़ से बात करेंगे तो दक्षिण अफ़्रीका के मंत्रियों के लिये अस्वीकार करना असम्भव होगा। …….,,,,,तीन पाउंड टैक्स का मामला सुलझ जाएगा। (पुस्तक-मोहनदास -लेखक-राज मोहन गाँधी -पेज-१६८)दक्षिण अफ़्रीका के गवर्नर जनरल गलेडस्टोंन ने लंदन की कालोनी आफिस को सूचना दी”तीन पाउंड टैक्स के बारे में प्रधान मन्त्री ने मुझसे कहा कि गोखले की माँग स्वीकार की जा सकती है । (पुस्तक -मोहनदास -लेखक-राजमोहन गाँधी-पेज-१६९-१७०) इस तरह अंग्रेज गाँधी को भारत लाये व भारत की अंग्रेज़ी मीडिया ने देश के सामने गाँधी को दक्षिण अफ़्रीका के अद्वितीय विजेता के रूप में पेश किया। गाँधी से कांग्रेस जनों को बहुत आशा थी। गाँधी के इन वचनों को कि एक वर्ष में स्वराज ला दूँगा पर उन्हें पूरा विश्वास था।
इस बीच तिलक की मृत्यु हो जाने पर कांग्रेस पर गाँधी का एकाधिकार हो गया। देशबन्धु चित्तरंजन दास भी गुज़र गए । लाला लाजपत राय जी को अंग्रेजों ने मार डाला। गाँधी के उलुलज़लुल ख़िलाफ़त,नमक आंदोलन आदि से कांग्रेसी ऊब गये व सुभाष चंद्र बोस को ३००० मतो में २०५ मत से विजयी बनाया, ताकि देश के स्वाधीनता आंदोलन को सही दिशा में चलाया जाय। पर गाँधी के चेले नेहरू ने सुभाष बाबू की अस्वस्थता के चलते कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य उनके बड़े भाई शरद चंद्र बोस ने जब सुभाष बाबू का अध्यक्षीय भाषण पढ़ लिया तो उनके हाथ से माइक छीन कर ४००सदस्यीय अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की ज़बरदस्ती अध्यक्षता करके कांग्रेस के संविधान विरोधी प्रस्ताव कि गाँधी कांग्रेस की कार्यकारिणी गठित करेंगे – पास किया। सुभाष बाबू का अधिकार उनसे छीन कर गाँधी को दे दिया। गाँधी ने कांग्रेस की कार्यकारिणी समिति का गठन नही किया। परेशान होकर सुभाष बाबू ने कांग्रेस का निर्वाचित अध्यक्ष पद छोड़ दिया। गाँधी ने अपने लिए भविष्य की चुनौती को समाप्त करने के लिये सुभाष बाबू को कांग्रेस से निकाल दिया।
भारत छोड़ो आंदोलन तो सुभाष बाबू ने लिखा था पर गाँधी के चेले कांग्रेस की कार्यकारिणी में नही गये कि गाँधी इस प्रस्ताव के विरोधी हैं। तो कोरम के अभाव में मीटिंग ही नहीं हो सकी। सुभाष बाबू के भारत छोडो प्रस्ताव में यह संशोधन कि ‘अंगरेजो ! भारत छोड़ो’, पर अपनी सेना यहाँ रक्खो। गाँधी ने सुभाष बाबू द्वारा रचित भारत छोडो प्रस्ताव को प्रहसन में बदल दिया। अंग्रेज यदि अपनी सेना यहाँ रखेंगे तो भारत ही क्यों छोड़ेंगे ? गाँधी ने १९४५ का चुनाव देश के मतदाताओं के बीच जाकर इस शर्त पर लड़ा कि हम किसी भी क़ीमत पर भारत का बंटवारा स्वीकार नही करेंगे। पर गाँधी ने न तो ५८ कांग्रेस के सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली सदस्यों की राय ली न कांग्रेस के ४०९ विधान सभा के सदस्यों की राय ली। नेहरू के शब्दों में गाँधी हमें रोकते तो हम और लड़ते। मतलब गाँधी किसी भी प्रकार राजनीतिक सत्ता हासिल करना चाहते थे। इसके लिये देश को तोड़ना पड़े तो तोड़ दो। गाँधी शुरू से कहते थे कि तुम्हारे एक गाल पर कोई थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे बढ़ा दो। देश की जनता विशेष कर हिन्दु जनता इसको आरम्भ में ही समझ लेती तो उनकी यह दुर्गति नही होती।
मेरा कहने का मतलब है कि गांधी ने कांग्रेसी लोगों के जनादेश की अवहेलना करते हुए सुभाष बाबू के साथ जो कुछ किया वह पूर्णतया असंवैधानिक था। जनादेश की अवहेलना करना इस प्रकार गांधी नेहरू और उनके उत्तर अधिकारियों के खून में रचा बसा है।
अगले अंक में सावरकर-सुभाष ने देश को कैसे स्वाधीन किया ?