भाजपा, सेना दोनों को होगा घाटा!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शिवसेना के साथ आजकल जो बर्ताव कर रहे हैं राजनीति में प्रायः वही किया जाता है क्योंकि राजनीति मूलतः सत्ता का खेल है। जो पार्टी कल तक महाराष्ट्र में सांसू बनी हुई थी वह आज बहू की भूमिका कैसे अदा करे, यही सवाल है। शिवसेना पिटने के बावजूद अपनी पुरानी अकड़ पर आमादा है। अब भी वह भाजपा पर हुकूम चलाना चाहती है। उसे महाराष्ट्र के मंत्रिमंडल में फलां-फलां मंत्रालय चाहिए, इतने चाहिए और उप-मुख्यमंत्री पद भी चाहिए। यह सब फरमाइशें कौन पूरी कर सकता है? लेकिन उद्धव ठाकरे को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। वे अपना बर्ताव परिस्थिति के मुताबिक सुधारना नहीं चाहते हैं और बराबर धमकियां देते चले जा रहे हैं। अब उन्होंने विपक्ष में बैठने का फैसला कर लिया हैं।
शिवसेना डाल-डाल तो भाजपा पात-पात! भाजपा अब भाजपा नहीं है, मोदी पार्टी है। इस पार्टी में कोई भी मनमोदक नहीं जीम सकता है। जब भाजपा के धुरंधर ही दुर्दशा को प्राप्त हो गए हैं तो बेचारे लहुलुहान उद्धव ठाकरे को कौन पूछेगा। वे जितने उद्धत हो गए हैं मोदी पार्टी उतनी ही उदंड हो रही है। उसने उद्धव को ऐसा डंडा जमाया है कि जैसा उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा। अचानक सुरेश प्रभु को मंत्री बनाकर नरेंद्र मोदी ने नहले पर दहला मार दिया है या यों कहें तो बेहतर होगा कि ईंट के जवाब में शिवसेना के सिर पर चट्टान गिरा दी है। शिवसेना के नामजद अनिल देसाई को छोटा मंत्री पद दिखाकर नरेंद्र मोदी ने उद्धव को अपनी हैसियत बता दी और सुरेश प्रभु को अचानक मंत्री बनाकर ऐसा तमाचा लगाया है कि अब शिवसेना बोले तो क्या बोले? उसकी बोलती ही बंद कर दी है।
अब शिवसेना या तो पस्त होकर नरेंद्र मोदी की शरणागत हो जाएगी या फिर विरोध में बैठेगी, दिल्ली और मुंबई में दोनों में। (वही हो रहा हैं) अनंत गीते को वापस लेगी और फड़नवीस सरकार को गिराने की कोशिश करेगी। यदि राष्ट्रवादी कांग्रेस के भरोसे भाजपा की महाराष्ट्र सरकार चलेगी तो वह कछुए की सवारी होगी। भाजपा को उसकी ऐसी कीमत चुकानी पड़ेगी कि उसकी छवि चकनाचूर हो जाएगी। इससे बेहतर तो यही हो कि विधानसभा भंग करवा दी जाए और दुबारा चुनाव में कूदा जाए। क्या ही अच्छा होता कि मोदी थोड़ा बड़प्पन दिखाते? अपने 25 साल पुराने साथी के थोड़े नखरे बरदास्त कर लेते। उद्धव ठाकरे से बात करके केंद्र में शिवसेना का कोई पूरा मंत्री बना देते तो उनका क्या बिगड़ता? जो हो अहंकारों की यह लड़ाई भाजपा और शिवसेना दोनों के लिए घाटे का सौदा साबित होगी।