बताओ ! तब कौन हरेगा तम को ?
जब हृदय में उठती लहरों को
एक नाम मिला पहचान मिली
जब सागर में उठती लहरों को
मधुर मधुर सी सुरताल मिली
जब भौरों के भृमर गीतों से
विश्व भर को मीठी तान मिली
तब शान्ति की बहती धारा से
भारत को ख्याति महान मिली।
जब अज्ञान की चादर ओढ़े हुए
सारा संसार कहीं पर सोता था
जब मानव जंगली रूप धारकर
निज जीवन को पशुवत ढोता था
जब भारत सूरज चांद सितारों से
विज्ञान भरे ताने-बाने बोता था
तब हमको ऐसा सौभाग्य मिला,
उन्हें कभी प्राप्त नहीं होता था।
मैं अपने भारत पर गर्व करूँ
आपत्ति क्यों इस पर तुमको
मैं अपने उत्सव में मगन रहूँ
इस पर क्यों चिंता है तुमको
मेरे भारत की अद्भुत ज्ञान संपदा
जो सही राह दिखाती है तुमको
तुम वाममार्गी बन उल्टे चलते
‘राकेश’ तब कौन हरेगा तम को?
यह कविता मेरी अपनी पुस्तक ‘मेरी इक्यावन कविताएं’- से ली गई है जो कि अभी हाल ही में साहित्यागार जयपुर से प्रकाशित हुई है। इसका मूल्य ₹250 है)
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत