चीन हमारा एक विस्तारवादी और राक्षस प्रवृत्ति का पड़ोसी देश है। अपनी इस सोच और प्रवृत्ति के चलते चीन ने लगभग आधा दर्जन देशों का अस्तित्व विश्व मानचित्र से मिटा दिया है। पिछले 2 वर्षों में कोविड-19 के चलते चीन की राक्षस प्रवृत्ति से विश्व को कितनी हानि उठानी पड़ी है ?- यह तथ्य भी अब किसी से छिपा नहीं है। संसार में लाल क्रांति के माध्यम से संपूर्ण भूमंडल पर अपना एकछत्र राज्य स्थापित करने की साम्राज्यवादी सोच चीन के नेताओं की आज भी है। अपने इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए यदि संपूर्ण संसार के लोगों का संहार भी करना पड़े तो भी चीन को कोई आपत्ति नहीं होगी। 21 वी सदी के वैज्ञानिक युग युग में भी यदि कोई देश इस प्रकार की राक्षसी भावना रखने का अभ्यस्त हो तो उसके भविष्य के बारे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है और सहज ही यह समझा जा सकता है कि वह संसार के लिए भस्मासुर है या कुछ और ?
भारत से चीन की लंबी सीमाएं मिलती हैं। जिनको लेकर दोनों देशों में 1962 से ही नहीं बल्कि उससे भी पहले से विवाद चला आ रहा है। निष्पक्ष रूप से यदि देखा जाए तो चीन ही इस विवाद के लिए उत्तरदायी है । क्योंकि भारत जहां शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के सिद्धांत में विश्वास रखते हुए अपने पड़ोसियों के साथ सामान्य और मधुर संबंध बनाए रखने का पक्षधर है, वहीं चीन ‘उकसाते रहो और अपना विस्तार करते रहो’ – की नीति को अपनाने वाला देश है । उसकी इस प्रकार की उकसावे की नीति के चलते ही भारत के साथ उसके संबंध कभी सामान्य नहीं रह पाए। वास्तव में चीन और भारत का पड़ोस या संग बेर – केर का संग है।
भारत जहां अहिंसा वादी नीतियों को लागू करने वाले वेदों के मंत्रों में श्रद्धा और विश्वास रखता है वहीं चीन निर्दयता और क्रूरता के लाल क्रांति के नारों में विश्वास रखता है। दोनों देशों में 36 का आंकड़ा है। एक पूर्व को चलता है तो दूसरा उसके सर्वथा विपरीत दिशा में पश्चिम को चलता है। यद्यपि भारत अहिंसा की रक्षा के लिए हिंसा करने को भी न्यायोचित मानता है । इसलिए वह चीन की किसी प्रकार की दादागिरी को या अपने अस्तित्व मिटा देने की स्थिति को किसी भी दशा में स्वीकार करने को तैयार नहीं हो सकता।
अभी ईसाई नववर्ष के अवसर पर चीन और भारत के सैनिकों ने दोनों देशों की सीमा के ऐसे 10 स्थानों को चुना था जहां दोनों ने एक दूसरे को मिठाइयों का आदान-प्रदान किया था। मिठाइयों का यह आदान-प्रदान दोनों देशों के बीच मधुर संबंध होने का प्रतीक माना गया। परंतु सच इसके विपरीत ही था । वैसे भी चीन का इतिहास यह रहा है कि वह जो कुछ करता है उसका वही अर्थ नहीं होता जो दिखाई दे रहा होता है। चीन की प्रवृत्ति रही है कि वह मुंह में राम और बगल में छुरी वाला आचरण करता है । इधर मिठाई बांट कर भारत को भ्रमित करने का प्रयास चीन के सैनिक कर रहे थे और उधर चीन ने अरुणाचल प्रदेश के 15 स्थानों के नाम परिवर्तित कर दिए।
चीन ने जिन आठ आवासीय स्थानों के नामों को मानकीकृत किया है । उनमें शन्नान प्रान्त के कोना काउंटी में सेंगकेज़ोंग और डग्लुंगज़ोंग, न्यिंगची के मेडोग काउंटी में मणिगंग, ड्यूडिंग और मिगपेन, न्यिंगची के ज़ायू काउंटी में गोलिंग, डंबा और शन्नान प्रान्त के लुंज़े काउंटी में मेजाग सम्मिलित हैं। चीन ने जिन चार पर्वतों के नाम चीनी अक्षरों पर रखे हैं, उनमें वामो री, दाऊ री, ल्हुन्जुब री और कुनमिंग्ज़िंग्ज़ी फेंग हैं जबकि ज़ेनोग्मो हे और दुलेन हे नदी का नाम बदला गया है। साथ ही एक पहाड़ी दर्रा कोना काउंटी में ला नाम से है, जिसका नाम भी चीन ने बदल दिया है।
