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भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के एक प्रमुख स्तंभ : सचिंद्र नाथ सान्याल

उगता भारत ब्यूरो

शाचींद्रनाथ सान्याल भारत की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे। वे राष्ट्रीय व क्रांतिकारी आंदोलनों में सक्रिय भागीदार होने के साथ ही क्रांतिकारियों की नई पीढ़ी के प्रतिनिधि भी थे। इसके साथ ही वे ‘गदर पार्टी’ और ‘अनुशीलन संगठन’ के दूसरे स्वतंत्रता संघर्ष के प्रयासों के महान कार्यकर्ता और संगठनकर्ता थे। वर्ष 1923 में उनके द्वारा खड़े किए गये ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ को ही भगत सिंह एवं अन्य साथियों ने ‘हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक संघ’ के रूप में विकसित किया। शचीन्द्रनाथ सान्याल को जीवन में दो बार ‘काला पानी’ की सजा मिली।
शाचींद्रनाथ सान्याल का जन्म 1893 में उत्तर प्रदेश के वाराणसी (आधुनिक बनारस) में हुआ था। इनके पिता का नाम हरिनाथ सान्याल तथा माता का नाम वासिनी देवी था। शाचींद्रनाथ के अन्य भाइयों के नाम थे- रविन्द्रनाथ, जितेन्द्रनाथ और भूपेन्द्रनाथ। इनमें भूपेन्द्रनाथ सान्याल सबसे छोटे थे। पिता हरिनाथ सान्याल ने अपने सभी पुत्रों को बंगाल की क्रांतिकारी संस्था ‘अनुशीलन समिति’ के कार्यों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया था। इसी का परिणाम था कि शचीन्द्रनाथ के बड़े भाई रविन्द्रनाथ सान्याल ‘बनारस षड़यंत्र केस’ में नजरबन्द रहे। छोटे भाई भूपेन्द्रनाथ सान्याल को ‘काकोरी काण्ड’ में पांच वर्ष कैद की सजा हुई और तीसरे भाई जितेन्द्रनाथ 1929 के ‘लाहौर षड़यंत्र केस’ में भगत सिंह आदि के साथ अभियुक्त थे।
शाचीन्द्रनाथ का शुरुआती जीवन देश की राष्ट्रवादी आंदोलनों की परिस्थितियों में बीता। 1905 में ‘बंगाल विभाजन’ के बाद खड़ी हुई ब्रिटिश साम्राज्यवाद विरोधी लहर ने उस समय के बच्चों और नवयुवकों को राष्ट्रवाद की शिक्षा व प्रेरणा देने का महान कार्य किया। वर्ष 1908 में ही अपनी पन्द्रह वर्ष की आयु में शाचीन्द्रनाथ सान्याल ने काशी में ‘अनुशीलन समिति’ की स्थापना की। ‘बंगाल विभाजन’ के विरोध के साथ ब्रिटिश साम्राज्यवाद विरोधी भावनाएं उस समय के जनजीवन में तेजी से प्रभावित हो रही थीं। आगे के क्रांतिकारी जीवन में शाचीन्द्रनाथ सान्याल, रासबिहारी बोस के अनन्य सहयोगी के रूप में आगे बढ़े।
नवम्बर, 1914 में ये दोनों ही एक बम परीक्षण के दौरान घायल हो गये। ठीक होने के बाद पुन: अपने कार्य में जुट गये। अब दोनों ने मिलकर संगठन का विस्तार राजस्थान तक किया। ‘गदर पार्टी’ और क्रांतिकारी संगठनों ने 1914 से शुरू हुए प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेजों के फंसे होने के चलते कमजोर पड़ रहे अंग्रेजी शासन के विरुद्ध हिन्दुस्तानी सैनिकों के विद्रोह के जरिए देश को पूरी तरह से स्वतंत्रत करा लेने का निर्णय लिया हुआ था। 