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मोदी और लोनः हायतौबा क्यों?

सज्जाद लोन और नरेंद्र मोदी की भेंट पर हायतौबा क्यों मच रही है? हायतौबा मचानेवाले नेता और टीवी चैनल के मदारी कह रहे हैं कि मोदी ने कश्मीरी अलगाववादी से भेंट क्यों की? क्या वे कश्मीर को भारत से अलग करने की तैयारी कर रहे हैं या वे चुनाव जीतने के लिए कोई भी अनैतिक सौदेबाजी करने पर उतारु हो गए हैं?

ये सभी आरोप निराधार हैं, क्योंकि सज्जाद लोन अब हुर्रियत के सदस्य नहीं हैं। वे कश्मीरियों के सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा के लिए जमकर आवाज़ उठाते हैं लेकिन वे कश्मीर को भारत से अलग करने की बात कभी नहीं करते हैं। इसलिए उन्हें आजकल पूर्व अलगाववादी कहा जाता है। यदि सज्जाद लोन प्रधानमंत्री मोदी से मिलना चाहते हैं और मोदी उनसे मिलते हैं तो वे बहुत अच्छा करते हैं। ऐसा करके वे कश्मीर की देशभक्त ताकतों को मजबूत करते हैं। मान लें कि सज्जाद लोन हुर्रियत के सक्रिय नेता होते और मोदी उनसे मिलते तो और भी बेहतर होता। दोनों को एक-दूसरे की बात समझने का मौका मिलता। अपने विरोधियों से मिलने से कौन डरते हैं? वे ही लोग डरते हैं, जो कमजोर होते हैं या मंदबुद्धि होते हैं या जिनके तर्कों में कोई दम नहीं होता। मोदी पर ये तीनों बातें लागू नहीं होतीं। वे आत्मविश्वास से भरे हुए प्रधानमंत्री हैं। उन्हें उनकी पार्टी, संसद और देश का प्रचंड समर्थन प्राप्त है। यदि सज्जाद लोन की तरह वे अनेक कश्मीरी नेताओं को अपनी बांह में समेट सकें तो वे सबल भारत का निर्माण करेंगे। सज्जाद ने मोदी से मिलकर उनके लिए जो अत्यंत स्नेह और सद्भावनापूर्ण शब्द कहे हैं तो मानना पड़ेगा कि मोदी के व्यक्तित्व में स्वागतयोग्य विकास हो रहा है।

जहां तक जम्मू-कश्मीर में चुनाव जीतने का सवाल है, उसके लिए भाजपा को जिससे भी बात करनी पड़े, जरुर करनी चाहिए। क्यों नहीं करनी चाहिए? भाजपा राजनीतिक दल है या भजन-मंडली है? यदि वह कश्मीर में सत्तारुढ़ हो जाएगी तो कश्मीर-समस्या का सर्व-स्वीकार्य समाधान निकाल लेना कहीं आसान हो जाएगा। कश्मीर के आतंकवादियों और अलगाववादियों के हौंसले अपने आप पस्त हो जाएंगे। स्वयं पाकिस्तान बात करने के लिए मजबूर होगा। जम्मू और लद्दाख की सीटें तो जीती-जिताई हैं। असली टक्कर कश्मीर घाटी की सीटों पर होनी है, नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस बुरी तरह से बदनाम हो चुकी हैं। उनका तो सूंपड़ा साफ समझिए लेकिन पीडीपी का कुछ असर जरुर बाकी है। मोदी ने श्रीनगर में दिवाली बिताकर और बाढ़-सहायता के द्वारा जो भावनात्मक लहर पैदा की है, उसका असर यदि घाटी की 5-10 सीटों पर दिखाई पड़ गया तो कश्मीर के इतिहास को बदलने से कोई रोक नहीं सकता।

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