चीन की इस प्रकार की साम्राज्यवादी सोच और उकसावे की कार्यवाही करने की मानसिकता से पता चलता है कि वह भारत के साथ अभी भी सामान्य संबंध बनाने का इच्छुक नहीं है। उसकी सोच भारत की भूमि को हड़पने और भारत की क्षेत्रीय एकता और अखंडता को समाप्त कर देने की है। जिसे किसी के दृष्टिकोण से सहन नहीं किया जा सकता। चीन को यह पता होना चाहिए कि भारत की सेना का मनोबल इस समय ऊँचा है और वह प्रत्येक प्रकार की चीनी कार्यवाही का बदला लेने के लिए तैयार है। लोहे के चने चबाकर भी देश की एकता और अखंडता की रक्षा करना भारतीय सेना के पराक्रमी इतिहास का एक गौरवशाली पृष्ठ है।
चीन ने भारत के साथ जो कुछ भी किया है उस पर भारत ने अपना कड़ा विरोध व्यक्त किया है। भारत की ओर से कहा गया है कि ‘अरुणांचल राज्य हमेशा भारत का हिस्सा रहा है और हमेशा रहेगा। जगहों के नाम बदलने से या नए नाम रख देने से तथ्य नहीं बदलेगा।’ चीन की इस प्रकार की कार्यवाही से भारत की पराक्रमी सेना के शौर्य संपन्न सैनिकों की बाजुएं फड़क रही हैं।
हमारा मानना है कि चीन के इतिहास, चाल, चरित्र और चेहरे को देखते हुए उससे हर पल सावधान रहने की आवश्यकता है। हमें अपनी विदेश नीति का निर्धारण करते समय इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिए कि चीन हमारा पड़ोसी देश नहीं बल्कि शत्रु देश है । जिसके इरादे हमारे प्रति पाकिस्तान से भी कहीं अधिक घृणास्पद हैं। चीन ने जिस प्रकार हमारे अरुणाचल प्रदेश की 15 स्थानों के नाम परिवर्तित कर चीनी भाषा में रखे हैं ,उनके बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि चीन का यह कार्य उसके नए सीमा कानून से जुड़ा हुआ है जो 1 जनवरी से लागू किया गया है। उसके बाद भी चीनी सेना की ओर से जिस प्रकार की उकसावे की कार्यवाही सीमा पर की जा रही है उससे भी भारत के लिए अच्छे संकेत नहीं मिल रहे हैं। कई विदेशी शक्तियां ऐसी हैं जो भारत और चीन को भिड़ाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने की युक्तियां भिड़ा रही हैं। इन सब स्थिति परिस्थितियों के बीच खबर यह भी है कि गलवान घाटी में भारत और चीनी सैनिकों के बीच संघर्ष होने के लगभग डेढ़ वर्ष पश्चात वहां पर अब चीनी झंडा फ़हरा दिया गया है । यद्यपि भारत की सेना ने इस प्रकार की खबरों का खंडन किया है और कहा है कि यह चीन का केवल प्रोपेगेंडा है। भारतीय सेना ने कहा है कि भारत के सैनिकों ने भी गलवान घाटी में तिरंगा फहराकर चीन के इस प्रोपेगेंडा को असफल सिद्ध कर दिया है। हम सब देशवासियों को अपनी सेना के शौर्य और साहस पर भरोसा करना चाहिए और एकता का प्रदर्शन करते हुए उसके पीछे मजबूती के साथ खड़ा होना चाहिए।
इस बीच अब सैटेलाइट तस्वीरों से यह भी पता चल रहा है कि चीन पैंगोंग झील पर एक पुल तैयार कर रहा है। जिससे उसके सैनिक झील के उत्तर और दक्षिण क्षेत्रों में बड़ी सहजता से आना-जाना कर सकेंगे । 2019 में पैंगोंग झील के उत्तर और दक्षिण दोनों में भारत और चीन की सेनाओं में विवाद हुआ था।
लद्दाख क्षेत्र में दोनों देशों की लगभग 60 – 60 हजार सेनाएं सीमा पर तैनात हैं। जिनकी तैनाती से पता चलता है कि सीमा पर सब कुछ सामान्य नहीं है। चीन ने अरुणाचल प्रदेश स्थित सेला दर्रे का नाम बदलकर भी से- ला कर दिया है।