21 फरवरी, 1915 को इस सैन्य विद्रोह और स्वतंत्रता संग्राम को आरम्भ करने की तैयारी पक्की कर ली गयी थी। भारी संख्या में ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार और दमन का चक्र चलाया गया। इसी के फलस्वरूप शचीन्द्रनाथ सान्याल को 26 जून, 1915 को पकड़ लिया गया। फरवरी, 1916 में उन्हें ‘काला पानी’ की सजा सुनाई गयी। दिल्ली के अधिवेशन में उन्होंने पार्टी का नाम ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशंन’ रखा था। बाद में चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह तथा उनके साथियों ने इसका नाम एवं रूपांतरण ‘हिन्दुस्तान प्रजातांत्रिक समाजवादी संगठन’ के रूप में कर दिया।
बेलगाँव कांग्रेस के अधिवेशन में गांधी जी ने क्रांतिकारियों की जो आलोचना की थी, उसके प्रत्युत्तर में शचींद्र ने महात्मा जी को एक पत्र लिखा। गांधी जी ने यंग इंडिया के 12 फ़रवरी 1925 के अंक में इस पत्र को ज्यों का त्यों प्रकाशित कर दिया और साथ ही अपना उत्तर भी।
इसी समय सूर्यकांत सेन के नेतृत्व में चटगाँव दल का, शचींद्र के प्रयत्न से, हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से संबंध हो गया। शचींद्र बंगाल आर्डिनेंस के अधीन गिरफ्तार कर लिए गए। उनकी गिरफ्तारी के पहले ‘दि रिह्वलूशनरी’ नाम का पर्चा पंजाब से लेकर वर्मा तक बँटा। इस पर्चे के लेखक और प्रकाशक के रूप में बाँकुड़ा में शचींद्र पर मुकदमा चला और राजद्रोह के अपराध में उन्हें दो वर्ष के कारावास का दंड मिला। कैद की हालत में ही वे काकोरी षडयत्रं केस में शामिल किए गए और संगठन के प्रमुख नेता के रूप में उन्हें पुन: अप्रैल, 1927 में आजन्म कारावास की सजा दी गई।
1937 में संयुक्त प्रदेश में कांग्रेस मंत्रिमंडल की स्थापना के बाद अन्य क्रांतिकारियों के साथ वे रिहा किए गए। रिहा होने पर कुछ दिनों वे कांग्रेस के प्रतिनिधि थे, परंतु बाद को वे फारवर्ड ब्लाक में शामिल हुए। इसी समय काशी में उन्होंने ‘अग्रगामी’ नाम से एक दैनिक पत्र निकाला। वह स्वयं इसस पत्र के संपादक थे। द्वितीय महायुद्ध छिड़ने के कोई साल भर बाद 1940 में उन्हें पुन: नजरबंद कर राजस्थान के देवली शिविर में भेज दिया गया। वहाँ यक्ष्मा रोग से आक्रांत होने पर इलाज के लिए उन्हें रिहा कर दिया गया।
दिल्ली के इसी अधिवेशन में शाचीन्द्रनाथ सान्याल ने देश के बन्धुओं के नाम एक अपील जारी की। इसमें उन्होंने सम्पूर्ण भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता का लक्ष्य और भविष्य में सम्पूर्ण एशिया का महासंघ बनाने का विचार प्रस्तुत किया। उनके द्वारा ‘रिवोल्यूशनरी’ लिखा गया पर्चा एक ही दिन में रंगून से पेशावर तक बांटा गया था। पर्चे को लिखने और वितरित करने के आरोप में उन्हें फरवरी, 1925 में दो वर्ष की सजा हुई। छूटने के बाद ‘काकोरी काण्ड’ के केस में उन्हें पुन: गिरफ्तार किया गया और दुबारा काले पानी की सजा दी गयी। वर्ष 1937-1938 में कांग्रेस मंत्रीमंडल ने जब राजनीतिक कैदियों को रिहा किया तो उसमे शाचीन्द्रनाथ भी रिहा हो गये। लेकिन उन्हें घर पर नजरबंद कर दिया गया। 7 फरवरी सन 1942 में भारत का यह महान क्रांतिकारी चिर निद्रा में सो गया।
(साभार)

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