अब प्रश्न है कि चीन ऐसा क्यों करता है ? इसका उत्तर एक तो यही है कि चीन अपनी साम्राज्यवादी नीतियों को लागू करने के लिए न केवल भारत के साथ बल्कि अपने अन्य पड़ोसियों के साथ भी ऐसा ही व्यवहार करता आया है। दूसरी बात यह भी है कि अभी हाल ही में कोविड-19 के कारण चीन की जिस प्रकार वैश्विक मंचों पर बेइज्जती हुई है और भारत को जिस प्रकार वैश्विक मंचों पर सम्मान मिला है, वह चीन को पच नहीं रहा है। ऐसे में चीन का हर संभव प्रयास रहेगा कि वह भारत को निशाने पर ले और किसी न किसी प्रकार उभरती हुई शक्ति के रूप में भारत को विश्व शक्ति बनने से रोके। अपनी इस कार्य योजना को सफल करने के लिए उसने पाकिस्तान में अभी पिछले दिनों इस्लामिक देशों का एक सम्मेलन भी कराया था। यद्यपि भारत की सफल विदेश नीति के चलते पाकिस्तान और चीन की वह चाल सफल नहीं हो सकी और वह इस्लामिक सम्मेलन असफल सिद्ध हुआ। ऐसे में चीन अब अगली कार्यवाही के रूप में भारत को उकसाने के दृष्टिकोण से अपनी इस प्रकार की हरकत पर उतर आया है।
इसके अतिरिक्त हम सब यह भी जानते हैं कि चीन ही वह देश है जो भारत को सुरक्षा परिषद का सदस्य बनने से बार-बार रोकता है। सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी पर विश्व के लगभग सभी देश सहमति व्यक्त कर चुके हैं। यदि भारत विश्व नेता बनने की अपनी वर्तमान रफ्तार को बनाए रहा तो चीन का विरोध भी उसे सुरक्षा परिषद का सदस्य बनने से रोक नहीं पाएगा। यही कारण है कि चीन भारत को रोकने के लिए चारों ओर हाथ पैर मार रहा है। अरुणाचल प्रदेश के 15 स्थानों के नाम परिवर्तित करने की उसकी नीति उसकी एक बौखलाहट भी हो सकती है और भारत को घेरने की उसकी नीति का एक अंग भी हो सकती है।
कुछ भी हो भारत यह कई बार स्पष्ट कर चुका है कि 1962 को गुजरे अब कई दशक हो चुके हैं। चीन को किसी भी प्रकार की भ्रांति में रहना अब महंगा पड़ सकता है। वर्ष 2020 में भारतीय सेना ने चीन को उसी की भाषा में सबक सिखाया था। तब भारत की सेना की वीरता और शौर्य के समक्ष चीन के सैनिकों के होश ठिकाने आ गए थे । उस समय गलवान में चीन के सैनिकों के साथ भारत के सैनिकों ने खूनी झड़प करके उन्हें बता दिया था कि भारत अब 1962 के अपमान का बदला लेने के लिए तैयार है। उस समय चीन की सारी हेकड़ी निकल गई थी और उसे पता चल गया था कि भारत उसकी दादागिरी को अब सहन करने वाला नहीं है।
चीन को अब यह भली प्रकार जान लेना चाहिए कि भारत उसके लिए एक चुनौती है। चीन ने यदि भारत को छेड़ने की हिमाकत की तो भारत के साथ मिलकर चीन के अन्य पड़ोसी भी ऊपर बमबारी करेंगे। इसके अतिरिक्त चीन को यह भी समझ लेना चाहिए कि जिन देशों को उसने जबर्दस्ती हड़प कर लिया है, वे भी भारत से युद्ध की स्थिति में उसके पेट में खलबली मचाएंगे। किसी की भी स्वतंत्रता को आप कष्ट तो दे सकते हैं नष्ट नहीं कर सकते। भारत के कुछ मुट्ठी भर ‘जिन्नाह’ चीन के समर्थन में आकर भी भारत का कुछ नहीं बिगाड़ सकते, जबकि तिब्बत जैसे विशालकाय देश के देश भक्त लोग चीन के लिए बहुत बड़ा संकट खड़ा कर सकते हैं । इस प्रकार भारत से झगड़ा मोल लेना इस समय चीन के लिए महंगा पड़ सकता है। इतना ही नहीं, जिन देशों ने अभी कोविड-19 के चलते भारी जन धन हानि उठाई है उनके भीतर भी चीन के प्रति किसी प्रकार की कोई सहानुभूति नहीं है। कुल मिलाकर यदि चीन इस समय भारत के साथ दो-दो हाथ करने की गलती करेगा तो उसे अपने सपनों को बिखरते देखने के अतिरिक्त और कुछ पल्ले नहीं पड़ेगा।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक ,: उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत